तीसरा खंबा

दादाजी की संपत्ति में पोते का कोई अधिकार नहीं

समस्या-

दीपक शर्मा ने हाथी बरकलाँ, देहरादून उत्तराखण्ड, से पूछा है-

मेरे दादाजी के दो विवाह हुए थे उनकी पहली पत्नी से दो पुत्र एवं एक पुत्री है जिनमे से एक पुत्र की बिना शादी के ही मृत्यु हो गयी थी एवं दूसरी पत्नी से एक पुत्री है। दादा की मृत्यु 1988 में हो गयी थी। दोनों दादी की मृत्यु उससे भी पहले हो गयी थी। इस प्रकार वर्तमान में मेरे पिताजी और उनकी दो बहनें जीवित हैं। मेरी दोनों बुआएं भी शादीशुदा है। मेरे माता-पिता की हम पांच सन्तान हैं, जिसमे मैं अकेला भाई हूँ और मेरी चार बहने हैं। मेरी व सभी बहनों की शादी हो चुकी है। वर्तमान में हम 1989 से देहरादून उत्तराखंड में ही निवास कर रहा हूँ। देहरादून में हमारी थोड़ी सी संपत्ति (133 गज जमीन) है जो मेरे दादाजी ने 1988  में मरने से पहले खरीदी थी। जो वर्तमान में पिताजी के नाम पर दर्ज है। इससे पहले हम अपने पुस्तैनी मकान, जो कि छुटमलपुर के समीप एक गांव, जोकि सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में है, में रहते थे। देहरादून आने के बाद गांव में कोई नहीं रहता था घर खाली पड़ा था, बस हम बीच में कभी-कभी देखभाल करने चले जाते थे। गांव में पुस्तैनी मकान के साथ लगती हुए थोड़ी सी खाली जमीन भी है जो कि लगभग 300  गज के आसपास होगी। गांव में हमारी जो पुस्तैनी सम्पत्ति है उसमें मेरी एक बहन अभी पिछले 04 वर्षो से पिताजी के कहने पर रह रही है। वह पहले मुझे कहती थी जब तुम्हे गांव के घर की जरुरत होगी तो दो महीने पहले बता देना हम यहाँ से चले जायेंगे। लेकिन अब पिताजी के कहने पर उसने वहाँ पर अपने नाम से बिजली मीटर भी लगवा लिया है। उसके साथ मिलकर मेरी दो और बहनों ने भी माता-पिता को बहला-फुसलाकर (अक्टूबर २०२० में) चुपके से गांव सारी संपत्ति बिना मेरे व मेरी एक बहन को बताये अपने नाम करा ली है। जिसका पता मुझे अभी लगभग 04 माह बाद (फरवरी 2021 के अंत में) चला। जितना मुझे पता चला है उसमे मकान की तो पिताजी ने वसीयत मेरी उस बहन के नाम की है, जो गांव वाले मकान में पहले से रह रही है और जो खाली जमीन है उसकी रजिस्ट्री दो अन्य बहनो  नाम की है, जो गांव में अभी रहती नहीं हैं। गांव की जो सम्पत्ति है उसके कागज नहीं है परन्तु पुरखो (परदादा से भी पहले की) से हमारी ही हैं । सन 2008 में गांव में मैने हमारे मकान से लगती थोड़ी सी जमीन (पहले की खाली जमीन से अलग) अपने नाम लोन लेकर खरीदी थी, जिसकी रजिस्ट्री मम्मी के नाम पर करवा दी थी। उस जमीन के भी कागज नहीं थे, उसमे वकील दवारा जमीन का बैनामा लेकर एवं  मालिकों को बुलाकर उसकी रजिस्ट्री कर दी थी। वह सम्पत्ति भी माता-पिता ने उन्हीं बहनों को दे दी है, उस जमीन के दस्तावेज तो  मेरे पास है परन्तु उसके आलावा मकान के कोई भी कागज मेरे पास नहीं है।  गांव वालो का भी कहना है कि यहाँ कागज नहीं होते हैं। मेरी एक बहन जो अभी वहाँ रहती नहीं है, जिसने रजिस्ट्री अपने नाम करवाई है,  वो गांव का ही आधार कार्ड बनवाकर जल्दी ही प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत पैसा लेकर  वहा मकान बनवाना चाह रही है। जब मुझे गांव वाली सम्पत्ति के बारे में पता चला कि पिताजी ने गांव  वाली सारी सम्पत्ति उन तीन बहनो के नाम कर दी है तो मेने पिताजी से पूछा की ये क्यों किया तो उन्होंने बोला कि  गांव वाली संपत्ति लड़कियों को दे देते है और देहरादून वाली सारी संपत्ति मुझे देंगे।  परन्तु अब पिताजी, मुझे देहरादून वाली सम्पत्ति देने से भी इंकार कर रहे है वह रोज नई  कंडीशन लगा देते है कि ऐसा करना होगा वैसा करना होगा। अब मेरी वही तीनो बहन फिर से माता-पिता को बहला-फुसला रही है ताकि देहरादून वाली सम्पत्ति से भी मुझे बेदखल कर वहा भी पूरा अधिकार मिल जाये या देहरादून वाली संपत्ति को बेचकर उसमे हिस्सा ले लिया जाये। मेरी समस्या दोनों सम्पत्तियों (देहरादून एवं गांव) के सम्बन्ध में है:-


1. महोदय में यह जानना चाहता हूँ कि क्या पिताजी को बिना मेरी अनुमति के गांव की साऱी संपत्ति मेरी तीन बहनो को देने का अधिकार है? चाहे वसीयत की हो या रजिस्ट्री की हो । यदि हाँ तो कैसे और यदि नहीं तो मै अब इस केश में क्या कर सकता हूँ । क्या मै, मेरे पिता द्वारा की गयी वसीयत या रजिस्ट्री जो भी उनके द्वारा की गयी हो, उन दोनों को ख़ारिज करवा सकता हूँ। अगर ख़ारिज करवा सकता हूँ तो इसके लिए मुझे  क्या करना होगा?

2. क्या भविष्य में मेरी दोनों बुआए भी अपना हक़ जता सकती है? अभी बुआओं को ये नहीं पता कि उनके भाई अर्थात मेरे पिताजी ने गांव की सारी सम्पत्ति बेटियों के नाम कर दी है ।

3. क्या पिताजी बिना मेरी अनुमति के देहरादून की जमीन को भी चुपके से मेरी बहनो के नाम कर सकते है या बेच सकते हैं?

4. क्या ऐसा कोई रास्ता है कि में बिना बहनो, बुआओं और माता-पिता की अनुमति के दोनों सम्पत्ति (देहरादून व् गांव) को अपने नाम कर सकता हूँ?

समाधान-

आपकी कुल तीन सम्पत्तियाँ हैं। पहली पुश्तैनी संपत्ति जो दादाजी को उनके पुरखों से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है। वह पुश्तैनी संपत्ति है जो सहदायिक भी है। इस में जन्म से ही संतानों को अधिकार प्राप्त होता है। दूसरी संपत्ति वह है जिसकी आपने खऱीद कर विक्रय पत्र की रजिस्ट्री करवाई है। तीसरी संपत्ति देहरादून की है जो आपके दादाजी ने मृत्यु पूर्व स्वयं खरीदी थी।

उक्त संपत्तियों में से पहली संपत्ति में सभी को अर्थात आपके पिता, बुआओं, बहनों और आपको जन्म से ही अधिकार प्राप्त है। उस संपत्ति को आपके पिता अलग नहीं कर सकते। आप उस सम्पत्ति में अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए बंटवारे का वाद संस्थित कर सकते हैं। तथा साथ में उस सम्पत्ति के विक्रय या हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र संस्थित कर सकते हैं। इस वाद में आप अपना हिस्सा अलग कब्जे सहित आपको देने की प्रार्थना कर सकते हैं।

दूसरी संपत्ति वह है जो गाँव में आपके द्वारा खरीदी गयी है लेकिन माँ के नाम है। इस कारण वह माँ की है। यदि माँ जीवित हैं तो वह संपत्ति उनके जीवनकाल में उन्हीं की रहेगी और वे किसी को भी हस्तान्तरित कर सकती हैं।

तीसरी संपत्ति वह है जो देहरादून में दादाजी द्वारा खरीदी गयी थी। यह सम्पत्ति दादाजी की स्वअर्जित संप्तति थी और उत्तराधिकार में आपके पिता और बुआओं को प्राप्त हुई है। उस पर उन तीनों का अधिकार है। आपका या आपकी बहनों का कोई अधिकार नहीं है। यदि बुआएँ चाहें तो अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए विभाजन का वाद संस्थित कर सकती हैं। ये तीनों अपना अपना हिस्सा किसी को भी हस्तान्तरित कर सकते हैं।

इस तरह आपको केवल गाँव की पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार है। आप उसके विभाजन का वाद संस्थित कर सकते हैं। इससे आपके पिता पर दबाव बनेगा और आप अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए पिता को मना सकते हैं।


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