आप ने बात को स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है, या फिर स्पष्ट रूप से समझा ही नहीं है। जब श्रमिकों ने कंपनी के गेट पर धरना आरंभ किया तो कंपनी ने धरना देने वाले श्रमिकों के विरुद्ध एक दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में इस बात का प्रस्तुत किया जिस में ये कथन किए गए होंगे कि श्रमिकों ने गेट पर धरना दिया है, वे शोर करते हैं, कंपनी में आने जाने वाले लोगों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। लगातार नारे बाजी आदि के कारण कंपनी के काम में बाधा उत्पन्न होती है। इस तरह श्रमिकों की गतिविधियों के कारण कंपनी का सामान्य कामकाज बाधित होता है। इस कारण से डिक्री पारित की जा कर श्रमिकों के विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित की जाए कि वे कंपनी की उत्पादन करने वाली इकाई और कार्यालय से 50 मीटर के दायरे में न आएँ और अपनी गतिविधियों को उस दायरे के बाहर ही रखें। इसी वाद में उन्हों ने अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए आवेदन प्रस्तुत किया होगा जिस में तुरंत इस तरह की अस्थाई निषेधाज्ञा पारित करने की प्रार्थना की गई होगी। इस आवेदन के प्रस्तुत होने पर कंपनी के वकीलों ने अदालत को तुरंत आवश्यकता बताते हुए निवेदन किया होगा कि आप को नोटिस मिलने और आप के अदालत में उपस्थित होने तक इस तरह की अंन्तरिम आज्ञा जारी की जाए। प्रथम दृष्टया कंपनी के आवेदन को सही मानते हुए न्यायालय ने इस तरह का आदेश जारी कर दिया है। उसी आदेश को सम्मन व नोटिस के माध्यम से पहुँचाया गया है और आप को 23 मई को न्यायालय में स्वयं या किसी अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित होने के लिए आदेशित किया गया है। सम्मन व नोटिस में यह भी अंकित होगा कि यदि आप उपस्थित नहीं हुए तो न्यायालय एक तरफा सुनवाई कर के आदेश पारित कर देगा।
ुद्ध यह वाद और प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किए गए हैं किसी वकील को अपना पक्ष प्रस्तुत करने को नियुक्त करें। अधिक उत्तम यही है कि इस मामले में किसी वकील की मदद आप प्राप्त करें। क्यों कि तकनीकी ज्ञान के अभाव में न्यायालय आप के विरुद्ध पारित अन्तरिम आदेश को अस्थाई व्यादेश में परिवर्तित कर सकता है और ऐसी स्थिति में आप को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
न्यायालय में आप का वकील आप का पक्ष प्रस्तुत करते हुए यह तथ्य सामने रख सकता है कि किन बातों पर उद्योग में नियोजक और कर्मचारियों (श्रमिकों) के मध्य विवाद उठ खड़ा हुआ था और उसे आपसी बातचीत व समझौते के माध्यम से सुलझा लिया गया है। अब विवाद सुलझ जाने के कारण न तो किसी तरह का कोई धरना और आंदोलन शेष रहा है और न ही इस तरह के न्यायालय के किसी आदेश की आवश्यकता है। आप को न्यायालय में यह भी कहना होगा कि आप का धरना प्रतीकात्मक था और उस से उद्योग की किसी भी उत्पादन और व्यापारिक गतिविधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और न ही ऐसे प्रमाण नियोजक द्वारा इस वाद और आवेदन में प्रस्तुत किए गए हैं।
इस तरह के समन या नोटिस से मानहानि का कोई मामला नहीं बनता है। इस लिए उस दिशा में सोच कर आप अपना ही अहित करेंगे। आप को चाहिए कि जो वाद और अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन आप के विरुद्ध न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है उस में किसी भी तरह से सक्षम वकील को अपनी ओर से नियुक्त करें और पैरवी करवाएँ। प्रयत्न करें कि आप के विरुद्ध कोई अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश पारित न हो। उस प्रार्थना पत्र पर अंतिम आदेश केवल दावे के निर्णय तक के लिए ही होगा। इस कारण से उस के बाद भी दावे में पैरवी जारी रखें और उस में कोई निर्णय और डिक्री अपने विरुद्ध पारित न होने दें। क्यों कि इस तरह का निर्णय और डिक्री हमेशा हमेशा के लिए प्रभावी हो जाएगी। यदि आप के विरुद्ध कोई आदेश और निर्णय होता भी है तो उस की अपील अवश्य ही करें।