सुबह-सुबह फोन पर प्रदेश के सबसे बड़े महिला संगठन की नेता ने मुझ से अपने संगठन के एक कार्यकर्ता निकेत और उस की पत्नी निशा के बीच वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद याने तलाक की कार्यवाही के लिए दस्तावेजों की तैयारी और उन्हें अदालत में पेश करने में मदद करने का आग्रह किया। दोनों के बीच तलाक, स्त्री-धन, स्थाई पुनर्भरण की राशि और मुकदमे वापस लेने पर सहमति हो चुकी थी, धन का आदान-प्रदान होना था और अदालत व पुलिस थाने में समझौता पेश कर मामलों को खत्म कराना था। इस के लिए मुझे पडौसी जिले के एक कस्बे जाना पड़ा जहां की एकमात्र अदालत में निशा ने भरण-पोषण के लिए मुकदमा चला रखा था।
निशा के वकील साहब को मैं ने सुझाव दिया कि अनेक दस्तावेज तैयार करने के बजाय भरण-पोषण के मुकदमे में ही सारी शर्तें शामिल करते हुए समझौता पेश कर, उस के अनुरूप धनराशि निशा को अदालत के सामने ही अदा कर दी जाए और अदालत से आदेश करा लिया जाए, और दोनों पक्षकार अदालत से आदेश की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त कर लें। दोनों पक्षकार इस आदेश से पाबंद रहेंगे ही। बाद में सब कार्यवाहियां इस आदेश में शामिल शर्तों के अनुसार संपन्न हो जाऐं।
निशा के वकील मेरी राय से सहमत थे। लेकिन मेरे इस सुझाव को सुन कर हँस दिए। उनका कहना था कि अभी तो जज आज इस आवेदन को लेगा ही नहीं, और ले भी लिया तो उसे सुनवाई के लिए पहले से निश्चित तारीख पर ही कार्यवाही के लिए रखेगा।
मैं ने कहा -जज ऐसा क्यों करेगा? जब दोनों पक्षकार अदालत में उपस्थित हैं और समझौते के आधार पर मुकदमा समाप्त कराना चाहते हैं, तो अदालत को क्या तकलीफ हो सकती है?
उन ने सुझाव दिया कि मैं जज से बात कर के देखूँ। मैं इजलास में जज के सामने जा खड़ा हुआ। वहाँ जिस मुकदमे में कार्रवाई चल रही थी, उस पर विराम लगते ही मैं ने अपनी बात जज के सामने रखी।
उस ने छूटते ही पूछा -यह मुकदमा आज की पेशी में तो नहीं है?
तब तक निशा के वकील वहाँ आ चुके थे, मैं कुछ कहता उस से पहले ही उन ने जज को मुकदमे की अगली तारीख बताई तो जज बिना कोई देरी किए बोला -फिर आप उसी दिन दरख्वास्त पेश करना।
मैं ने उन्हें बताया कि निशा स्थानीय निवासी है और निकेत कोई तीन सौ किलोमीटर से यहाँ आया है, निशा को अदा की जाने वाली साढ़े चार लाख रुपए साथ ले कर आया है। फिर मुकदमे के दोनों पक्षकार उपस्थित हैं, मुकदमा आज ही समाप्त हो रहा है तो उसकी आज ही सुनवाई किए जाने में क्या बाधा हो सकती है?
मैं ने पूरी कोशिश की, अपनी उनतीस वर्ष के वकालत के सारे अनुभवों और कौशल को आजमा लिया। मगर जज का दिमाग टस से मस नहीं हुआ, वह अपनी बात पर अड़ा रहा। आखिर मुझे क्रोध आने लगा। मैं ने कहा सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमे को कम करने का हर प्रयास करने की हिदायत देती रहती है और आप हैं कि मामले को लटकाए रहने में आनन्द ले रहे हैं।
जज ने जवाब दिया – मेरी अदालत तो ऐसे ही चलेगी।
मैं थक-हार अदालत से बाहर आ गया। वहाँ के वकीलों के पूछने पर कि मुझे जज कैसा लगा? मैं ने बिना विचारे अपनी टिप्पणी दी कि – निरा पागल है। वहाँ के वकील मुझे जज के बारे में बताने लगे। जज करीब छह माह से वहाँ पोस्टेड था, काम में कोई रुचि नहीं रखता था, माह में पांच निर्णय भी नहीं कर पाता था। उस के आने के बाद से अदालत में कोई काम नहीं हो पा रहा था। किसी न किसी बहाने से मुकदमों में तारीखें आगे बढ़ाता रहता था। किसी महिला की पेशी होती तो उस की कोशिश होती थी कि वह दिन भर इजलास में ही रहे और वह उस से बतियाता रहे। उस के खिलाफ विभागीय जांचे चल रही थीं जिन में एक मामला किसी् महिला के साथ छेड़-छाड़ करने का भी था। उसे कई छोटे
-बड़े जजों ने सुधरने की सलाह भी दी थी पर सब बेअसर थीं।
मैं ने वहां के वकीलों से पूछा -वे उसे कैसे बरदाश्त कर रहे हैं? उस की शिकायत क्यों नहीं करते? एक हड़ताल इसे हटाने के लिए क्यों नहीं करते?
वहाँ के वकील बताने लगे कि यहाँ एक ही तो अदालत है जिस पर करीब २२-२५ वकील निर्भर हैं। पहले एक जज के खिलाफ छह महीने हड़ताल कर उस का ट्रांसफर करवा चुके हैं। तब एक साल तक किसी भी जज की नियुक्ति नहीं हुई थी और उन की कमाई मारी गई थी। उन का कहना था कि वे किसी ऐसे मौके के इन्तजार में हैं कि जज अपनी आदत के मुताबिक किसी महिला के साथ कोई हरकत करे और वे जज की जनमपत्री बांचना प्रारंभ करें।
मैं ने परिस्थितियों के हिसाब से अदालत के बाहर ही नोटेरी के यहाँ समझौता प्रमाणित करवा कर थाने में चल रही कार्रवाई को समाप्त करवाया और वापस चला आया।
कुछ दिनों बाद सुना कि वहाँ के वकीलों ने जज के खिलाफ हड़ताल कर दी है।
यह कहानी नही, आप बीती है, बस पात्रों के नाम जरूर बदले हैं।