यदि कोई भी नियोजक अपने यहाँ कर्मकार को नियोजित करते समय कोई लिखित नियुक्ति पत्र अवश्य दे तो दोनों के मध्य कोई भी विवाद उत्पन्न होने पर यह आसानी से साबित किया जा सकता है कि वह कर्मकार उद्योग में नियोजिच है अथवा नियोजित था। लेकिन समस्या यह है कि आज भी भारत में अधिकांश कर्मकार बिना कोई नियुक्ति पत्र दिए नियोजित किए जाते हैं। कोई नियुक्ति पत्र न देने पर भी कुछ अन्य दस्तावेज ऐसे हो सकते हैं जिन के आधार पर यह साबित हो सकता है कि कर्मकार उद्योग में नियोजित किया गया था। लेकिन कोई भी दस्तावेज न होने पर यह साबित कर पाना कठिन होता है कि वह उद्योग का कर्मकार है या नहीं। किसी कर्मकार के संबंध में कोई औद्योगिक विवाद उत्पन्न होने पर नियोजक द्वारा अक्सर ही यह आपत्ति की जाती है कि जिस व्यक्ति के संबंध में आपत्ति उठाई गई है वह उस उद्योग में नियोजित कर्मकार ही नहीं था। कर्मकार की जो परिभाषा औद्योगिक विवाद अधिनियम में दी गई है उस में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी व्यक्ति को एक कर्मकार के रूप में पहचानने के लिए के लिए यह आवश्यक नहीं कि कोई दस्तावेज स्पष्ट रूप से उपलब्ध हो। नियोजक और कर्मकार के संबंध को परिस्थितिजन्य साक्ष्य से साबित किया जा सकता है।
धारंगधर केमीकल वर्क्स लि. बनाम स्टेट ऑफ सौराष्ट्र के मामले में नमक उत्पादक कंपनी में वेतन पर काम करने वाले अगाड़ियों की संविदा को जो कि स्वयं अन्य कर्मचारियों को नियोजित कर सकते थे लेकिन जिन का वेतन भी कंपनी देती थी सेवा संविदा माना गया। डी सी दीवान मोहिदीन साहिब एण्ड संन्स बनाम औद्योगिक न्यायाधिकरण मद्रास के मामले में बीड़ी उत्पादक ठेकेदार कहे जाने वाले कुछ लोगों को बीड़ी का पत्ता और तम्बाकू देता था जो उसे अपने घरों पर ले जा कर अन्य कर्मकारों को दे देता जो उन की बीड़ी बनाते थे। इन ठेकेदारों को बीड़ी की गिनती के आधार पर भुगतान किया जाता जिन में से वे कर्मकारों की मजदूरी देते तथा बचने वाली राशि स्वयं रख लेते थे। यह बची हुई राशि वास्तव में उन की मजदूरी होती थी। ये ठेकेदार जिन कर्मकारों से काम लेते थे उन की उपस्थिति का कोई अभिलेख भी नहीं रखते थे। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ये ठेकेदार वास्तव में उद्योग द्वारा नियोजित कर्मकार ही हैं। क्यों कि वे पत्ता और तम्बाकू नियोजक से प्राप्त करते हैं न उसे खरीदते हैं और न ही बीड़ी का विक्रय करते हैं।
कुछ मामलों में नियोजकों द्वारा संविदा को सेवा के लिए संविदा बताया गया उन में मद्रास उच्च न्यायालय ने मोडर्न माचिस फैक्ट्री के मुकदमे में कच्चा माल घर ले जाने और निश्चित अवधि में निश्चित मात्रा व निश्चित मूल्य पर माल बना कर वापस लाने वालों को कर्मकार माना। सर्वोच्च न्यायालय ने बैंक द्वारा संविदा पर पे-ऑफिस चलाने वाले कोषाधिकारी को जो स्टाफ की नियुक्ति और सेवा समाप्ति का रिकार्ड रखता था कर्मकार माना है। साबुन फैक्ट्री में पैकिंग के बक्से बनाने वाले खाती को मद्रास उ.न्या. ने कर्मकार माना। बोनस और अवकाशों के लिए फैक्ट्री के कर्मचारी माने जाने वाले लेकिन ठेकेदार के माध्यम से नियोजित कुलियों को लेबर अपीलेट ट्रिबुनल ने फैक्ट्री का कर्मकार माना। आंन्ध्र प्रदेश उ.न्या. ने नमक उद्योग के मिस्त्री द्वारा नियोजित नमक निर्माण के स्थान से रेलवे साइडिंग तक नमक ढोने वाले बैलगाड़ीवानों को नमक उद्योग का कर्मकार माना है। कोलफील्ड रिक्रूटिंग संस्थान द्वारा किसी खान में काम करने के लिए नियोजित किए गए व्यक्तियों को मद्रास उ.न्या. ने कर्मकार माना। पीस दर पर काम करने वाले व्यक्तियों को जिन्हें इच्छानुसार मात्रा में दो खास तरह के कपड़े बुनने की स्वतंत्रता थी लेकिन साप्ताहिक अवकाश प्राप्त होता था तथा प्रबंधन को जिन के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही का अधिकार था को मद्रास उ.न्या. ने कर्मकार माना। बीड़ी कारखाने से पासबुक में दर्ज करवा कर तम्बाकू पत्ता ले जा कर घर से निश्चित गुणवत्ता की बीड़ी बनाने वाले व्यक्तियों को केरल उ.न्या. ने कारखाने का कर्मकार माना है। बैंक द्वारा लघुबचत योजना के लिए घर घर जा कर बैंक के लिए राशि जमा करने वाले एजेंटों को मद्रास उ.न्या. ने कर्मकार माना है।