समस्या-
राज कुमार ने उज्जैन, मध्यप्रदेश से पूछा है-
मेरे पापा पर 2003 में कुछ लोगों ने धारा 420 आईपीसी का झूठा केस लगा दिया। जिसमें उनको जमानत मिल गयी। जिसने रिपोर्ट लिखाई वह कभी अदालत में नहीं पहुँचा। मेरे पापा अपने काम से दिल्ली चले गए। मुझे जानकारी मिली कि दोनों पार्टी के कोर्ट में नहीं आने से केस खत्म हो गया। फिर 2020 में पापा के नाम से गिरफ्तारी वारण्ट आया। मैने पापा को जानकारी दी तो वे उज्जैन आए और केस फाइल निकलवा कर दिखवाया तो पता लगा कि 2010 में दोनों पक्षों के कोर्ट में न आने से पापा का स्टेण्डिंग वारण्ट जारी कर दिया था। फिर पापा ने 3 मार्च 2021 को कोर्ट में हाजिर हो कर जमानत का आवेदन किया तो अदालत ने खारिज कर दिया। फिर मैंने 22 मार्च को सेशन न्यायालय में जमानत आवेदन किया तो कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मुलजिम 18 वर्ष से कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहा है और फिर से जमानत दी तो फिर हाजिर नहीं होगा। मुझे बताया गया है कि हाईकोर्ट भी 10 वर्ष से अधिक समय से गैर हाजिर रहने वालों की जमानत नहीं लेता है। हमने सोचा कि पिताजी के जेल में रहने से मुकदमे का जल्दी निपटारा हो जाएगा। लेकिन कोविड-19 के कारण कोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही है। क्या जेल अधीक्षक मेरे पापा को मेरे आवेदन पर लॉक डाउन खत्म होने तक छोड़ सकते हैं? और मुझे क्या करना चाहिए।
समाधान-
आपने स्वयं अपनी समस्या में बताया है कि सेशन न्यायालय ने मार्च 2021 में आपके पापा का जमानत का आवेदन निरस्त करते समय लिखा कि मुलजिम 18 वर्ष से न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आपके पापा 2003 में मुकदमा आरम्भ होने के बाद कुछ ही पेशियों पर उपस्थित होने के बाद दुबारा उपस्थित ही नहीं हुए। उसके बाद मुकदमा आपके पिता को कोर्ट में तलब करने के लिए ही 2010 तक चलता रहा होगा। उसके बाद आपके पापा के नाम स्टेंडिंग वारण्ट निकाल कर फाइल को आपके पापा की गिरफ्तारी तक के लिए बन्द कर दिया गया।
अधिकांश अपराधिक मुकदमे सरकार की और से पुलिस द्वारा अदालत में पेश किए जाते हैं। शिकायत कर्ता को तो केवल गवाही के लिए बुलाया जाता है। जब आपके पापा स्वयं ही अदालत में उपस्थित नहीं हुए तो गवाह को अदालत में बुलाने का कोई अवसर ही नहीं आया। इस कारण आपका यह कहना गलत है कि मुकदमा दोनों पक्षों के न्यायालय में उपस्थित नहीं होने से बन्द हो गया। सारी गलती आपके पापा की है। 18 वर्ष तक न्यायालय में उपस्थित नहीं होना गम्भीर बात है और इस मामले में जमानत होना आसान नहीं है।
आपके इस प्रश्न का कि क्या जेल अधीक्षक लॉकडाउन की अवधि तक आपके पापा को आपके आवेदन पर छोड़ सकता है? उत्तर यह है कि जेल अधीक्षक को किसी भी बन्दी को किसी भी अवधि के लिए छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। आपके पापा एक विचाराधीन कैदी हैं और अभी न्यायिक अभिरक्षा में हैं, अर्थात उनका नियन्त्रण न्यायालय के हाथों में है। उन्हें जेल में रखना या जमानत पर छोड़ने का निर्णय करना केवल अदालत के ही अधिकार में है। आपका यह कहना कि उच्च न्यायालय 10 वर्ष से अधिक समय तक अदालत से फरार अभियुक्तों की जमानत नहीं लेता है ठीक हो सकता है। यह एक तरह का ट्रेंड है। लेकिन कुछ विशेष कारण और परिस्थितियाँ विद्यमान होने पर उच्च न्यायालय ऐसे मामलों में जमानत ले भी सकता है। यदि आपके पापा की उम्र 60-65 वर्ष से अधिक की हो तो सीनियर सिटीजन होने और कोरोना का खतरा होने के आधार पर उन्हें उच्च न्यायालय से जमानत मिल सकती है जिसके लिए आप प्रयास कर सकते हैं। यदि जमानत नहीं भी मिली तो भी उच्च न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि आपके पिता के मुकदमे का निर्णय हर हाल में निर्धारित अवधि में जो छह माह या एक वर्ष की हो सकती है करने का निर्देश निचली विचारण करने वाली अदालत को दे दें।