समस्या –
हाथरस, उत्तर प्रदेश से प्रवीण पाठक ने पूछा है –
क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है? यदि हाँ तो किस आधार पर?
समाधान-
क्या विवाह के उपरान्त भी एक लड़का अपने पिता के घर रह सकता है? क्या उसे ऐसा अधिकार है? क्या वह अपनी पत्नी को छोड़ कर पिता के घर रह सकता है? क्या विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्र को अपने घर रखने का अधिकार है? हमें आश्चर्य नहीं है कि इस तरह के प्रश्न लड़कों/पुरुषों के संबंध में आम तौर पर नहीं पूछे जाते। यहाँ तक कि इस तरह के प्रश्न किसी के मस्तिष्क में उत्पन्न ही नहीं होते। उस का मुख्य कारण है कि हमारा समाज ही नहीं वरन् दुनिया भर का समाज पुरुष प्रधान समाज है। इस समाज की सामान्य मान्यता है कि विवाह के उपरान्त स्त्री को उस के पति के घर जा कर रहना चाहिए। पिता के घर और संपत्ति पर विवाह के उपरान्त स्त्री का कोई अधिकार नहीं है। वर्तमान पुरुष प्रधान समाज स्त्री को मानुष ही नहीं समझता। वह समझता है कि स्त्री एक माल है। वह समझता ही नहीं है अपितु उस के लिए इस शब्द का प्रयोग भी करता है।
लेकिन समाज में उपस्थित जनतांत्रिक, समतावादी, साम्यवादी और स्त्री मुक्ति आंदोलन ने स्थिति को बदला है। इस बदलाव का परिणाम यह हुआ कि भारत के संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान दर्जा दिया। उस के बाद कानूनों के बदलने का सिलसिला आरंभ हुआ। एक हद तक कानून बदले गए। लेकिन आज भी कानून के समक्ष स्त्री को पुरुष के समान दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। हम आप के प्रश्न के संदर्भों में कानूनी स्थिति पर विचार करते हैं।
लेकिन यदि कोई स्त्री अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के साथ रहती है तो कानूनी समस्या उत्पन्न होती है। प्रत्येक विवाहित स्त्री व पुरुष का यह दायित्व है कि वह अपने जीवनसाथी के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करे। लेकिन इस से उस निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है। पति यह कह सकता है कि पत्नी सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नहीं कर रही है। वह कानून के समक्ष पत्नी से सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने की डिक्री प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय इस आवेदन को स्वीकार कर पत्नी को पति के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन निर्वाह करने का आदेश डिक्री के माध्यम से दे सकता है। लेकिन न्यायालय ऐसा तभी कर सकता है जब कि पत्नी के पास अपने पति से अलग निवास करने का उचित कारण उपलब्ध न हो। पत्नी को ऐसा आदेश दे दिए जाने पर भी यदि पत्नी पति के साथ निवास नहीं करना चाहती है तो ऐसे आदेश की जबरन पालना नहीं कराई जा सकती है। ऐसे आदेश का प्रभाव मात्र इतना होता है कि पति को पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है।
एक अन्य स्थिति यह हो सकती है कि विवाहित पुत्री पिता के घर रहना चाहती है लेकिन पिता इस के लिए तैयार नहीं है। वैसी स्थिति में पुत्री को यह अधिकार नहीं कि वह पिता के घर निवास कर सके। यदि विवाहित पुत्री असहाय है और उस का पति भी उस का भरण पोषण करने व आश्रय देने में सक्षम नहीं है तो वह पिता से भरण पोषण व आश्रय की मांग कर सकती है और इस के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। न्यायालय पिता की क्षमता को देख कर उचित आदेश प्रदान कर सकता है।
सब से विकट स्थिति तो तब उत्पन्न होती है जब किसी स्त्री को अपने पति का आश्रय भी नहीं मिलता और पिता भी आश्रय देने को तैयार नहीं होता। वैसी स्थिति में यदि स्त्री स्वयं अपना भरण पोषण करने में समर्थ न हो तो उसे दर दर की ठोकरें खाने को विवश होना पड़ता है। इस कारण यह जरूरी है कि प्रत्येक स्त्री अपने पैरों पर खड़ी हो और अपना भरण पोषण करने में सक्षम बने। स्त्री मुक्ति का एक मात्र उपाय यही है कि स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी हों।