राजबीर सिंह ने गाँव-नारायणगढ़, तह०-नरवाना, जिला-जींद, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिता ने मेरे भाई और उसकी पत्नी को अपनी चल व अचल सम्पति से बेदखल कर दिया है। (जो कि मेरे पिता को मेरे दादा जी से भी मिली थी और खुद भी खरीदी थी) जिस की सार्वजनिकता एक अख़बार में भी करवा दी गई है। क्या मेरा भाई अब मेरे पिता की सम्पति पर किसी प्रकार का दावा कर सकता है? क्या वह कोर्ट के माध्यम से भी अपना हक मांग सकता है? जब कि मेरे पिता उसे कुछ भी नही देना चाहते हैं। बेदखली नोटिस नोटरी पब्लिक से प्रमाणित है क्या यह वैध है? या फिर जिस को सम्पति नहीं देना चाहते उसको छोड़कर शेष के नाम वसीयत करवानी पड़ेगी?
समस्या-2
भतेरी देवी ने गाँव-नारायणगढ़, तह०-नरवाना, जिला-जींद, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
भतेरी देवी एक कम पढ़ी- लिखी लड़की है जो इन्टरनेट का ज्ञान नहीं रखती। इसकी एक समस्या है जिसमें ये कहती है कि मेरे पिता के पास लगभग 4.25 एकड़ खेत की जमीन है जो कि मेरे पिता को मेरे दादा व परदादा से मिली थी। एक घर की जमीन वो भी दादा से मिली थी, जिस पर मेरे छोटे भाई ने मकान बना रखा है। एक कनाल पंजाब में है जो मेरे पिता ने खुद खरीदा था। हम दो भाई दो बहन हैं। अब मेरे पिता ने मेरे बड़े भाई व उसकी पत्नी को चल अचल सम्पति से बेदखल कर दिया है, क्योंकि उनका व्यवहार किसी के साथ भी ठीक नहीं था। अब मेरे पिता अपनी सम्पति हम दोंनो बहनों व हमारे छोटे भाई के नाम करवाना चाहते हैं। जिस में हम दोनों बहन व छोटा भाई भी सहमत हैं। हम सभी शादीशुदा हैं। हमारे पिता और हम सभी बड़े भाई को कुछ भी नहीं देना चाहते। अब आप हमें ये बताएं कि बड़े भाई को बेदखल करने मात्र से ही वह सम्पति से बहार हो गया। या फिर मेरे पिता को हम तीनों बहन भाइयों के नाम वसीयत करवानी पड़ेगी। अगर वसियत हो जाती है तो हमारा बड़ा भाई जो कि पिता ने बेदखल कर दिया था हमारी सम्पति पर कोर्ट के माध्यम से कोई किसी प्रकार का दावा तो नहीं कर सकता है या फिर कोई अन्य उपाय है जिससे कि उस को हमारे पिता की जमींन जायदाद से पिता के मर जाने के बाद भी कोई हिस्सा न मिल सके।
समाधान-
1.
आप ने बिलकुल सही सवाल पूछे हैं। इन का उत्तर जानने के लिए आप को पहले “बेदखली” शब्द पर विचार करना चाहिए। बेदखली शब्द दखल से बना है जिस का अर्थ कब्जा है। बेदखली का अर्थ हुआ कब्जा हटाना। अब किसी भी संपत्ति चाहे वह संयुक्त हिन्दू परिवार की हो या फिर आप के पिता की। उस में या तो परिवार कब्जे में होता है या फिर आप के पिता का कब्जा है। उस से बेदखली का कोई अर्थ नहीं है। यदि किसी संपत्ति के सहदायिक होने के कारण अधिकार जन्म से है तो उसे उस अधिकार से कैसे भी वंचित नहीं किया जा सकता।
लेकिन यदि कोई अधिकार उसे आज नहीं है और पिता के जीवनकाल के उपरान्त उत्तराधिकार के कारण उत्पन्न होगा तो जो अधिकार आज किसी का है ही नहीं उस अधिकार से उसे आज कैसे वंचित किया जा सकता है? और पहले से अधिकार हीन व्यक्ति से अधिकार छीन लेने का तो कोई अर्थ नहीं है।
किसी भी व्यक्ति को अपनी संपत्ति की वसीयत करने का अधिकार है। आप के पिता भी अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकते हैं। इस कारण आप ने जो अंतिम सुझाव दिया है वही सही है। यदि आप के पिता अपने किसी उत्तराधिकारी को उत्तराधिकार से वंचित करना चाहते हैं तो वे अपने वसीयत करने के अधिकार का उपयोग करें और वसीयत पंजीकृत करा दें जिस में जिसे वंचित करना चाहते हैं उसे वंचित कर दें, शेष के नाम संपत्ति वसीयत कर दें।
2.
भतेरी देवी के मामले का समाधान भी वही है। उन के पिता ने एक पुत्र को बेदखल किया है उस का कोई अर्थ नहीं है। उन के पिता जिसे जो संपत्ति देना चाहते हैं, उस प्रकार से वसीयत कर के उसे पंजीकृत करवा दें। वसीयत के अनुसार हिस्से मिल जाएंगे। जहाँ तक वंचित भाई द्वारा मुकदमा करने का प्रश्न है तो वह मुकदमा कर सकता है, उस पर कोई रोक नहीं है लेकिन वसीयत के आधार पर उस का अधिकार नहीं माना जाएगा। भतेरी देवी के पिता के पास जो संपत्ति है उस में से कुछ सहदायिक हो सकती है जिस का निर्णय परिवार का वंशवृक्ष देख कर तथा उस में किस पूर्वज का देहान्त कब हुआ जान कर ही पता किया जा सकता है। सहदायिक संपत्ति में भाई का हिस्सा जन्म से होगा। उस का जितना हिस्सा है उस से उसे वसीयत से भी वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन सहदायिक संपत्ति में पिता का जो हिस्सा है उसे वे वसीयत कर सकते हैं। लेकिन ऐसी संपत्ति में जितना हिस्सा वंचित होने वाले भाई का होगा उतना उतना ही शेष तीन भाई बहनों का पहले से है। इस कारण वंचित होने वाले भाई को कोई हिस्सा मिलेगा तो वह अत्यन्त न्यून होगा। फिर भी उस के पिता को संपत्ति की वसीयत कर देनी चाहिए।