तीसरा खंबा

देश के सभी कानून अंग्रेजी, हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में इंटरनेट पर उपलब्ध क्यों नहीं?

दि कोई व्यक्ति सहज भाव से कोई ऐसा काम कर दे जो कि कानून की निगाह में जुर्म हो, और दुर्भाग्य से वह पकड़ा जाए। फिर उस के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय के समक्ष आए। वहाँ जब वह यह कहे कि उस से गलती हो गई, उसे पता नहीं था कि यह काम करना अपराध है, उसे माफ किया जाए, तो उस की यह प्रतिरक्षा उस के किसी काम न आएगी। क्यों कि सर्वोपरि नियम यह है कि कोई भी न्यायालय के सामने यह प्रतिरक्षा नहीं ले सकता कि उसे इस विधि की जानकारी नहीं थी। अब इस परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए। देश की संसद, विधानसभाएँ, नगर पालिकाएँ, पंचायतें आदि सभी संस्थाएँ नित्य कानून का सृजन करती हैं। क्या उन का यह कर्तव्य नहीं है कि उस कानून की प्रति नागरिकों को सुलभ हो? मेरी सोच यह है कि यह सरकारों का कर्तव्य है कि वे प्रत्येक कानून को जनसाधारण के लिए जनसाधारण की भाषा में सुलभ कराएँ। अब तो यह सूचना के अधिकार के अंतर्गत जनता का अधिकार भी है। 
लेकिन क्या सरकारें अपने इस कर्तव्य का निर्वाह सही तरीके से कर रही हैं? यदि आप इस की तलाश में जाएंगे तो पाएंगे कि सभी सरकारें इस ओर से उदासीन हैं। वे केवल गजट में कानूनों और कायदों को प्रकाशित कर निश्चिंत हो जाती हैं। यह गजट जिले के सब से बड़े अधिकारी जिला कलेक्टर के कार्यालय में स्वयं कलेक्टर के मांगने पर भी मिल जाए तो बहुत है। मैं ने जिला जजों और जिला कलेक्टरों को गजट की अनुपलब्धता की शिकायत करते देखा है। इस से बड़ी सरकार की लापरवाही दूसरी नहीं हो सकती।
ब तो लगभग पूरे देश में इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध हैं। किसानों को उन की कृषि भूमि के अभिलेख इंटरनेट से प्राप्त हो रहे हैं। कोई भी व्यक्ति इस बात की अनुज्ञा प्राप्त कर सकता है कि वह लोगों को अपने यहाँ से इन अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियाँ जारी कर सके। वैसी अवस्था में देश भर के कानूनों को जनता की भाषा में इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जाना कठिन नहीं है। लेकिन अभी तक इस मामले में अधिक कुछ नहीं किया गया है। यह सही है कि संसद द्वारा निर्मित सभी कानून इंडिया कोड पर उपलब्ध हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय 1950 से अद्यतन निर्णय सूचना प्रणाली पर उपलब्ध हैं। लेकिन वहाँ भी कानून केवल अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध हैं। राजभाषा हिन्दी में पाँच-छह वर्षों के कानूनों की गजट में प्रकाशित पन्नों के चित्रों को पीडीएफ प्रारूप में प्रस्तुत कर कर्तव्य की इति-श्री समझ ली गई है। आज हमारे पास हिन्दी का यूनिकोड फोन्ट उपलब्ध है। जिस के माध्यम से कितनी ही जानकारियाँ हिन्दी में उपलब्ध हैं लेकिन भारत सरकार आज तक केन्द्रीय कानूनों और कायदों को इंटरनेट पर हिन्दी देवनागरी लिपि में उपलब्ध नहीं करा पाई है। अभी तक उस की इस तरह की कोई योजना भी स्पष्ट नहीं है। 
राज्यों की स्थिति तो बिलकुल बेहाल है। राज्यों के कानून तो उन की अपनी वेबसाइटों पर अंग्रेजी में भी उपलब्ध नहीं हैं। हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में उपलब्ध कराया जाना तो बहुत दूर की बात है। यह स्थिति उन राज्यों की भी है जो भाषाई आधार पर निर्मित हुए हैं। तमिलना़डु में तमिल, केरल में मलयालम, कर्नाटक में कन्नड़, आंध्र में तेलुगू, बंगाल में बंगाली, महाराष्ट्र में मराठी और गुजरात में गुजराती भाषा में उन के राज्यों के कानून भी उपलब्ध नहीं हैं। यही स्थिति पूर्वो