तीसरा खंबा

उच्च न्यायालय में याचिका का उत्तर तथा स्थगन आगे न बढ़ाने के लिए आवेदन प्रस्तुत करें

समस्या-

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से मनोज कुमार शर्मा ने पूछा है –

मेरी पत्नी ने अपने पिता के विरूद्ध धारा 406 भारतीय दंड संहिता के तहत परिवाद दायर किया।  पत्नी और गवाहों के बयान हो गये।  तलबी हेतु समन भेजा गया तो परिवादी ने जिला जज के यहां तलबी पर रोक हेतु अपील की जो कि खारिज हो गयी।  उसने हाइकोर्ट में अपील की जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर स्टे कर दिया।  चार हफतों के लिये जिस में हमें काउंटर दाखिल करना है।  पर ज्यादातर वकीलों का कहना है कि अब ये केस पैंडिग हो गया है, अब कुछ नहीं होगा।  मैं जानना चाहता हूं कि जब न्याय पुलिस से नहीं मिला तो कोर्ट में गये।  अब उस से ऊँची कोर्ट ने स्टे दे दिया।  आखिर क्यों  उसे जमानत करके अपना पक्ष रखने को अदालत ने नही कहा?  हम इसमें त्वरित रोक करने के लिये क्या कर सकते हैं?  क्या हम हाईकोर्ट में पुन र्विचार या नयी अपील कर सकते हैं या फिर सुप्रीम कोर्ट में जाना होगा?

समाधान-

प की पत्नी ने सही राह अपनाई है। पुलिस से न्याय न मिलने पर वे न्यायालय गईं।  न्यायालय ने परिवाद पर साक्ष्य ले कर मामले को दर्ज कर लिया और समन जारी कर दिए।

मन मिलने पर अभियुक्त ने मजिस्ट्रेट के न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सत्र न्यायालय को निगरानी याचिका प्रस्तुत की और वह निरस्त हो गई।  अब सत्र न्यायालय के इस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय को याचिका प्रस्तुत की गई है।  अब इस याचिका की सुनवाई के लिए आप की पत्नी को नोटिस भेजा गया है।  चार सप्ताह का स्थगन इस लिए दिया गया है कि उस सुनवाई तक अभियुक्त के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो।

च्च न्यायालय चाहता तो स्थाई रूप से स्थगन आदेश पारित कर सकता था।  लेकिन उस ने ऐसा करने के पहले आप की पत्नी को जवाब प्रस्तुत करने और सुनवाई का अवसर प्रदान किया है।  यह सब सामान्य बात है।  इस स्थगन के लिए आप को सर्वोच्च न्यायालय जाने और अलग से कोई आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।  आप की पत्नी को चाहिए कि वह तुरंत उच्च न्यायालय में जवाब प्रस्तुत करवाए और साथ ही स्थगन को निरस्त करने/आगे न बढ़ाने का आवेदन भी प्रस्तुत करे। आप को अपने वकील को कहना चाहिए कि वह स्थगन के आवेदन तथा आप के स्थगन निरस्त करने/ आगे न बढ़ाने देने के आवेदन पर तुरंत बहस करे अपनी ओर से कोई पेशी न ले। मेरी राय है कि यदि अभियुक्त के आवेदन में कोई तात्विक बात या विधिक बिन्दु न हुआ तो उच्च न्यायालय इसी सुनवाई में उस के आवेदन को निरस्त कर देगा।

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