तीसरा खंबा

आप को नकली वसीयत को फर्जी साबित करना होगा।

Willसमस्या-

हरिओम जिंदल जी ने मेरठ के जानी खुर्द उत्तर प्रदेश राज्य से समस्या भेजी है कि


मेरे दादा जी (जिन का देहान्त डेथ ०३-०७-२०१४ को हो चुका है) ने १८ वर्ष पहले सन १९९६ में अपनी संपत्ति की वसीयत की थी (जो कि रजिस्टर्ड है) जिस में उन्होंने अपनी कृषि जमीन को चार हिस्सों में बाटा है जिस में उन्होंने तीन हिस्से अपने ३ पुत्रों को दिया है तथा चौथा हिस्सा अपने सब से छोटे पुत्र के दो पुत्रों (मेरे तथा मेरे भाई ) के नाम किया है। जिस से मेरे ताऊ जी को परेशानी है वो चाहते हैं कि जमीन के तीन हिस्से हों जो तीनों भाइयो को मिलें।. इसके लिए मेरे ताऊ जी ने एक नकली वसीयत तैयार करके हमे (मुझे तथा मेरे भाई को) सिविल कोर्ट में चुनौती दी है। हम ने वसीयत की फोटो कापी अपनी तहसील में दे दी थी। जिसकी तारिख ४-०९-२०१४ थी। जिस पर भी उनके वकील ने आपत्ति के लिए आगे की तारीख ले ली है।  आपसे जानना चाहता हूँ कि अब हमें क्या करना चाहिए? कृपया मार्गदर्शन करें।


समाधान-

किसी भी कृषि भूमि का राजस्व रिकार्ड में नामान्तरण होता है लेकिन वह स्वामित्व का पुख्ता सबूत नहीं होता है। आप ने नामान्तरण के लिए आवेदन कर के पंजीकृत वसीयत प्रस्तुत की है। यदि आप के ताऊजी के द्वारा प्रस्तुत वसीयत पंजीकृत नहीं है तो तहसीलदार उसे अस्वीकार करते हुए आप की वसीयत को मानते हुए नामान्तरण आप के नाम कर सकता है। इसी कारण आप के ताऊजी ने दीवानी न्यायालय में यह कहते हुए कि उन के द्वारा वाद प्रस्तुत किया गया कि उन की प्रस्तुत वसीयत अन्तिम है इस कारण उन की वसीयत को स्वीकार करते हुए उस के अनुसार भूमि का नामांतरण व बँटवारा होना चाहिए। तहसीलदार के समक्ष भी उन के वकील ने यह कहते हुए कि वे आपत्तियाँ प्रस्तुत करेंगे इसी कारण से समय लिया है कि तब तक वे दीवानी न्यायालय से नामान्तरण की प्रक्रिया पर स्थगन ला सकें।

ब मामला दीवानी न्यायालय में है तो वहीं से तय होगा। यदि आप कृषि भूमि का लाभ न ले पा रहे हों तो आप  चाहें तो दीवानी न्यायालय को आवेदन दे कर रिसीवर नियुक्त करवा सकते हैं जो कृषि भूमि की आय को अपने पास सुरक्षित रखेगा और बाद में निर्णय के अनुसार उसे वितरित कर देगा।

दीवानी न्यायालय में ताऊजी को प्रमाणित करना होगा कि उन्होने जो वसीयत प्रस्तुत की है वह सही है और कानून के अनुसार है। उस के विपरीत आप को यह साबित करना होगा कि आप के दादाजी ने ऐसी कोई वसीयत ही नहीं की अपितु यह वसीयत फर्जी है। यदि आप उस वसीयत को दीवानी न्यायालय के समक्ष फर्जी या कानून के अनुसार अमान्य साबित कर सके तो दादा जी की पंजीकृत वसीयत मान्य होगी और उसी के अनुसार नामान्तरण और बँटवारा हो सकेगा। दीवानी अदालत के लिए आप को किसी अच्छे दीवानी वकील को अपने लिए मुकर्रर करना चाहिए जिससे वह उचित प्रतिरक्षा कर सके और आप को विजय दिला सके।

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