तीसरा खंबा

क्या जमानत पर छूट जाने पर भी जमानत निरस्त हो सकती है?

 रामस्वरूप पाठक ने पूछा है –
में धारा 304 बी, 498 ए भा.दं.सं. के प्रकरण में सत्र न्यायालय से जमानत मिल चुकी है। लेकिन शिकायतकर्ता पक्ष द्वारा हमारी जमानत निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन किया है। क्या उच्च न्यायालय हमारी जमानत निरस्त कर सकता है?
 उत्तर- 
रामस्वरूप जी,
न्यायालयों को किसी भी मुकदमे का निर्णय होने में समय लगता है, यदि विचारण के उपरान्त अभियुक्त निरपराध पाया जाए और उसे पहले ही एक लंबे समय तक जेल में रख लिया गया हो तो किसी भी भाँति उसे वह समय नहीं लौटाया जा सकता जो वह जेल में बिता चुका है, न ही उस की समुचित क्षतिपूर्ति की जा सकती है।   इस कारण से किसी भी मामले में जमानत दिया जाना एक सामान्य नियम है, केवल अत्यन्त गंभीर मामलों में ही जमानत के आवेदन निरस्त किए जाते हैं। एक बार जमानत हो जाने पर उसे निरस्त किया जाना उस से भी कठिन है।
दौलत राम व अन्य बनाम हरियाणा राज्य (1995) सुप्रीम कोर्ट केसेज 349 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णीत किया है कि किसी भी मामले में जमानत लिए जाने से इन्कार करने और एक बार जमानत का आदेश हो जाने पर उसे निरस्त करने के आधार एक जैसे नहीं हो सकते। एक बार जमानत हो जाने पर केवल निश्चयात्मक और असाधारण परिस्थितियों में ही जमानत को निरस्त किए जाने का आदेश प्रदान किया जा सकता है।  इस के लिए केवल यही आधार हो सकते हैं कि अभियुक्त साक्षियों को प्रभावित कर अथवा अन्य किसी प्रकार से न्याय की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रहा हो या फिर उस के न्याय से भाग जाने की संभावना हो। महबूब दाऊद शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य के महबूब दाऊद शैख बनाम महाराष्ट्र राज्य  के मामले में भी पुनः सुप्रीम कोर्ट ने यही निर्धारित किया है कि यदि अभियुक्त साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयत्न कर रहा है या गवाहों को धमकाने की कोशिश करता है या फिर अन्वेषण को प्रभावित करता है तो ही जमानत को निरस्त किया जा सकता है।  
 
स तरह जब तक कि अभियुक्त स्वयं न्याय की प्रक्रिया से पलायन नहीं कर रहा हो और उस में बाधा उत्पन्न नहीं कर रहा हो तब तक उसे इस बात से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है कि उस की जमानत निरस्त कर दी जाएगी। यदि ऐसा है तो आप भी निश्चिंत रह सकते हैं। 
 

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