समस्या-
मैं नवम्बर 2005 से राजस्थान विद्युत् वितरण लि. में हायरिंग ऑफ़ कंप्यूटर की स्वीकृति के अंतर्गत कंप्यूटर ओपेरटर का कार्य करता रहा। हर छह माह बाद स्वीकृति बढ़ा दी जाती थी। परन्तु सन 2010 के अप्रेल से जून तक व अक्टूबर 2011 से मार्च 2012 तक सरकार ने हायरिंग ऑफ़ कंप्यूटर पर रोक लगा दी। जिससे निगम के संबंधित कार्यालय को जॉब आर्डर पर कार्य कराना पड़ रहा है जिसकी स्वीकृति के लिए फाइल उच्चाधिकारियों को स्वीकृति के भेजी गई। तब तक मैं कार्य करचुका था। संबंधित कार्यालय द्वारा मुझे नोटिस देकर कंप्यूटर हटाने को भी नहीं कहा गया। जॉब आर्डर के तहत बाजार रेट से प्रति पेज 10 रूपये के हिसाब से सन 2010 के अप्रेल से जून तक 57.070/- रूपये व अक्टूबर 2011 से मार्च 2012 तक 58,500/- रूपये बनते हैं। ये भुगतान अभी तक नहीं हुआ है और फाइल एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय चक्कर काटती रहती है और कोई न कोई आपत्ति लगा दी जाती है। हमने अप्रेल में कलेक्टर को सुगम के माध्यम से शिकायत की। जिससे अधिकारी और भी नाराज हो गए और मुझे काम से हटा दिया गया। कई ओपेरटरों को अभी लगा रखा है। जिसने शिकायत नहीं की है। श्रीमानजी मेरी समस्या का समाधान करें।
-नरपत गहलोत, तिवँरी, राजस्थान
समाधान-
इस के बाद आप को 10 रुपए प्रति पृष्ठ के हिसाब से जॉब ऑर्डर दे दिया गया हो। यह ऑर्डर लिखित था या मौखिक यह आप के प्रश्न से पता नहीं लग रहा है। यदि यह जॉब आर्डर लिखित था तो इस के अंतर्गत किए गए काम का पैसा लेने के आप अधिकारी हैं। फाइल उन के यहाँ एक टेबल से दूसरी टेबल पर सरक रही है या फिर उस में आपत्तियाँ आ रही हैं यह उन का सिरदर्द है, आप का नहीं।
समस्या यह है कि हमारें यहाँ मजदूरी की कमी है और मजदूर अधिक हैं। सरकार, सरकारी विभाग और कंपनियाँ इस स्थिति का लाभ उठाती हैं। आज कल कामगारों का शोषण करने में वे किसी भी निजि कंपनी से कम नहीं है। अपितु वे यह चारा डाल कर कि आगे पीछे आप को विभाग में नौकरी दे दी जाएगी आप से सस्ती दर पर या फिर बिलकुल मुफ्त में काम कराते रहते हैं। जो ऑपरेटर अभी भी काम कर रहे हैं। उन के बिलों के भुगतान की भी वही स्थिति है जो आप के बिल की है। यदि आप स्थाई होने के लालच में रहे तो आप का शोषण चलता रहेगा। आप एक कंप्यूटर के स्वयं मालिक हैं। खुले बाजार में जाइए और वहाँ दक्षता के साथ काम कीजिए। यदि आप अन्य लोगों से अधिक दक्षता के साथ काम करेंगे तो आप के पास कभी काम की कोई कमी नहीं रहेगी। अन्यथा ये सरकारी विभाग और कंपनियाँ इसी तरह आप का शोषण करती रहेंगी। जो लोग अभी तक विभाग का काम कर रहे हैं उनकी भी स्थिति आप के जैसी है। हो सकता है उन्हें कुछ समय बाद उन के काम का पैसा मिल जाए। यह भी हो सकता है कि उन में से बहुत से लोग पैसा न मिलने के कारण स्वयं काम बंद कर दें। हो सकता है उन्हें कंपनी से कुछ अतिरिक्त लाभ भी मिल जाए पर किसी बात की कोई गारंटी नहीं है।
आप का 1,15,570/- रुपया बिजली कंपनी की ओर बकाया है। आप उस के लिए कंपनी को एक माह या 15 दिनों का नोटिस दे दीजिए। नोटिस की अवधि समाप्त होने पर भी आप का भुगतान न हो तो आप तुरंत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में उक्त रुपया भुगतान कराने के लिए आवेदन कर दीजिए। वहाँ अस्थाई लोक अदालत आप को पैसा दिला देगी, या फिर आप को बता देगी कि वह यह पैसा नहीं दिला सकती और आप को दीवानी वाद करना चाहिए। तो फिर आप बिजली कंपनी के विरुद्ध दीवानी वाद प्रस्तुत कर दें। कहीं ऐसा न हो कि आप कोई कार्यवाही न करें और कानूनी कार्यवाही का समय भी निकल जाए। यदि ऐसा होगा तो फिर आप पूरी तरह बिजली कंपनी के रहमोकरम पर होंगे।