तीसरा खंबा

गरीबी बुनियादी मानव अधिकारों का उल्लंघन ….. एसएच कपाड़िया

भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने शनिवार को कहा कि गरीबी बुनियादी मानव अधिकारों का उल्लंघन है और मुद्दे से निपटने के लिए ठोस और व्यवस्थित प्रयासों की आवश्यकता है।  वे औरंगाबाद में बाबासाहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय और वी.आर. पंडित मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित समारोह में संवैधानिक नैतिकता पर एक व्याख्यान में विचार व्यक्त कर रहे थे।  बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहित शाह ने इस समारोह की अध्यक्षता की।  उन्हों ने स्कूलों में एक विषय के रूप में संविधान के अध्ययन की जरूरत को रेखांकित किया और कहा कि हर किसी को संविधान पढ़ना और उस का पालन करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सरकार से सब कुछ की उम्मीद करना एक गलत प्रवृत्ति है।  “हम सरकार से बहुत सारी बातें करने की उम्मीद करते हैं।  हमारी जनसंख्या 120 करोड़ से अधिक है और 40,000 बच्चों को हर मिनट पैदा होते हैं।  कुल जनसंख्या के केवल 3% लोग की व्यक्तिगत आयकर का भुगतान करते हैं। इनमें भी 2% वेतनभोगी कर्मचारी हैं।  हम इस परदृश्य में कहाँ से इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए संसाधन जुटाएंगे।  हमें भी अपने कर्तव्यों की बात भी करनी चाहिए जब हम अपने अधिकारों के बारे में बात करते हैं, दोनों चीजें एक साथ ही चल सकती हैं।  उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों से अनजान हैं।”

कपाड़िया ने कहा कि “मुझे सर्वोच्च न्यायालय में रोज ही संविधान से परामर्श करना होता है।  मैं जितना अधिक इसे पढ़ता हूँ उतना ही इस के वास्तुकार बी.आर. अम्बेडकर का सम्मान मेरे मन में मजबूत होता जाता है।   मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश तक की अपनी विकासयात्रा का श्रेय संविधान को देना चाहता हूँ।  मैं एक नगण्य जनसंख्या वाला अल्पसंख्यक हूँ और मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत की तुलना में किसी अन्य देश में मुख्य न्यायाधीश बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती।  यह भारत में ही संभव है।”

उन्होंने छात्रों, वकीलों और न्यायाधीशों से आग्रह किया कि उन्हें ज्ञान प्राप्त करने पर, विशेष रूप से नियामक कानून का अध्ययन करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।  उन्हों ने न्यायाधीशों और वकीलों से अर्थशास्त्र के अध्ययन करने का आग्रह किया ताकि उन्हें कोई गुमराह नहीं कर सके।

न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, वह एक जीवित दस्तावेज है। उन्हों ने न्यायाधीशों से कहा कि वे निडर हो कर निर्णय प्रदान करें। असफलता के डर से सार्वजनिक कार्यालयों का  निर्णय नहीं लेना ठीक नहीं।  उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि न्यायाधीशों को कानून के छात्रों के लिए व्याख्यान देने चाहिए।

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