पिछले तीन दिन से कोटा में रहने के बावजूद व्यस्तता रही और ‘तीसरा खंबा’ पर कोई पोस्ट नहीं जा सकी। इस बीच कानूनी सलाह चाहने वालों के अनेक मेल मिले हैं। लेकिन इन दिनों उस काम के लिए समय ही नहीं निकाल सका। कानूनी सलाह के लिए समस्या को ठीक से समझना पड़ता है और कभी कभी कानून को दुबारा देखना पड़ता है। उत्तर लिख देने के बाद उसे जाँचना भी पड़ता है। इस व्यस्तता के बीच यह काम नहीं कर सकूंगा। 5 से 12 दिसंबर तक मैं कोटा से बाहर रहना होगा, इस बीच अंतर्जाल से मेरा संपर्क शायद ही बने। मेरे साथ ही मेरे दोनों ब्लाग अंतर्जाल से अनुपस्थित रहेंगे। इस से कानूनी सलाह चाहने वाले पाठकों को असुविधआ होगी, लेकिन मेरा उन से निवेदन है कि एक-दो सप्ताह प्रतीक्षा करें। मेरा प्रयास होगा कि सभी जरूरी प्रश्नों का उत्तर शीघ्र से शीघ्र दिया जा सके।
चलिए आज देखें कि कानून के गलियारों में पिछले कुछ दिनों में क्या कुछ हुआ है?
क्या निजि और क्या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने नीरा रादिया टेप प्रकरण में उद्योगपति रतन टाटा की याचिका पर केन्द्र सरकार को अगले दस दिनों में अपना जवाब देने को कहा है। इस याचिका में रतन टाटा ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया है कि सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वह इस मामले की जाँच करे कि उन के और कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा रादिया के साथ हुई निजि बातचीत की टेप कैसे लीक हुई। उन्हों ने यह भी निवेदन किया है कि इस टेप की सामग्री का भविष्य में प्रकाशन रोका जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 13 दिसंबर को तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि इस टेप की सामग्री प्रकाशित करने वाले दोनों पत्रों आउटलुक और ऑपन को भी, इस मामले में पक्षकार बनाया जाए।
- न्यायालय कुछ मामलों को छोड़ कर कभी स्वयमेव किसी मामले में हाथ नहीं डालते। लेकिन जब रतन टाटा ने सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटा ही दिया है तो अब इस मामले में यह व्याख्यायित होना निश्चित है कि क्या क्या निजि है और क्या नहीं?
उधर कर्नाटक में लोकायुक्त ने सूचना तकनीक मंत्री कट्टा सुब्रह्मनैया नायडू, उन के कॉरपोरेट पुत्र जगदीश नायडू तथा आठ अन्य संबंधित व्यक्तियों के विरुद्ध करोड़ों के भूमि घोटाले के मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा दी है। उन पर लगाए गए आरोपों में दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा करने , छल करने, बेनामी सौदे करने, मिथ्या दस्तावेज बनाने, फर्जी फर्में बनाने आदि सम्मिलित हैं। संबंधितों में वे कंपनियाँ सम्मिलित हैं जिन में दोनों पिता-पुत्र भागीदार हैं। यह प्रथम सूचना रिपोर्ट येदुरप्पा सरकार की मुश्किलें और बढ़ा देगी जब कि पहले ही वह मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों को सर्वोत्तम भूखंड आवंटित करने के मामले में फँसी पड़ी है।
- ये बढ़ते मामले साबित कर रहे हैं कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल कारपोरेट जगत के प्रतिनिधि हैं। उन की सरकारें उन्हीं के लिए काम करती हैं। हर राजनीतिज्ञ जानता है कि एक राजनेता होने से एक कारपोरेट होना महत्वपूर्ण है। वह येन-केन-प्रकरेण सारे मूल्यों को ताक पर रख कर अपनी पूंजी बढ़ा कर कॉरपोरेट जगत में महत्वपूर्ण स्थान बन