भारतीय न्याय प्रणाली की विश्व में अच्छी साख है, लेकिन यह अपने ही देश में अपनी ही जनता का विश्वास खोती जा रही है। देश में शिक्षा व जागरूकता में वृद्धि होने से समस्याओं के हल के लिए अधिक नागरिक अदालतों
20 दिसम्बर को भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री के.जी. बालाकृष्णन् ने मुम्बई में एक समारोह में बताया कि तीन करोड़ अस्सी हजार से अधिक मुकदमें देश की विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं, जिन में 46 हजार से अधिक सुप्रीम कोर्ट में, 37 लाख से अधिक हाई कोर्टों में तथा ढ़ाई करोड़ से अधिक निचली अदालतों में फैसलों के इन्तजार में हैं। मुकदमों का निपटारा करने का कर्तव्य हमारा (न्यायपालिका का) है, हमने पिछले दो सालों में निपटारे की गति को 30 प्रतिशत बढ़ाया है। लेकिन दायर होने वाले मुकदमों की संख्या भी बढ़ी है जिस से लम्बित मुकदमों की स
मुख्य न्यायाधीश के ताजा कथन से हमारी न्याय प्रणाली की बेचारगी प्रकट होती है, और एक नंगी हकीकत सामने आती है। हमारे देश में मुकदमें निपटाने के लिए जितनी अदालतों की आज जरुरत है, उस की केवल 16 प्रतिशत अदालतें हमारे पास हैं। हम उन से ही काम चला रहे हैं। ऐसी हालत में शीघ्र न्याय की आशा किया जाना व्यर्थ है ही न्याय की गुणवत्ता भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
हमारी न्यायप्रणाली की सारी समस्याओं और फैसलों में देरी, वकीलों की हड़तालें, भ्रष्टाचार आदि बीमारियों की जड़ यहीं है। न्याय प्रणाली को साधन मुहय्या कराने की जिम्मेदारी केन्द्न और प्रान्तीय सरकारों की है जिसे पूरा करने में वे बुरी तरह असफल रही हैं।
सरकारों की जनता के प्रति जिम्मदारियों का राजनीति में बहुत उल्लेख होता है। जनता को आकर्षित
यह पहला मौका है जब मुख्य न्यायाधीश ने खुल कर इस हकीकत को बयान किया है, या उन्हें करना पड़ा
है। क्योंकि अब हालात ऐसे हैं कि स्थिति को नहीं सम्भाला गया तो न्याय प्रंणाली पूरी तरह चरमरा जाएगी और घोर अराजकता हमारे सामने होगी।