अभी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनाज को सड़ने के लिए छोड़ देने के स्थान पर उसे गरीबों को मुफ्त वितरित कर देने के आदेश से उत्पन्न विवाद की गूंज समाप्त नहीं हुई है। सरकार की ओर से कितने ही लोग सामने आए हैं जिन्हों ने इस बात की वकालत की है कि न्यायालय सरकार के नीति निर्धारण में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। किन्तु सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और न्यायालय मौन साधे रहें तो उस का नतीजा केवल और केवल जन-असंतोष ही हो सकता है। सरकार संसद के हर सत्र में कानून बनवाती है और फिर शायद भूल जाती है। राज्य सरकारों की तो हालत और भी बुरी है, उन्हें अपने रोजमर्रा के कामों को करने में ही समय पूरा नहीं पड़ता है।
हाल ही में एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की निर्माण उद्योग से जुड़े श्रमिकों के कल्याण और उनके हालात पर बने 15 वर्ष पुराने कानून को लागू नहीं कर पाने के कारण आलोचना की है। संसद द्वारा निर्मित भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्त नियमन) अधिनियम-1996 तथा भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम-1996 के क्रियान्वयन में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की पूर्ण विफलता पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम-1996 के तहत सभी राज्यों में निर्माण एजेंसी से निर्माण योजना का एक प्रतिशत उपकर के रूप में वसूलने के लिए एक कल्याण बोर्ड गठित किया जाना था। इस तरह प्राप्त धन का उपयोग भवन एवं निर्माण उद्योग से जुड़े श्रमिकों के स्वास्थ्य, चिकित्सा देखभाल, पेंशन, गृह ऋण और बच्चों की शिक्षा जैसी कल्याण योजनाओं में खर्च किया जाना था।
प्रधान न्यायाधीश एस.एच.कपाड़िया, न्यायमूर्ति के.एस.राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खण्डपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पूछा कि यदि राज्य सरकार तथा केंद्र शासित क्षेत्र श्रमिकों के कल्याण के लिए बने इस कानून को लागू नहीं कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार क्या कर रही है? महाराष्ट्र में 30 लाख निर्माण श्रमिक हैं और वहां कोई कल्याण बोर्ड गठित नहीं है। अदालत ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, “हमें नहीं पता कि केंद्र सरकार इस तरह के राज्यों को निर्देश क्यों जारी नहीं की है।” सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार को राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से, निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए बने कानून को लागू करने और जनवरी 2010 में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में आवश्यक विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
रोज यही हो रहा है कि न्यायालय सरकार से पूछते हैं कि वे कानूनों और अपनी बनाई नीतियों की पालना क्यों नहीं करती है? सरकार इस का कोई न कोई उत्तर दे ही देगी। लेकिन जब यही प्रश्न किसी दिन जनता पूछने लगेगी तब सरकारें क्या करेंगी?