अनिता ने मार्च 2009 में कुछ प्रश्न पूछे थे, जिन का उत्तर तीसरा खंबा की चिट्ठी भीरुता त्यागें, साहस करें, और पति के अत्याचारों के विरुद्ध अपने हकों की लड़ाई खुद लड़ें में दे दिए गए थे। उन्हों ने फिर से एक पत्र लिखा है जो इस प्रकार है-
आपका मशविरा समय पर मिल गया था। लेकिन स्वास्थ्य बहुत खराब हो जाने और तकरीबन १५ दिन अस्पताल में रहने की वजह से दीन दुनिया से ज़्यादा ही कटी रही। सर, दो साल होने को आये फैमिली कोर्ट में मामला जस का तस है। मैं हर पेशी पर पहुंचती हूं पर मेरे पति २-३ में से एक पर। उनका वकील तक नहीं आता है। मैं दिल्ली में भाई के पास हूं, हर हफ्ते भागना पड़ता है। अचरज इस बात पर होता है कि जज साहब भी कुछ नहीं कहते अगली तारीख लेने के लिये कह देते हैं। इतना उत्पीड़न तो मेरा ससुराल में भी नहीं हुआ। मैं दंग हूं जो दो गुंडे मुझे और मेरी मां को धमकाने के लिये घर पर आते रहे हैं, उनको ही मेरे पति ने अपनी तरफ से गवाह के तौर पर पेश कर दिया। मैंने अपने वकील को ये बात बताई तो वो टाल गये। मेरा पक्ष रखा जाना है, लेकिन तारीख टलती जी रही है। हर पेशी पर पति खुलेआम गंदी-गंदी गालियां देते हैं, चरित्र पर लांछन लगाते हैं, तबाह कर देने की, मरवा देने की धमकी देते हैं, और मैं सुनती रहती हूं। हर बार एक सुसाइड नोट दिखाते हैं, कहते हैं मैं मर जाऊंगा और तेरे पूरे परिवार को फंसा जाउंगा। क्या मेरी वजह से मेरे परिवार को भी ये सब झेलना पड़ेगा? मेरे साथ जाने वाली मेरी बहन को भी मेरी वजह से काफी कुछ सुनना और सहना पड़ता है। वो तलाक चाहते हैं, दूसरी शादी का इरादा है। मैं चैन से जी तो नहीं सकी पर चैन से मरना चाहती हूं, तलाक देने को तैयार हूं। कह भी चुकीं हूं उनसे, लेकिन वो तलाक के लिये भी पैसे चाहते हैं। जो सामान शादी में उपहार के तौर पर दिया गया उसको तो वापिस करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। मैं कब तक मां की पेंशन और भाई की खैरात पर पलती रहूं, सर।
क्या मैं दिल्ली या गाज़ियाबाद में घरेलू हिंसा, दहेज या मेंटेनेंस का कोई मामला नहीं कर सकती?
मेरा भाई यहां आसानी से मदद कर सकता है।
उत्तर
आप के पति का आवेदन मिथ्या है तो वह मिथ्या ही प्रमाणित होगा। आप को अपने वकील से कहना चाहिए कि मुकदमे में क्यों देरी हो रही है। यदि हर माह दो पेशियाँ होती हैं तो अब तक तो मामला निपट जाना चाहिए था। धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के मामले में अदालत अधिक से अधिक साथ रहने की डिक्री पारित कर