अपर्णा ने खोपोली, महाराष्ट्र से समस्या भेजी है कि-
मेरा विवाह 28 अप्रेल 2008 को हुआ था, मेरे पति नपुंसक हैं, लेकिन उन्हें एक बाबा ने कहा है कि वे दूसरा विवाह करेंगे तो उन्हें सन्तान हो जाएगी। इस कारण वे अब दूसरा विवाह करना चाहते हैं। मेरी ननदें, सास मुझे कहती हैं कि मैं उन्हें दूसरे विवाह की अनुमति दे दूँ। लेकिन मैं इस से सहमत नहीं हूँ। अन्त में उन्हों ने मुझे घर से निकाल दिया है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप अनुमति दे देतीं और आप के पति दूसरा विवाह कर लेते तब भी वह दूसरा विवाह अकृत और अवैध होता, क्यों कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (i) का उल्लंघन होता। अब जो कुछ आप के साथ हुआ है वह घरेलू हिंसा है, 498-ए आईपीसी में अपराध भी है। आप को सब से पहले तो पुलिस में रिपोर्ट लिखाना चाहिए। पुलिस न सुने तो आप को सीधे न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए। एक दीवानी वाद प्रस्तुत कर आप के पति के विरुद्ध इस आशय की निषेधाज्ञा प्राप्त करनी चाहिए कि वे आप के साथ विवाह विच्छेद होने तक दूसरा विवाह न करें।
इस के अलावा आप निवास के लिए स्थान और अपने गुजारे के लिए गुजारा भत्ता भी मांग सकती हैं और इन दोनों के लिए आप घरेलू हिंसा अधिनियम और धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।
लेकिन अब लगता है कि आप के पति में जो स्नेह था वह भी समाप्त हो गया है। इस स्थिति में आप अपने पति से लड़ तो सकती हैं और आवास व गुजारा भत्ता तो प्राप्त कर सकती हैं लेकिन एक सामान्य गृहस्थ जीवन संभव नहीं है। अभी आप के विवाह को अधिक समय नहीं हुआ है और आप की उम्र भी अधिक प्रतीत नहीं होती। आप यदि अपने पैरों पर खड़ी हो कर आत्म निर्भर हो सकती हैं तो उस के लिए प्रयत्न कीजिए। यदि आप के लिए संभव हो कि दूसरा बेहतर जीवनसाथी तलाश सकें तो अपने इस पति से तलाक ले कर आप दूसरा विवाह कर अपनी गृहस्थी बसा सकती हैं। हमारा मानना है कि एक विवादित संबंध में बने रहने से अच्छा है उसे समाप्त कर एक नए संबंध के लिए प्रयास करना। जीवन का काल बहुत सीमित है उसे बेहतर से बेहतर तरीके से जीने का प्रयास करना चाहिए।