कल तीसरा खंबा पर आलेख नहीं था, केवल जनादेश में प्रकाशित आलेख ब्लागर और वेब पत्रकार भी कानूनी दायरे में की सूचना मात्र थी। इस आलेख पर सात टिप्पणियाँ तीसरा खंबा पर तथा आठ टिप्पणियाँ जनादेश पर प्राप्त हुई हैं। कुछ टिप्पणियों से पता लगता है कि पाठक मामले को समझ गए हैं, कुछ से लगता है कि अभी इस मामले पर संशय शेष हैं।
डी अजित के मामले में मीडिया और ब्लाग में आयी सभी रपटें, आलेख और टिप्पणियाँ सर्वोच्च न्यायालय में जो कुछ भी डी अजित की याचिका पर हुआ उस का परिणाम हैं। मीडिया में प्रकाशित सभी समाचारों में यह कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय ने कोई निर्णय पारित किया है। मैं ने अपनी समझ के अनुसार उसे निर्णय न कहते हुए आदेश कहा था। इस मामले पर मीडिया ने समाचार प्रकाशित कर एक बहस खड़ी की है जो चल रही है और जो पता नहीं कब तक चलती रहेगी। लेकिन वास्तविकता कुछ और है।
.इस मामले में मीडिया द्वारा समाचार प्रकाशित कर जो कुछ भी बवाल खड़ा किया गया वह डी अजित के वकील की बहस के दौरान जो विचार मुख्य न्यायाधीश द्वारा अभिव्यक्त किए गए होंगे उन के आधार पर खड़ा किया गया।
कर दी गई है। अब उन्हें ठाणे की अदालत जिस के द्वारा उन के विरुद्ध अपराध का प्रसंज्ञान लिया है के प्रसंज्ञान लिए जाने के आदेश के विरुद्ध कोई आपत्ति है तो वे ठाणे के जिला न्यायालय या मुम्बई उच्च न्यायालय के समक्ष उस आदेश को चुनौती दे सकते हैं। ऐसा नहीं कि डी अजित जो सर्वोच्च न्यायालय में अपने मामले की सुनवाई के लिए व्यवस्था बना सकते हैं और वकील कर सकते हैं, वे ठाणे की जिला अदालत या मुम्बई उच्चन्यायालय के समक्ष भी अपनी निगरानी याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। निगरानी की सुनवाई करने वाला न्यायालय यह निर्धारित कर सकता है कि तथ्यों के आधार पर ठाणे अदालत ने उन के विरुद्ध प्रसंज्ञान लिए जाने का जो आदेश दिया है वह उचित है या निरस्त किए जाने योग्य है। यदि वे निगरानी न्यायालय के निर्णय को भी उचित नहीं समझते हैं तो उस के विरुद्ध उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं। ठाणे के प्रसंज्ञान लिए जाने वाले न्यायालय के आदेश के विरुद्ध चुनौती उपस्थित करने के लिए उन के पास कम से कम दो अवसर तो उपलब्ध हैं ही।
ऐसी अवस्था में जब कि सर्वोच्च न्यायालय का कोई निर्णय है ही नहीं तो उस पर चलाई जा रही सारी बहस बेमानी है।