धारा 383. उद्दापन, फिरौती (Extortion)
जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में साशय डालता है, और तद्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह ‘उद्दापन’ करता है।
- धारा 384 के अंतर्गत उद्दापन का यह अपराध तीन वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास व जुर्माने से दंडनीय है।
- धारा 385 के अंतर्गत उद्दापन करने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति किसी को भय में डालेगा या डालने का प्रयास करेगा तो उस का अपराध दो वर्ष के सश्रम या साधारण कारावास या जुर्माने से दंडनीय है।
- धारा 386 के अंतर्गत मृत्यु या घोर उपहति के भय में डाल कर उद्दापन करने वाले का अपराध दस वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है।
- धारा 387 के अंतर्गत उद्दापन के उद्देश्य से मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालने का अपराध सात वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है।
- धारा 388 के अंतर्गत मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष तक दंड से दंडनीय अपराध के अभियोजन की धमकी देकर उद्दापन करने का अपराध दस वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है। यदि जिस अपराध के अभियोजन का भय दिखाया गया है वह धारा 377 के अधीन दंडनीय है तो वह आजीवन कारावास से दंडनीय होगा।
- धारा 389 के अंतर्गत धारा 388 के अंतर्गत वर्णित अपराध करने के लिए भय दिखलाने का प्रयत्न करने पर भी दंड धारा 388 के अनुरूप ही होगा।
उक्त अपराधों में से धारा 386 व 387 के अंतर्गत वर्णित अपराध अजमानतीय हैं। अर्थात उन में पुलिस किसी अभियुक्त को जमानत पर नहीं छोड़ सकती, केवल न्यायालय ही अभियुक्त को जमानत पर छोड़े जाने के लिए विचार कर सकता है। लेकिन अन्य अपराधों के मामले में पुलिस को अभियुक्त द्वारा जमानत प्रस्तुत करने पर उसे रिहा करना होगा क्यों कि अन्य सभी अपराध जमानतीय हैं।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो गया होगा कि आप को धमकी दे कर और आप का उद्दापन कर के कथित पत्रकारों ने क्या अपराध किया है। ये सभी अपराध संज्ञेय अपराध हैं, जिस के कारण पुलिस को सूचना देने पर पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर के अन्वेषण कर सकती है और अपराध होना पाया जाने पर अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती है। यदि पुलिस आप की सूचना पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है तो आप ये सूचना रजिस्टर्ड ए.डी. डाक के माध्यम से संबंधित पुलिस अधीक्षक को प्रेषित कर सकते हैं। उस पर भी कार्यवाही न होने पर आप सीधे न्यायालय को परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं।