हाल ही में यूरोप के तीन प्रमुख पुस्तक प्रकाशकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय पर मुकदमा किया है जिस में विश्वविद्यालय लायसेंस प्राप्त व्यक्ति द्वारा उन की छात्रोपयोगी पुस्तकों की फोटोकापी करने को कापीराइट का उल्लंघन बताया है। इन प्रकाशकों की आपत्ति को मान लिया जाए जाए तो छात्र उन महंगी पुस्तकों का उपयोग करने से वंचित हो जाएंगे। इस आपत्ति को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन सहित अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने इस आधार पर खारिज कर दिया है कि इस का शैक्षणिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव होगा। लेकिन कुछ लोगों ने उस का उपाय भी सुझाया है कि यदि फोटोकापियाँ प्रकाशकों से लायसेंस प्राप्त कर के की जाएँ तो एक-डेढ़ रुपया प्रति पृष्ट की दर पर छात्रों को उपलब्ध हो सकती हैं और प्रकाशकों को भी उस का लाभ मिल सकता है।
इन दो घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि कापीराइट आम लोगों को प्रभावित करने लगा है और ‘सब चलता है’ कहते हुए कापीराइट का उल्लंघन किया जाना भारी पड़ सकता है। अब आम लोगों को यह जानना जरूरी हो गया है कि कापीराइट क्या है? जिस से वे अपनी अज्ञानता और लापरवाही से यह अपराध करने से बचें।
कापीराइट – एक कानूनी अधिकार
कापीराइट का अधिकार नैसर्गिक या दीवानी अधिकार नहीं है। यह कानून द्वारा प्रदत्त और नियंत्रित है जिस की उत्पत्ति प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार और पुस्तकों की अनियंत्रित प्रतिलिपियाँ बनाए जाने से जुड़ी है। इंग्लेंड के चार्ल्स द्वितीय इस स्थिति से चिंतित हुए और तब 1662 में ब्रिटिश संसद ने ‘लायसेंसिग ऑफ प्रेस एक्ट’ पारित किया। प्रिंटिंग प्रेस और मशीनों के विकास और प्रसार ने धीरे धीरे इस अधिकार की जरूरत को दुनिया भर में पहुँचा दिया और एक के बाद दूसरे देश में इस तरह के कानून बनने लगे। ये कानून कृतिकारों और व्यवसायियों को केवल अपने ही देश में संरक्षण प्रदान कर सके। किसी भी कृति की दूसरे देश में कितनी ही प्रतियाँ बनाई और वितरित की जा सकती थीं। इस पर रोक लगाने के लिए देशों के बीच सन्धियाँ होने लगीं जिन्हें कानून में स्थान दिया जाने लगा। आज लगभग सभी देश कापीराइट पर हुई सन्धियों में से किसी न किसी एक में पक्षकार हैं जिस से इस अधिकार को लगभघ पूरे विश्व में स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। भारत में कापीराइट का आरंभ “भारतीय कापीराइट एक्ट-1914” से हुआ जो उस समय इंग्लेण्ड में प्रचलित अंग्रेजी कानून “कापीराइट एक्ट 1911(य़ू.के)” में मामूली हेर-फेर के साथ बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद भारत को “कापीराइट” पर एक सम्पूर्ण स्वतंत्र कानून की जरूरत महसूस होने लगी। प्रसारण और लिथो फोटोग्राफी जैसे नए, आधुनिक संचार माध्यमों और भारत सरकार द्वारा स्वीकृत अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के निर्वाह के लिए संसद ने “कापीराइट एक्ट, 1957” पारित किया जो समय समय पर बदलती हुई परिस्थितियों के कारण संशोधित किया जाता रहा।
कापीराइट – एक संपत्ति
कापीराइट – कब नहीं रहता
कापीराइट में किसी भी कृति को किसी भी तात्विक रुप में पुनः प्रस्तुत करना या इलेक्ट्रॉनिक विधि से किसी माध्यम में संग्रहीत करना शामिल है। इस के अतिरिक्त किसी कृति की प्रतियाँ जनता में वितरित करना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन या उसे जनता में संप्रेषित करना, उस के संबंध में सिनेमा फिल्म बनाना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन करना, साउंड रिकार्डिंग करना, अनुवाद करना, रूपान्तरण या अनुकूलन करना और किसी कृति के अनुवाद या रुपान्तरण (अनुकूलन) तथा किसी कंप्यूटर प्रोग्राम के सम्बन्ध में उक्त सभी काम करना शामिल है। एक अनुवाद को भी स्वतंत्र मौलिक कृति माना गया है यदि वह मूल कृति के स्वामी की स्वीकृति से किया गया हो। लेकिन किसी सिनेमा फिल्म के महत्वपूर्ण अंश में तथा किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतीय कृति के संबंध में निर्मित साउंड रिकार्डिंग में किसी अन्य कृति के कापीराइट का उलंघन किया गया हो तो इस प्रकार निर्मित किसी भी कृति में कापीराइट स्थित नहीं रहता।
कापीराइट – पंजीकरण जरूरी नहीं
कापीराइट किसी भी कृति के तैयार हो जाने पर या प्रथम प्रकाशन के साथ ही उस में उत्पन्न हो जाता है। इस के रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इस के सबूत के लिए कि किसी विशेष कृति पर किस व्यक्ति का कापीराइट है कापीराइट के रजिस्ट्रेशन के लिए रजिस्ट्रार की व्यवस्था की है इस का देश में एक मात्र कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
कापीराइट – लायसेंस
यदि कोई व्यक्ति कापीराइट के स्वामी की अनुमति के बिना या कापीराइट पंजीयक से लायसेंस प्राप्त किये बिना कृति का उपयोग करता है या लायसेंस की शर्तों का उल्लंघन करता है या वह उस कृति की उलंघनकारी प्रतियाँ बेचने के लिए बनाता है, या भाड़े पर लेता है, या व्यवसाय के लिये प्रदर्शित करता है या बेचने या भाड़े पर देने का प्रस्ताव करता है, या व्यवसाय के लिये या इस हद तक वितरित करता है जिस से कापीराइट का स्वामी प्रतिकूल रुप से प्रभावित हो, या व्यावसायिक रुप से सार्वजनिक रुप से प्रदर्शित करता है तो यह उस कृति में कापीराइट का उलंघन है।
कापीराइट – कैसे बना कानून?
कापीराइट – उलंघन पर उपाय
कापीराइट के उल्लंघन से संबंधित मामलों में उसे रोकने के लिए निषेधाज्ञा प्राप्त करने, क्षतिपूर्ति प्राप्त करने, हिसाब किताब मांगने आदि अनेक उद्देश्यों के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इसी तरह कापीराइट के अनेक प्रकार के उलंघनों को अपराध बनाया गया है। आरोप सिद्ध हो जाने पर अभियुक्त को जुर्माने से लेकर तीन वर्ष तक के कारावास के दंड दंडित किया जा सकता है।
कापीराइट – रॉयल्टी की नई व्यवस्था
कापीराइट कानून से जहाँ कृतिकारों को उन के द्वारा कृति के निर्माण पर जो श्रम किया जाता है उस का उचित मूल्य और रायल्टी मिलने लगी है उस से कृतिकारों को राहत प्राप्त हुई है। लेकिन इस में अनेक कमियाँ भी हैं। अधिकांश कलाकारों से निश्चित शुल्क पर काम करवा कर कृतियों का निर्माण करवा कर व्यवसायी कृति में उत्पन्न स्वामित्व का लाभ जीवन भर उठाते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए 2012 में कानून को संशोधित किया गया। अब इस तरह के कुछ विशिष्ट प्रकार के कार्यों के लिए कलाकारों को जीवन भर उन के योगदान से बनी कृतियों पर रायल्टी की व्यवस्था की गई है। लेकिन इस कानून से ज्ञान, कला और शिक्षा के विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई है। इस मामले में विद्वान अनेक प्रकार के मत रखते हैं। कुछ इस के समर्थक हैं तो सामाजिक आंदोलनों के अधिकांश नेता इस का विरोध भी करते हैं। महात्मा गांधी का विचार था कि सर्वोत्तम तो यह है कि स्वयं कृतिकार ही अपने जीवन काल में उचित परिस्थितियों में कृति पर से अपना कापीराइट सार्वजनिक हित में त्याग दे और उसे आम जनता के लिए सुलभ बना दे।