तीसरा खंबा

क्या वकीलों की पोशाकें न्याय प्रणाली और समाज के बीच अवरोध हैं?

न्यायाधीशों और वकीलों ने काले कोट वाली पोशाक  इंग्लेंड में पहली बार 1685 ईस्वी में किंग जॉर्ज द्वितीय की मृत्यु पर शोक संकेत के लिए अपनाई थी। तब यह विश्वास किया जाता था कि काला गाउन और विग जजों और न्यायाधीशों को गुमनामी की पहचान देती है। कुछ भी  हो काला कोट वकीलों और न्यायाधीशों की पोशाक में ऐसा सम्मिलित हुआ कि  ब्रिटिश साम्राज्य के साथ यह सारी दुनिया में पहुँच गया। न्याय करने का दायित्व और अधिकार सामंती समाज में राजा का होता था। लेकिन राज्य के विस्तार के साथ यह संभव नहीं रह गया था कि राजा ही सब स्तरों पर न्याय करेगा। इस के लिए राजा को बहुत से न्यायाधिकारी नियुक्त करने होते थे। हालांकि अंतिम अपील राजा को  ही की जा सकती थी। इस तरह एक न्यायाधिकारी राजा के प्रतिनिधि के रूप में ही न्याय करता था। जिस तरह राजा अपने दरबार में विशिष्ठ पोशाक में होता था और दरबार में उपस्थित होने वाले दरबारी भी केवल विशिष्ठ पोशाक में ही दरबार में उपस्थित हो सकते थे। इस तरह राजा और दरबारियों की पोशाक राज्य की शक्ति का प्रतीक थी। राजा के प्रतिनिधि के रूप में न्यायाधीश की पोशाक भी इसी तरह से शक्ति का प्रतीक थी। वकालत के पेशे का आरंभ वकील न्यायार्थियों के पैरोकार नहीं हुआ करते थे, बल्कि वे न्यायाधीश को न्याय करने में सक्षम बनाने के लिए उस के सलाहकार हुआ करते थे। कालांतर में कुछ लोगों को न्यायार्थियों का पक्ष न्यायाधीश के समक्ष रखने की अनुमति  मिलने लगी। केवल वे ही व्यक्ति जो न्यायाधीश या राज्य की ओर से अधिकृत थे किसी पक्षकार की पैरवी कर सकते थे। आरंभ में न्यायाधीशों के सलाहकारों को ही इस तरह का अधिकार प्राप्त हुआ। इस तरह काला कोट वकीलों की भी पोशाक बन गई। 
लेकिन वे सामंती राज्यों के अथवा साम्राज्य के न्यायालय थे।  वहाँ न्यायाधीशों और वकीलों की पोशाकें शक्ति का प्रतीक थीं। ये पोशाकें  आम जनता को राज्य की शक्ति का लगातार अहसास कराती थीं। लेकिन अब  तो यह जनतंत्र का युग है। उन की पोशाकों को शक्ति का प्रतीक होना आवश्यक नहीं है उसे तो जनता के बीच न्याय का प्रतीक होना चाहिए। लेकिन फिर भी सामंती और साम्राज्यवादी शक्ति का प्रतीक ये पोशाकें न्यायालयों की शोभा बढ़ा रही हैं। निश्चित रूप से आज इस पोशाक को कोई भी इस रूप में न तो व्याख्यायित करना चाहता है और न ही करना चाहेगा। लेकिन उस के लिए कुछ नए तर्क सामने आने लगे हैं। अब यह कहा जाता है कि ये पोशाकें आप शक्ति का प्रतीक नहीं बल्कि वकीलों के बीच अनुशासन पैदा करती हैं और उन्हें न्याय के लिए लड़ने को प्रेरित करती हैं। यह भी कहा जाता है कि यह पोशाक उन्हें अन्य प्रोफेशन वाले लोगों से अलग पहचान देती है। यह भी कहा जाता है कि काला रंग न्याय का प्रतीक है जब कि सफेद रंग के बैंड्स शुद्धता और निर्लिप्तता का अहसास कराते हैं। 
न सब तर्कों के होते हुए भी भारत के वकील काले कोट में असुविधा महसूस करते हैं। वस्तुतः भारत के गर्म वातावरण में काला कोट पहन कर वकील स्वयं अपने शरीर के साथ क्रूरता का व्यवहार करते हुए उस का शोषण करते हैं। बहुत से वकीलों से पूछने पर पता लगा कि वे यह महसूस करते हैं कि काला कोट उन के लिए पहचान बन गया है। भीड़ भरे न्यायालय परिसरों में उन की पहचान केवल काले कोट से ही हो प