दिसंबर 24, 2010 को रायपुर (छत्तीसगढ़) के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बी.पी. वर्मा ने अपने यहाँ लंबित सत्र प्रकरण क्रमांक 182/2007 छत्तीसगढ़ शासन बनाम पिजूष उर्फ बुबून गुहा, डॉ. विनायक सेन एवं नारायण सान्याल के मुकदमे में निर्णय सुनाया। निर्णय में जो दण्ड उक्त तीनों अभियुक्तगण को सुनाए गए हैं उन्हें नीचे देखा जा सकता है।
निर्णय के अंत में न्यायालय ने यह टिप्पणी अंकित की है कि, अभियुक्त गणों को उपरोक्तानुसार दी गई कारावास की मूल सजाएँ साथ साथ भुगतायी जाएँगी।
इस निर्णय ने देश भर के जनतंत्र प्रेमी लोगों को व्यथित किया है। विशेष रूप से इस प्रकरण में जिस तरह से सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन को आजीवन कारावास के दंड से दंडित किया गया है उस की देश के जनगण के एक हिस्से के साथ-साथ दुनिया भर की मानवाधिकार संस्थाओं ने आलोचना की है और डॉ. बिनायक सेन को रिहा किए जाने की मांग की है। इस हेतु देश के अनेक महत्वपूर्ण लोगों ने अपने हस्ताक्षरयुक्त याचिका माननीय राष्ट्रपति को प्रेषित की है। इस संबन्ध में एक आलेख न्याय व्यवस्था राजसत्ता का अभिन्न अंग है, उस का चरित्र राज्य से भिन्न नहीं हो सकता सहयोगी ब्लाग “अनवरत” पर प्रकाशित हुआ है। तीसरा खंबा को इस निर्णय की प्रति आज शाम ही उपलब्ध हुई है। उसे पढ़ने पर अपनी राय तीसरा खंबा पर प्रकाशित की जाएगी। यदि कुछ पाठक न्यायालय द्वारा सुनाए गए मूल निर्णय को देखना पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।