श्री मोहित वर्मा के प्रश्न इस प्रकार हैं – – –
मैं एक अधिवक्ता हूँ और इसी वर्ष से वकालत आरंभ की है, मेरे कुछ प्रश्न हैं …….
1. क्या धारा 145 दंड प्रक्रिया संहिता के मुकदमे को अन्य मजिस्ट्रेट के यहाँ स्थानांतरित कराने के लिए जिला न्यायाधीश के यहाँ धारा 408 दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना उचित है? अथवा धारा 411 के अंतर्गत इसे स्थानांतरित कराने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के यहाँ आवेदन करना उचित है? हम ने मुकदमे के स्थानान्तरण के लिए जिला न्यायाधीश के यहाँ आवेदन प्रस्तुत किया जिस पर कहा कि आप हमें कोई फैसला बताइए जिस से यह आवेदन स्वीकार किया जा सके। क्या आप हमें कोई निर्णय बता सकते हैं?
2. मैं ने एक मुकदमा धारा 145 के अंतर्गत उपजिला मजिस्ट्रेट के यहाँ प्रस्तुत किया जिस में धारा 146 के अंतर्गत संपत्ति को कुर्क कर लिया गया और सुपुर्दगीदार के कब्जे में दे दी गई। बाद में मैं ने एक दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में प्रस्तुत किया जिस में कमीशन नियुक्त किया और उस ने मौका मुआयना किया। कमिश्नर ने यह नहीं बताया कि संपत्ति सुपूर्दगीदार के कब्जे में है। दीवानी न्यायालय ने यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश पारित कर दिया। इस आदेश का उपजिला मजिस्ट्रेट के यहाँ चल रहे मुकदमे पर क्या असर होगा?
उत्तर – – –
मोहित जी,
तीसरा खंबा में कानूनी सलाह का मंच साधारण नागरिकों के प्रश्नों के लिए है। न कि वकीलों के विचार विमर्श के लिए। यदि आप और तीसरा खंबा से जुड़े कुछ वकील चाहें तो कानूनी बिंदुओं पर आपसी विचार विमर्श के लिए हम कोई गूगल ग्रुप बना सकते हैं। इस बार ये प्रश्न ऐसे हैं जिन के उत्तरों से साधारण पाठक भी लाभान्वित हो सकते हैं। इस कारण आप के प्रश्नों का उत्तर यहां दिया जा रहा है।
आप के पहले प्रश्न का उत्तर यह है कि किसी भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के यहाँ लंबित मुकदमे को जिला मजिस्ट्रेट अपने यहाँ मंगा सकता है, उसे खुद सुन सकता है या फिर किसी अन्य मजिस्ट्रेट को सुनवाई के लिए भेज सकता है। इस तरह धारा 411 में जिला मजिस्ट्रेट को जो शक्तियाँ प्रदान की गई हैं वे सीधे-सीधे स्थानांतरण की शक्तियाँ नहीं हैं। यहाँ आप यह प्रार्थना कर सकते हैं कि मामले की पत्रावली आप के न्यायालय में मंगाई जाए और आप के द्वारा सुनवाई की जाए अथवा किसी दूसरे कार्यपालक मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित की जाए। लेकिन इस से आप का स्थानांतरण का उद्देश्य पूरा हो सकता है।
इस के समानांतर सत्र न्यायालय को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह उस के अधीनस्थ किसी भी दंड न्यायालय में लंबित प्रकरण को उस के अधीनस्थ किसी भी अन्य दंड न्यायालय को स्थानांतरित कर सकता है। इस तरह सत्र न्यायालय को इस तरह के किसी भी मुकदमे को स्थानांतरित करने की शक्ति प्राप्त है। इस तरह आप का आवेदन जो सत्र न्यायालय (आपने गलती से जिसे जिला न्यायाधीश लिखा है) के समक्ष प्रस्तुत किया है वह पोषणीय है और आप को उस में राहत प्राप्त हो सकती है। इस संबंध में आप केरल उच्च न्यायालय का का निर्णय कृष्णा पनिक्कर बनाम केरल राज्य 1981 CriLJ 1793 प्रदर्शित कर सकते हैं। जो यहाँ मुकदमे के उनवान पर चटका लगा कर पढ़ा जा सकता है।
आप का दूसरा प्रश्न यह है कि दीवानी न्यायालय के यथास्थिति बनाए रखने के निर्णय का कार्यपालक न्यायालय में चल रहे मुकदमे पर क्या असर होगा? तो यथा स्थिति का अर्थ है कि आप ने अस्थाई व्यादेश के आवेदन के निस्तारण तक यह अंतरिम आदेश प्राप्त किया है। आप को दीवानी न्यायालय को वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहिए और अस्थाई व्यादेश का उचित आदेश प्राप्त करना चाहिए। तब तक यथा स्थिति के आदेश का असर यह होगा कि संपत्ति सुपूर्दगीदार की अभिरक्षा में बनी रहेगी। उपजिला मजिस्ट्रेट की अदालत की कार्यवाही को स्थगित करने की मंशा इस आदेश में नहीं है वह यथावत चलती रहेगी और वह अपना निर्णय दे सकेगा। यदि वह न्यायालय चाहे तो यह निर्णय भी दे सकता है कि दीवानी न्यायालय से अंतिम निर्णय होने तक संपत्ति सुपूर्दगीदार के कब्जे में बनी रहे।