समस्या-
जबलपुर, मध्यप्रदेश से संदीप ने पूछा है-
मेरा विवाह मई 2007 में हुआ था। पत्नी के साथ विवाद हुआ। स्थिति यह है कि मैं अपनी पत्नी के साथ किसी स्थिति में नहीं रह सकता। वर्तमान में मैं धारा 125 दं.प्र.सं. के आदेश के अनुसार पत्नी को गुजारा भत्ता दे रहा हूँ। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत प्रकरण 2010 से लंबित है। मेरी माता जी की उम्र 65 वर्ष है वे हृदयरोग की रोगी हैं। पिता जी का देहान्त हो चुका है। माताजी घर का सारा कार्य करती हैं। उन की स्थिति दयनीय है वह दिन-रात मेरे भविष्य को ले कर चिंतित रहती हैं। नाम नौकरी पेशा हूँ। मेरी माताजी की देखभाल करने वाला घर में कोई नहीं है। क्या मेरा मामला न्यायालय में लंबित रहते हुए मुझे दूसरे विवाह की अनुमति प्राप्त हो सकती है। जिस से मेरी दूसरी पत्नी मेरी मातजी की देखभाल कर सके और धारा 494 दंड प्रक्रिया संहिता का अपराध करने से बच सकूँ।
समाधान-
सारा दोष इस बात का है कि हमारे न्यायालय वैवाहिक मामलों में शीघ्र निर्णय नहीं करते। होना तो यह चाहिए कि किसी भी वैवाहिक मामले में एक वर्ष की अवधि में निर्णय हो जाए और एक वर्ष में अपील। लेकिन जितनी संख्या में वैवाहिक विवाद सामने आते हैं उतनी संख्या में न्यायालय नहीं है। न्यायालयों की स्थापना का कर्तव्य राज्य सरकारों का है। लेकिन राज्य सरकारें इस ओर ध्यान नहीं देतीं। इस तरह आप जैसे लोगों और उन के आश्रितों का जीवन यदि दुष्कर हो रहा है तो उस की जिम्मेदार राज्य सरकारें हैं।
एक हमारी सोच का भी दोष है। हम सोचते हैं कि पत्नी घर को संभालने के लिए होती है। लेकिन आज कल लड़कियाँ भी ऐसा ही सोचती हों यह सही नहीं है। बहुत सी महिलाएँ इसे घरेलू सेविकाओं का काम समझती हैं। अनेक महिलाएँ विवाह के बाद अपना घर परिवार संभालती हैं बहुत नहीं संभालती हैं। आप दूसरा विवाह करें और फिर वही किस्सा हो जो पहली बार हुआ है तो फिर आप क्या करेंगे?
मेरी राय में आप का विवाह विच्छेद हुए बिना आप का दूसरा विवाह करना और उस के बारे में सोचना सही नहीं है। आप यह कर सकते हैं कि अपनी परिस्थितियों का वर्णन करते हुए जिस न्यायालय में आप का मामला लंबित है उसे एक आवेदन दें कि परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय आप के मामले का निपटारा शीघ्र करने के लिए आप के मुकदमे की सुनवाई दिन प्रतिदिन के आधार पर करे। यदि न्यायालय आप के निवेदन को स्वीकार कर लेता है तो आप को शीघ्र विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो जाएगी। यदि न्यायालय आप के आवेदन को अस्वीकार करता है तो आप उस के आदेश के विरुद्ध एक रिट याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर निवेदन कर सकते हैं कि वह न्यायालय को निर्देश दे कि वह आप के मामले की सुनवाई दिन प्रतिदिन के आधार पर करे। तब तक आप अपनी माता जी की सहायता कि लिए किसी विश्वसनीय घरेलू सेविका की व्यवस्था कर सकते हैं।