तीसरा खंबा

धारा 144 दं.प्र.संहिता क्या है?

समस्या-

मेरी एक जमीन है, जिस पर मेरे विपक्षियों द्वारा जबरन दखल करने की कोशिश की गयी, हमारे विरोध करने पर थाने में घूस वगैरह दे कर धारा 144 की प्रक्रिया करा दिया गया। हम उपर्युक्त प्रक्रिया में हाजिरी भी दिये, कागज भी दिखाये, फिर भी एसडीएम से उनका सम्पर्क था। 144 की आदेश प्रति भी उनके पक्ष में दे दिया गया वो भी हमारी गैरहाजिरी आदेश पत्रिका में दिखाकर। जबकि हमने सुना है कि 144 की प्रक्रिया दोनों पक्षों को उस जगह जाने से रोकने के लिए है। धारा 145 में शायद उस जमीन से संबंधित उचित निर्णय मिलता है कि जमीन किसका है। जबकि 145 हुआ नहीं, और फिर भी हमें उस जमीन पर थाना प्रभारी हमें जाने नहीं दे रहे हैं। बोलते हैं कि उसे डिक्री मिली है, वो जायेगा। साथ ही हमें जेल भेजने की भी धमकी थाना प्रभारी दे रहे हैं। वास्तव में वो जमीन खतियानी है जो मेरे दादाजी के नाम से है। उनका मेरे खतियान में कोई नाम भी नहीं। क्या 144 की डिक्री होती है? कृपया स्पष्ट करें.! हम बहुत परेशान हैं, किस प्रकार हमारी जमीन उक्त अभियुक्तों के चंगुल से हमें वापस मिल सकती है?

– विजय कुमार पण्डित, ग्राम, पोस्ट- दरौली  थाना- दरौली जिला- सिवान (बिहार)

समाधान-

आपने यह उल्लेख नहीं किया कि यह धारा-144 किस कानून की है। पर जिस तरह से आपने अपनी समस्या रखी है उससे लगता है कि एसडीएम ने कोई आदेश दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-144 के अंतर्गत पारित किया है। आपने अक्सर सुना और अखबारों में पढ़ा होगा कि फलाँ शहर में धारा 144 लगा दी गयी है जिसमें 5 से अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने तथा हथियार लेकर चलने पर प्रतिबंध लगाया गया है। आपका आदेश संभवतः इसी धारा के अंतर्गत पारित किया गया है।

आजकल कोरोना वायरस से फैली महामारी कोविद-19 के कारण लगभग संपूर्ण देश में धारा 144 के अंतर्गत आदेश जारी किए गए हैं। इस कारण आपकी तथा अन्य पाठकों की सुविधा के लिए हम धारा-144 यहाँ पूरी प्रस्तुत कर रहे हैं। दंड प्रक्रिया संहिता में अनेक खंड हैं, उसके खंड ‘सी’ में “किसी खतरे या न्यूसेंस होने की आशंका होने के अत्यावशक मामलों में पारित किए जाने वाले आदेश पारित किए जाने की शक्ति जिला, उपजिला तथा कार्यपालक मजिस्ट्रेट को प्रदान की गयी है। इसी उपखंड की धारा 144 निम्न प्रकार है-

 धारा-144. न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अर्जेट मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति—

(1) उन मामलों में, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट अथवा राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है और तुरंत निवारण या शीघ्र उपचार करना वांछनीय है, वह मजिस्ट्रेट ऐसे लिखित आदेश द्वारा जिसमें मामले के तात्त्विक तथ्यों का कथन होगा और जिसकी तामील धारा 134 द्वारा उपबंधित रीति से कराई जाएगी, किसी व्यक्ति को कार्य-विशेष न करने या अपने कब्जे की या अपने प्रबंधाधीन किसी विशिष्ट संपत्ति की कोई विशिष्ट व्यवस्था करने का निदेश उस दशा में दे सकता है जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट समझता है कि ऐसे निदेश से यह संभाव्य है, या ऐसे निदेश की यह प्रवृत्ति है कि विधिपूर्वक नियोजित किसी व्यक्ति को बाधा, क्षोभ या क्षति का, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का, या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध होने का, या बलवे या दंगे का निवारण हो जाएगा।

(2) इस धारा के अधीन आदेश, आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियां ऐसी हैं कि उस व्यक्ति पर, जिसके विरुद्ध वह आदेश निदिष्ट है. सूचना की तामील सम्यक् समय में करने की गुंजाइश न हो, एक पक्षीय रूप में पारित किया जा सकता है।

(3) इस धारा के अधीन आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को, या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में जाते रहते हैं या जाएं निदिष्ट किया जा सकता है।

(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो मास से आगे प्रवृत्त न रहेगा :

परंतु यदि राज्य सरकार मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का निवारण करने के लिए अथवा बलवे या किसी दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन किया गया कोई आदेश उतनी अतिरिक्त अवधि के लिए, जितनी वह उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, प्रवृत्त रहेगा ; किंतु वह अतिरिक्त अवधि उस तारीख से छह मास से अधिक की न होगी जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश ऐसे निदेश के अभाव में समाप्त हो गया होता।

(5) कोई मजिस्ट्रेट या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर किसी ऐसे आदेश को विखंडित या परिवर्तित कर सकता है जो स्वयं उसने या उसके अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट ने या उसके पद-पूर्ववर्ती ने इस धारा के अधीन दिया है।

(6) राज्य सरकार उपधारा (4) के परंतुक के अधीन अपने द्वारा दिए गए किसी आदेश को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर विखंडित या परिवर्तित कर सकती है।

(7) जहां उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन आवेदन प्राप्त होता है वहां, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक को या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके समक्ष हाजिर होने और आदेश के विरुद्ध कारण दर्शित करने का शीघ्र अवसर देगी ; और यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदन को पूर्णत: या अंशत: नामंजूर कर दे तो वह ऐस लेखबद्ध करेगी।

आपने उक्त धारा को पढ़ लिया होगा। इस तरह यदि धारा 144 के अंतर्गत कोई आदेश पारित किया गया है तो वह पूरी तरह से अस्थायी होता है और दो माह से अधिक अवधि तक नहीं बना रह सकता।  यदि बहुत आवश्यक हो तो इसे छह माह तक बढ़ाया जा सकता है।

आपने नहीं बताया है कि यह आदेश क्या है और कब पारित किया गया है। यह आदेश धारा 144 के अंतर्गत है तो यह दो माह में समाप्त हो जाएगा। आपकी विपक्षी से क्या तकरार है और क्या परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई थी जिनके कारण यह आदेश पारित करना पड़ा, यह सब कुछ आपकी समस्या में अंकित नहीं है। जिससे ऐसा लगता है कि आपकी भी कोई त्रुटि रही होगी।

जहाँ तक धारा 145 का प्रश्न है वह तब प्रभावी होती है जब कि किसी व्यक्ति से किसी जमीन, मकान आदि का कब्जा जबरन छीन लेने र शान्ति भंग होने का अंदेशा हो। यदि किसी ने जबरन कब्जा छीन लिया हो तो कब्जा छीन लिए जाने के दिन से 60 दिनों के अंदर वह धारा 145 में उपखंड मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है। उपखंड मजिस्ट्रेट आवेदन की सुनवाई कर जिस से कब्जा छीना गया है उसे वापस दिलवाने का आदेश दे सकता है।

हमारी राय में आप को इस मामले में किसी अच्छे स्थानीय वकील से मिल कर उसे सारे तथ्य और दस्तावेज दिखा कर परामर्श करना चाहिए और उसकी सलाह के अनुसार कोई कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।

 

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