तीसरा खंबा

औद्योगिक नियोजक और श्रमिक/कर्मकार

म संक्षेप में औद्योगिक विवाद अधिनियम और उस में परिभाषित ‘उद्योग’ शब्द के बारे में बात कर चुके हैं। हम यह जानने की और आगे बढ़ें कि औद्योगिक विवाद क्या हैं इस से पहले हमें ‘नियोजक’ और ‘श्रमिक’ शब्दों के बारे में जानना आवश्यक है। नियोजक को इस अधिनियम में निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

(g) “Employer” means-

 (i) In relation to any industry carried on by or under the authority of any department of the Central Government or a State Government, the authority prescribed in this behalf, or where no authority is prescribed, the head of the department;

 (ii) In relation to an industry carried on by or on behalf of a local authority, the chief executive officer of that authority;

नियोजक का अर्थ-

(i) केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार द्वारा अथवा उन के किसी विभाग की प्राधिकारिता के अंतर्गत संचालित उद्योग के लिए इस संबंध में विहित प्राधिकारी और जहाँ कोई प्राधिकारी विहित नहीं किया गया हो वहाँ उस विभाग का प्रधान;

(ii) स्थानीय प्राधिकरण द्वारा और उन के लिए संचालित किसी उद्योग के संबंध में उस स्थानीय प्राधिकरण का मुख्य कार्यकारी अधिकारी है।

 इस प्रकार हम देखते हैं कि नियोजक शब्द की परिभाषा निदर्शी है न कि संपूर्ण। यहाँ केन्द्र व राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकारणों द्वारा या उन के लिए संचालित उद्योगों  के लिए तो नियोजक को परिभाषित किया गया है लेकिन अन्य उद्योगों के लिए नहीं। इस का सामान्य अर्थ यही है कि अन्य उद्योगों के लिए नियोजक का निर्धारण करने के लिए हमें नियोजक शब्द के शब्दकोषीय अर्थ को ही मानना होगा। जिस के अनुसार किसी व्यक्ति के लिए नियोजक वही होगा जो उसे नियोजन में नियुक्त करता है, वेतन आदि का भुगतान करता है। जैसे किसी एकल स्वामित्व वाले उद्योग के लिए नियोजक उस उद्योग का स्वामी होगा। यदि उद्योग भागीदारी फर्म द्वारा संचालित किया जा रहा है तो उस के भागीदार नियोजक होंगे और उद्योग किसी जोइंट स्टॉक कंपनी द्वारा संचालित किया जा रहा है तो उस का निदेशक मंडल उस के कर्मचारियों का नियोजक होगा।

इस अधिनियम में ‘श्रमिक’ अथवा ‘कर्मकार’ शब्द को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

(s) “Workman” means any person (including an apprentice) employed in any industry to do any manual, unskilled, skilled, technical, operational, clerical or supervisory work for hire or reward, whether the terms of employment be express or implied, and for the purposes of any proceeding under this Act in relation to an industrial dispute, includes any such person who has been dismissed, discharged or retrenched in connection with, or as a consequence of, that dispute, or whose dismissal, discharge or retrenchment has led to that dispute, but does not include any such person-

 (i) Who is subject to the Air Force Act, 1950 (45of l950),or the Army Act, 1950 (46 of 1950), or the Navy Act, 1957 (62 of 1957); or

 (ii) Who is employed in the police service or as an officer or other employee of a prison; or

 (iii) Who is employed mainly in a managerial or administrative capacity; or

 (iv) Who, being employed in a supervisory capacity, draws wages exceeding ten thousand rupees per mensem or exercises, either by the nature of the duties attached to the office or by reason of the powers vested in him, functions mainly of a managerial nature.

‘श्रमिक’ या ‘कर्मकार’ का अर्थ है किसी भी उद्योग में वेतन या इनाम के लिए शारीरिक, अकुशल, कुशल, तकनीकी, परिचालन, लिपिकीय, या पर्यवेक्षीय कार्य करने हेतु नियोजित कोई व्यक्ति (जिस में एक प्रशिक्षु भी सम्मिलित है), जिस के नियोजन की शर्तें व्यक्त या निहित हों सकती हैं, और इस अधिनियम के अंतर्गत औद्योगिक विवाद से संबंधित किसी भी कार्यवाही के संबंध में वे सभी व्यक्ति सम्मिलित हैं और उस औद्योगिक  विवाद के कारण सेवामुक्त, सेवाच्युत या छंटनी कर दिया गया है या उसे सेवामुक्त, सेवाच्युत या छंटनी किए जाने से उत्पन्न हुआ है, लेकिन उस में निम्न लिखित सम्मिलित नहीं है-

 (i)  जो वायु सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45oवाँ, या सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46वाँ), या नौसेना अधिनियम, 1957 (1957 का62वां) के अधीन है, या

(ii) जो पुलिस सेवा में या जेल के एक कर्मचारी या अधिकारी के रूप में कार्यरत है, या

(iii) जो मुख्य रूप से एक प्रबंधकीय या प्रशासनिक क्षमता में कार्यरत है, या

(iv) जो पर्यवेक्षीय क्षमता में नियोजित है और दस हजार रुपए प्रतिमाह से अधिक मजदूरी प्राप्त करता है, या कार्यालय से जुड़ी कर्तव्यों की प्रकृति द्वारा या उस में निहित शक्तियों के कारण, मुख्य रूप से एक प्रबंधकीय प्रकृति के कार्य के लिए नियोजित है।

 

र्मकार की परिभाषा में आप यहाँ देख सकते हैं कि यह निदर्शी होने के स्थान पर संपूर्ण है। लेकिन इस तरह की परिभाषा अक्सर ही पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न करती है जिस की व्याख्या न्यायालयों द्वारा की जाती है। किसी भी औद्योगिक विवाद में अक्सर ही यह आपत्ति नियोजक द्वारा उठाई जाती है कि उस औद्योगिक विवाद से संबंधित व्यक्ति अधिनियम में परिभाषित कर्मकार नहीं है। ऐसी आपत्ति का निराकरण साक्ष्य और उक्त परिभाषा की व्याख्या के आधार पर ही किया जा सकता है। परिभाषा की व्याख्या सदैव ही एक विधिक विवाद-बिंदु होता है और जिस के लिए रिट याचिका आसानी से अनुमत हो जाती है। इसी आधार को ले कर अक्सर नियोजक किसी भी औद्योगिक विवाद को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाते हैं और समय निकालते हैं। एक साधारण कर्मकार में इतनी क्षमता नहीं होती है कि वह सर्वोच्च न्यायालय तक मुकदमे को लड़ सके। वह अपनी लड़ाई को बीच में छोड़ देता है। न्याय से वंचित होने पर उस में संपूर्ण व्यवस्था के प्रति रोष और वितृष्णा उत्पन्न होती है जो जीवन भर उस के साथ तो रहती ही है। उस का परिवार भी यह धारणा बना लेता है कि इस व्यवस्था में कमजोर लोगों के लिए कोई न्याय नहीं है।

अगले शनिवार हम ‘कर्मकार’ शब्द की की गई व्याख्याओं की चर्चा करेंगे।

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