संतोष कुमार विश्वकर्मा ने भोपाल, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी को मेरे दादा जी से सात एकड़ जमीन मिली है जो कि पुश्तैनी है। अब मेरे पिताजी उस सारी जमीन की वसीयत मेरी माता जी को करना चाहते हैं। क्या वो अपनी पुश्तों से मिली हुई जमीन को बिना मुझे व् मेरे भाइयों को दिए ही वसीयत कर सकते हैं?
समाधान-
आप किस आधार पर कहते हैं कि यह जमीन पुश्तैनी है? 17 जून 1956 के बाद किसी भी हिन्दू पुरुष को अपने किसी पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में मिली कोई भी संपत्ति इस अर्थ में पुश्तैनी नहीं कही जा सकती कि उस में जिसे वह संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है उस के पुरुष उत्तराधिकारियों का कोई हित निहित नहीं होता है। यह अधिनियम परंपरागत हिन्दू विधि पर अधिप्रभावी है। इस अधिनियम के प्रभावी होने की उक्त तिथि के बाद किसी पुरुष पूर्वज की मृत्यु से उस के पुरुष उत्तराधिकारी को जो हिस्सा मिलता है वह इस अधिनियम की धारा-8 के अनुसार मिलता है। धारा-8 में उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची से तय होता है। इस अनुसूची में पुत्र का नाम तो है लेकिन पौत्र या प्रपौत्र का कहीं उल्लेख नहीं है। इस तरह जिस पुरुष उत्तराधिकारी को हिस्सा मिलता है उस हिस्से पर उस का स्वयं का पूर्ण अधिकार होता है और ऐसा उत्तराधिकारी ऐसी संपत्ति को वसीयत कर सकता है।
आप का जो प्रश्न है उस का उत्तर केवल किसी संपत्ति को पुश्तैनी कह देने से काम न चलेगा। आप को देखना होगा कि वह संपत्ति सहदायिक (कोपार्शनरी) है या नहीं। उक्त अधिनियम प्रभाव में आने की तिथि 17 जून 1956 के उपरान्त अपने किसी पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में किसी पुरुष वंशज को प्राप्त संपत्ति का दाय धारा-8 के अनुसार होगा और वह कोपार्शनरी नहीं बनेगी। लेकिन यदि कोई संपत्ति यह अधिनियम प्रभाव में आने के पहले से कोपार्शनरी हो चुकी थी तो उस में पौत्रों और प्रपोत्रों का अधिकार जन्म से होगा और आगे भी होता रहेगा। 09.09.2005 के बाद से तो यह अधिकार पुत्रियों को भी प्राप्त हो गया है। यदि अधिनियम प्रभाव में आने के पूर्व कोई संपत्ति किसी 3 पीढ़ी तक के पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में किसी पुरूष वंशज को प्राप्त हुई है तो वह कोपार्शनरी होगी। यदि आप की संपत्ति कोपार्शनरी है तो फिर पिता पूरी संपत्ति को अपनी पत्नी को वसीयत नहीं कर सकते। लेकिन वे उस संपत्ति में अपने भाग को वसीयत कर सकते हैं।