तीसरा खंबा

क्या द्वेष के कारण फँसाए गए व्यक्ति को भी सजा मिलेगी?

 राजीव ने पूछा है –

भारतीय कानून में किसी के अपराध का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है? किसी को दोषी ठहराने के लिए क्या कानून में पर्याप्त सबूत की आवश्यकता होती है? क्या कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी व्यक्ति को द्वेष के कारण फँसा दे तो भी क्या उस निर्दोष को सजा मिलेगी?

 उत्तर –

राजीव जी,

भारतीय दंड व्यवस्था का मूल सिद्धान्त है कि चाहे सौ अपराधी सजा न पाएँ लेकिन एक भी निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए। यही कारण है कि जब तक अभियोजन पक्ष न्यायालय के समक्ष संदेह से परे यह साबित नहीं कर देता है कि आरोपित अपराध अभियुक्त ने किया है तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती। किसी भी व्यक्ति को उस के द्वारा किए गए अपराध का दंड देने के लिए अभियोजन पक्ष के लिए आवश्यक है कि वह अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत जुटाए, उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए साक्ष्य संदेह से परे यह साबित करते हों कि अपराध अभियुक्त ने ही किया है तभी उसे दंडित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। 
भारतीय दंड व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति जिसे इस बात की जानकारी है कि अपराध घटित हुआ है उस की सूचना पुलिस को दे सकता है। पुलिस को लगता है कि इस प्रकार प्राप्त सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का होना प्रकट होता है तो वह उस की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करती है, उस की एक प्रति 24 घंटों के भीतर अपने क्षेत्र के न्यायालय को प्रेषित करती है तथा अन्वेषण आरंभ करती है। अन्वेषण में यदि पर्याप्त सबूत पाए जाते हैं कि अपराध किसी व्यक्ति ने किया है तो तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों के साथ आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। 

न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत हो जाने के उपरान्त सब से पहले न्यायालय अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय करता है। आरोप तय करने की इस प्रक्रिया में अभियुक्त को इस बात का अवसर होता है कि वह न्यायालय के समक्ष अपने तर्क प्रस्तुत कर के यह बता सकता है कि पुलिस ने जो आरोप पत्र के साथ जो सबूत और गवाहों के बयान प्रस्तुत किए हैं वे किसी प्रकार से यह प्रकट नहीं करते कि अपराध हुआ है और यदि अपराध हुआ है तो भी अभियुक्त द्वारा उस का किया जाना प्रकट नहीं होता। इन तर्कों को सुनने के उपरान्त यदि न्यायालय यह पाता है कि आरोप पत्र से अभियुक्त द्वारा अपराध किया जाना प्रकट नहीं हो रहा है तो न्यायालय उसी स्तर पर अभियुक्त को दोषमुक्त कर देता है।

दि न्यायालय यह पाता है कि आरोप पत्र में अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजन चलाए जाने के लिए पर्याप्त सबूत और साक्ष्य उपलब्ध हैं तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोपों की विरचना कर उसे आरोप उसे समझा कर सुनाता है और पूछता है कि वे अपने विरुद्ध आरोप को स्वीकार करना चाहते हैं या फिर अन्वीक्षा चाहते हैं। यदि अभियुक्त आरोपों को अस्वीकार कर देता है तब उन आरोपों पर विचारण हो