तीसरा खंबा

दत्तक का अपने जैविक पिता की सहदायिक संपत्ति में अधिकार

समस्या-

देवेन्द्र कुमार दीक्षित ने इस्माइलपुर, तहसील चांदपुर जिला बिजनौर (उ.प्र.) से पूछा है-

वसीयत करते समय कोई मुझे अपना पुत्र मानता है और मेरे पास दस्तावेज में भी उन्हीं का नाम पिता के रूप में दर्ज है। लेकिन कोई पंजीकृत गोदनामा नहीं हो तो क्या मैं अपने जैविक पिता की पुश्तैनी जमीन का वारिस हो सकता हूँ।

समाधान-

आप का प्रश्न अत्यन्त रोचक है। इस में एक यही पेच है कि लोग पुश्तैनी संपत्ति का अर्थ ठीक से नहीं समझते। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 18 जून 1956 से प्रभावी हुआ। उस में यह उपबंध आया कि पिता की संपत्ति उस की मृत्यु के उपरान्त कैसे समान रूप से उस के पुत्रों, पुत्रियों और पत्नी व माँ यदि जीवित है तो उन्हें उत्तराधिकार में प्राप्त होगी। इस में कोई भी पौत्र या प्रपोत्र का उसके पिता के जीवित रहते कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। इस अधिनियम के प्रभावी होने के पूर्व विधिक स्थिति यह थी कि यदि कोई हिन्दू पुरुष जिस पर मिताक्षर हिन्दू विधि प्रभावी होती थी की मृत्यु होती थी तो उस की स्वअर्जित संपत्ति उत्तराधिकार में उस के पुत्रों को प्राप्त होती थी। और पुत्रों को प्राप्त होने वाली इस संपत्ति में उस के पुत्रों के पुत्रों को यदि वे उस समय होते थे तो तत्काल या बाद में जन्म लेते तो जन्म के साथ ही अधिकार प्राप्त हो जाता था। ऐसी संपति सहदायिक कहलाती थी। इसे ही सामान्य बोलचाल में पुश्तैनी कहा जा रहा है।

यदि ऐसी कोई सहदायिक संपत्ति आप के जैविक पिता के पास आप के जन्म के समय थी तो आप जन्म से ही उस के अधिकारी हो गए थे। जिस के आप जन्म से अधिकारी हो चुके हैं आप के दत्तक दिए जाने और लिया जाने के समय उस से आप को वंचित नहीं किया जा सकता। उस पर तो आपका अधिकार है ही,चाहे गोदनामा पंजीकृत हो या नहीं। सीधे सीधे कहा जा सकता है कि दत्तक ग्रहण करने के बाद भी पुत्र का अपने जैविक पिता की सहदायिक संपत्ति में हिस्सा बना रहता है। उसे उस संपत्ति में उतना ही हिस्सा प्राप्त होगा जितना उसे दत्तक ग्रहण के ठीक पहले सहदायिक संपत्ति का विभाजन होने पर प्राप्त होता।

Exit mobile version