जनाब शरीफ़ ख़ान साहब ने सवाल किया था कि क्या तलाक शुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी अपने खाविंद से धारा 125 दं.प्र.संहिता में जीवन निर्वाह भत्ते के लिए आवेदन कर प्राप्त कर सकती है, यदि उस ने विवाह नहीं किया हो? तीसरा खंबा पर 19.05.2010 को प्रकाशित पोस्ट क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि के बाद पूर्व पति से भरण पोषण प्राप्त नहीं कर सकती ? में उस का उत्तर दिया गया था कि मुस्लिम महिला ( तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) पारित होने के पहले तक तो स्थिति यही थी कि एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला पुनर्विवाह करने तक अपने पूर्व पति से जीवन निर्वाह के लिए भत्ता प्राप्त करने हेतु धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन कर सकती थी और प्राप्त कर सकती थी। लेकिन इस कानून के पारित होने के उपरांत यह असंभव हो गया। इस कानून के आने के बाद स्थिति यह बनी कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला इस कानून की धारा 5 के अंतर्गत भरण-पोषण की राशि के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन वह केवल उन व्यक्तियों से जीवन निर्वाह भत्ता प्राप्त कर सकती है जो उस की मृत्यु के बाद उस की संभावित संपत्ति के वारिस हो सकते हैं या फिर वक्फ बोर्ड से यह भत्ता प्राप्त कर सकती है। लेकिन धारा 125 दं.प्र.सं. के अंतर्गत नहीं। सुप्रीमकोर्ट ने इसी कानून के आधार पर बिल्किस बेगम उर्फ जहाँआरा बनाम माजिद अली गाज़ी के मुकदमे में उपरोक्त बात को स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा महिला अपने लिए तो नहीं लेकिन यदि उस की संतानें उस के पास हैं तो उन के लिए भरण पोषण प्राप्त करने के लिए वह धारा 125 दं.प्र.संहिता में आवेदन कर सकती है।
इस पोस्ट के प्रकाशन के उपरांत उन्मुक्त जी ने आगे का मार्गदर्शन किया और बताया कि -शायद इस प्रश्न का सही जवाब २००१ के उस लोक हित याचिक के फैसले में निहित है जिसमें डैनियल लतीफी ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम को चुनौती दी थी। मैं इस निर्णय को पढ़ कर अपनी राय कायम करता उस के पूर्व ही जनाब शरीफ खान साहब जो कि राजस्थान के एक छोटे नगर में वकील हैं स्वयं श्रम किया और मुझे सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4 दिसंबर 2009 को शबाना बानो बनाम इमरान खान के मुकदमे में पारित निर्णय प्रेषित किया। इस में सु्प्रीमकोर्ट ने यह निर्धारित किया है कि डेनियल लतीफ़ी और इक़बाल बानो के मुकदमे में प्रदान किए गए निर्णयों को एक साथ पढ़ने और विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त करने की अधिकारिणी है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है। इसी निर्णय में अंतिम रूप से यह निर्णय भी दिया गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत इद्दत की अवधि के उपरांत भी तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त कर सकती है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है।
इस तरह अब यह स्पष्ट है कि एक लाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत इद्दत की अवधि के उपरांत भी तब तक भरण-पोषण राशि प्राप्त कर सकती है जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है। तीसरा खंबा महिलाओं के लिए लाभकारी कानून की
अद्यतन स्थिति इस के पाठकों तक पहुँचाने में आदरणीय उन्मुक्त जी के मार्गदर्शन और जनाब शरीफ़ ख़ान साहब, अधिवक्ता के सहयोग के लिए आभारी है।
अद्यतन स्थिति इस के पाठकों तक पहुँचाने में आदरणीय उन्मुक्त जी के मार्गदर्शन और जनाब शरीफ़ ख़ान साहब, अधिवक्ता के सहयोग के लिए आभारी है।