तीसरा खंबा

गिरफ्तारी पूर्व (अग्रिम) जमानत की सुविधा

दंड प्रक्रिया संहिता व अन्य कानूनों से प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत पुलिस अधिकारी अपराधियों, संदिग्ध अपराधियों और कुछ अन्य कारणों से किसी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकते हैं। जब भी किसी संज्ञेय मामले की सूचना पुलिस को प्राप्त होती है और पुलिस समझती है कि अपराध घटित हुआ है तो वह उस सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में अपने यहाँ पंजीकृत करती है तथा अन्वेषण आरंभ करती है। यदि उसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना हुआ तो जमानतीय अपराधों के मामले में उस से स्वयं पुलिस जमानत पर छूटने के लिए पूछती है और उस व्यक्ति द्वारा जमानत प्रस्तुत कर देने पर उसे रिहा कर देती है। लेकिन जो मामले अजमानतीय हैं, उन में वह किसी भी अभियुक्त को जमानत पर रिहा नहीं कर सकती। गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटों की अवधि में किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और वहाँ वह यह निर्णय करता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा में रखा जाए अथवा नहीं। यदि उसे पुलिस अभिरक्षा में रखना उचित नहीं पाया जाता है तो उसे फिर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया जाता है। न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के आदेश के तुरंत बाद गिरफ्तार व्यक्ति मजिस्ट्रेट से जमानत पर छोड़ने का आवेदन कर सकता है।
दि किसी व्यक्ति को यह आशंका हो कि किसी शत्रुता, प्रतिद्वंदिता और किसी अन्य कारण से कोई मिथ्या या बनावटी मामला बनाया जा कर पुलिस द्वारा उसे किसी मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है, इस तरह उसे परेशान किया जा सकता है, उसे आर्थिक और मानसिक क्षति पहुँचाई जा सकती है, उस को अपमानित किया जा सकता है या उस की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाई जा सकती है तो दं.प्र.संहिता की धारा 438 में यह प्रावधान है कि ऐसा व्यक्ति सेशन न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए निवेदन कर सकता है। गिरफ्तारी पूर्व जमानत के किसी आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को अभियोग की प्रकृति और गंभीरता, आवेदक का इतिहास कि उस का पूर्व रिकॉर्ड कैसा रहा है, कहीं वह किसी संज्ञेय अपराध में पहले कभी दोषी तो सिद्ध नहीं हुआ है, उस की न्याय से भागने की संभावना तो नहीं है आदि तथ्यों पर विचार करने के उपरांत यह आदेश दे सकता है कि यदि पुलिस को आवेदक को गिरफ्तार करने की आवश्यकता हो तो वह आदेश में वर्णित राशि के जमानत मुचलकों व शर्तों पर आवेदक को रिहा कर दे। जब भी कोई आवेदन गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए सेशन न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के समक्ष आता है और उस में यह कथन होता है कि उसे अनावश्यक गिरफ्तार कराकर क्षति पहुँचाई जा सकती है और उसे अपमानित व बदनाम किया जा सकता है तो न्यायालय वैसी परिस्थिति में या तो आवेदन को तत्काल अस्वीकार कर देता है अथवा अंतरिम रूप से गिरफ्तारी पूर्व जमानत का आदेश पारित करता है।
गिरफ्तारी पूर्व जमानत लिए जाने का आदेश पारित करने वाला न्यायालय इस आदेश में कुछ शर्तें आवेदक पर लगा सकता है। जैसे वह अनुसंधान