तीसरा खंबा

एक व्यक्ति के स्वामित्व की संपत्ति के मामले में पारिवारिक समझौता संभव नहीं।

समस्या-

गाजियाबाद, उत्‍तर प्रदेश से राकेश सूरी ने पूछा है –

कृपया पारिवारिक समझौते (Family Settlement)  के बारे में बतायें और इसका एक ड्राफट/सेम्पल भी बताएँ कि कैसे यह कैसे बनाया जाता है? मैं आपको अपने केस के बारे में बताता हूँ।  मेरे दो बड़े भाई हैं, और मेरे पिता जी की मृत्यु हुये 7 साल से ज्यादा का समय हो चुका है।  मेरी माताजी के जी0डी0ए0 जनता के दो फलेटस् हैं।  वे एक मकान अपने ही बेटों को कम कीमत पर सेल कर रही है और बड़े भाई के नाम रजिस्‍ट्री करवा रही है।  वह ऐसा बड़े बेटे के कहने पर कर रही हैं ताकि उससे जो पैसे मिलेंगे वह उन्हें दूसरे बड़े भाई को देगीं। यह दोनों भाईयों की आपसी सहमति से हो रहा है।  ताकि माता जी के निधन के बाद सपंति विवाद पैदा न हो और मेरी माता जी को भी इसमें कोई परेशानी नहीं है।  लेकिन मेरा यह प्रश्न है कि जो एक मकान बच गया है जिस में मैं और मेरी माता जी रहती हैं।   माता जी और दोनो बडे भाई कहते है जो मकान बच गया है वह तेरा है हम उस मकान मे हम कोई हिस्सा नहीं लेगें।  लेकिन कुछ लोगों से मैं ने बात की तो  वे कह रहे हैं कि आप अभी पारिवारिक समझौता करवा लो।  क्यों कि बाद में भाईयों में मतभेद हो सकते हैं।  जिसके कारण दूसरे बचे हुये मकान पर सपत्ति विवाद पैदा हो सकते हैं।  क्यों कि माता जी बड़े भाई को मकान बेच रही है और उसके पैसे दूसरे बड़े भाई को दे रही है जो कि क्रय-विक्रय होगा।  जिससे यह साबित नहीं किया जा सकता कि सपत्ति को दोनों भाइयों में बाँटा गया हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि मुझे सही सलाह दें।

समाधान-

Giftगता है कि जो भाई अपने नाम उस मकान को हस्तान्तरित करवाना चाहता है वह उस मकान को खरीदने के लिए गृहऋण भी किसी संस्था से प्राप्त करना चाहता है जिसे वह अपने दूसरे भाई को दे सके। अन्यथा मकान को माता जी एक वसीयत के माध्यम से भी एक बेटे को दे सकती हैं। लेकिन इस तरह मकान उन के जीवनकाल में माताजी के नाम रहेगा और उस पर ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकेगा। इस कारण से रजिस्ट्री में होने वाला व्यय बचाने के बजाय खर्च किया जा रहा है।

दोनों मकान आप की माता जी के स्वामित्व के हैं। एक मकान वे बेच देंगी तो बचे हुए मकान पर माताजी के जीवनकाल के उपरान्त तीनों भाइयों का समान अधिकार होगा। इस कारण से आप को लोगों ने जो सलाह दी है वह उचित दी है। लेकिन आप के मामले में पारिवारिक समझौते की कोई स्थिति नहीं है। यह तब संभव होता है जब संबंधित संपत्ति या संपत्तियोँ में समझौते के सभी पक्षकारों का वर्तमान में अधिकार हो। आप की स्थिति में पारिवारिक समझौते को एक तरह का संपत्ति हस्तान्तरण माना जाएगा और उस पर पूरी स्टाम्प ड्यूटी देनी होगी। उस से अच्छा तो ये है कि दूसरे मकान का विक्रय पत्र के स्थान पर उस के दानपत्र की रजिस्ट्री भी आप के नाम साथ के साथ करवा दी जाए। हाँ उस में यह अवश्य लिखा जाए कि जीवन काल में मकान में निवास का अधिकार माता जी को होगा और पूरे जीवनकाल में आप उन की भरण-पोषण और सेवा सुश्रुषा करेंगे।

माताजी एक मकान को जैसे चाहें वैसे एक बेटे को बेच कर दूसरे को उस का विक्रय मूल्य प्राप्त कर दे सकती हैं। लेकिन यदि सभी कह रहे हैं कि दूसरा मकान केवल आप का होगा। तो आप की माता जी उसे आप के नाम वसीयत कर सकती हैं, जिस में शेष दोनों भाइयों के भी हस्ताक्षर करवा लिए जाएँ और वसीयत को उपपंजीयक के यहाँ पंजीकृत करवा दिया जाए। इस से यह होगा कि मकान पर माताजी के जीवनकाल में उन का स्वामित्व बना रहेगा और उन के जीवनकाल के उपरान्त वसीयत के कारण आप का हो जाएगा। इस व्यवस्था में एक ही परेशानी है कि माता जी चाहें तो अपने जीवनकाल में इस वसीयत को बदल भी सकती हैं।

स की सम्भावना को समाप्त करने के लिए आप चारों सदस्य मिल कर आप के यहाँ एग्रीमेंट के लिए निर्धारित आवश्यक मूल्य के स्टाम्प पेपर पर एक एमओयू (मेमोरेण्डम ऑफ अण्डरस्टेण्डिंग) हस्ताक्षर करें जिस में यह लिखा जाए कि उन के दो मकान हैं जिसे माता जी ने आधी कीमत पर एक पुत्र को विक्रय कर के उस विक्रय से प्राप्त पैसा दूसरे पुत्र को दे दिया है। दूसरा मकान जिस में वे आप के साथ रहती हैं उस की वसीयत लिख दी है जो उन के जीवनकाल के उपरान्त आप का हो जाएगा। इस एमओयू पर साक्षियों के हस्ताक्षर करवा कर नोटेरी के यहाँ पंजीकृत करवाया जा सकता है। इस प्रकार आप को दान-पत्र के लिए आवश्यक स्टाम्प शुल्क नहीं देना होगा।

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