तीसरा खंबा

किसी विलेख का चरित्र उस की विषय वस्तु से निर्धारित होता है, शीर्षक से नहीं।

rp_real8.jpgसमस्या-

राजेन्द्र सिंह ने रतलाम, मध्यप्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरे दादाजी के 2 पुत्र थे, 1 मेरे पिताजी ओर दूसरे मेरे चाचजी। मेरे दादाजी ने 3 प्रॉपर्टी खरीदी थी, जिस में से 2 प्रॉपर्टी खुद दादाजी के नाम से थी और 1 प्रॉपर्टी मेरे चाचजी के नाम पर 1966 में ली थी। जब कि उस समय चाचाजी नाबालिग थे और सरपरस्त दादाजी ही थे। 1988 में दादाजी ने 1 नोटरी आधारित आपसी बटवारा विलेख पत्र तैयार किया, जिस में उन्होने सफ सफ लिखा था कि मेरी सारी प्रॉपर्टी में आधा-आधा हिस्सा मेरे दोनो बेटों का रहेगा (चाचजी क नाम वाली का भी) जिस में सभी के सिग्नेचर भी हैं, दादाजी के, पिताजी के, ओर चाचजी के भी। पर अब मेरे दादाजी, पिताजी, चाचाजी का देहांत हो गया है और अब मेरे चाचाजी की पत्नी (चाची जी) मुझे प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दे रही है, तो मैं वो कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?

समाधान

प के दादा जी द्वारा खरीदी गयी दो प्रापर्टी तो खुद उन के नाम की हैं। तीसरी प्रापर्टी जो चाचा जी के नाम से खरीदी गयी है वह बेनामी है। बेनामी प्रोपर्टी के संबंध में उक्त नोटेरी वाला बंटवारा विलेख इस कारण से लिखाया गया होगा कि 1988 में बेनामी ट्रांजेक्शन्स (प्रोहिबिशन) एक्ट प्रभावी हुआ था। जिस में बेनामी ट्रांजेक्शन्स पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह प्रावधान किया गया था कि जो संपत्ति रजिस्ट्री के दस्तावेजों में जिस के नाम है उसी के स्वामित्व की मानी जाएगी। लेकिन संयुक्त हिन्दू परिवार के किसी सदस्य के नाम से कोई प्रोपर्टी खरीदी जाती है और वह सारे परिवार के हितार्थ खऱीदी जाती है तो वह सारे परिवार की संपत्ति होगी।

जिस दस्तावेज का आप बंटवारा विलेख पत्र कह कर उल्लेख कर रहे हैं वह बंटवारा विलेख नहीं है। यदि बंटवारा विलेख होता तो उसे पंजीकृत होना जरूरी है। पंजीकरण के अभाव में उसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना संभव नहीं होगा। वस्तुतः वह एक वसीयत है जिस में सभी उत्तराधिकारियों के हस्ताक्षर कराए गए हैं जिस से इस तथ्य की पुष्टि हो जाए कि जो जमीन चाचा जी के नाम से खरीदी गयी थी वह भी दादाजी की ही थी तथा सारे परिवार के हितार्थ खरीदी गयी थी। हो सकता है उस दस्तावेज पर बंटवारानामा अंकित हो। लेकिन उस से कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्यों कि किसी विलेख का चरित्र क्या है यह उस विलेख के शीर्षक से नहीं अपितु उस में लिखी गयी विषय वस्तु (इबारत) से निर्धारित होता है।

स आधार पर सारी संपत्ति आप के दादा जी की सिद्ध होती है। आप को चाहिए कि आप उक्त संपूर्ण संपत्ति के बंटवारे का वाद प्रस्तुत करें और इस संपत्ति में से जो भी संपत्ति आप के कब्जे में हो उस पर कब्जा बनाए रखें।

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