आतंकवादी हत्याएं जारी हैं। तमाम कोशिशों, घोषणाओं के बाद भी दिल्ली में बम विस्फोट हुए और जानें गईं। सैंकड़ों लोग घायल हुए। दिल्ली ही नहीं पूरे देश में एक दहशत की लकीर खिंच गई। अब पहले की तरह फिर कहा जा रहा है कि आतंकवाद के विरुद्ध कड़ा कानून लाया जाना चाहिए। पर क्या यह कानून इस आतंकवाद को रोक पाएगा? मेरी व्यक्तिगत सोच है कि एक नहीं, बीसियों कानून भी आतंकवाद को नहीं रोक पाएँगे। जो लोग फिदाईन हमलों पर उतर आएँ, उन्हें कानून नहीं रोक सकता। उसे रोकने के लिए पूरे देश की जनता को सामने आना पड़ेगा। जनता सामने आने को तैयार भी है। लेकिन पहले राजनीति उस के सामने आने का मार्ग प्रशस्त तो करे।
हमारी न्याय व्यवस्था बिलकुल लचर अवस्था में पहुँच चुकी है। जब बीसियों बरस तक मुकदमों के निर्णय नहीं होते तो न्याय अपना असर खो देता है। उस कानून का क्या होगा जिसे हमारी न्याय व्यवस्था लागू न कर सके। वह कैसे असर छोड़ सकता है? हमें अपनी न्याय व्यवस्था का विस्तार करना होगा। अपराधिक मामलों में निर्णय एक वर्ष में होने लगें, इस की तुरंत ही व्यवस्था करनी होगी। इस के अलावा दीवानी और अन्य मामलों में भी शीघ्र निर्णय. होने की अवस्था लानी होगी। लोगों को जब शीघ्र न्याय मिलने लगेगा तो वे अपराधिक कृत्यों की ओर नहीं जाएंगे। अपराध जगत से ही सब से आतंकवादिय़ों को अपने लिए कार्यकर्ता मिलते हैं।
अपराधियों को सजा दिलाने के लिए केवल अदालतों को पर्याप्त संख्या में बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं होगा। इस के लिए हमारी अन्वेषण एजेसिंयों की हालत में भी सुधार लाना होगा। आज पुलिस के पास कानून और व्यवस्था बनाए रखने का काम भी है, नेताओं और जनता की सुरक्षा का काम भी है, और अपराधों के अन्वेषण का काम भी। अपराधों के अन्वेषण का काम बहुत ही तकनीकी होता जा रहा है। इस कारण से अन्वेषण के लिए पुलिस की अलग शाखा की आवश्यकता है। इस की सिफारिश हमारी सर्वोच्च अदालत भी कर चुकी है।
इस के अलावा हमें अपना खुफिया तंत्र मजबूत करना होगा। यह नियमित खुफिया कर्मियों और अफसरों तक सीमित रहेगा तो काम नहीं चलेगा। इस के लिए इसे जनता में अपने नियमित और विश्वसनीय सूचना संपर्क विकसित करने पड़ेंगे। इन सूचना प्रदाताओं को उन के काम के अनुसार भुगतान की व्यवस्था भी करनी होगी।
आज तुरंत तमाम मुसलमानों पर आतंकवाद को बढ़ावा देने की तोहमत से लाद दिया जाता है। उन पर आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप आम है। लेकिन यह राजनीति प्रेरित है। यह सही है कि आतंकवादी मुस्लिम बस्तियों में शरण पाते हैं। वहाँ उन के लिए छिपना आसान है। लेकिन इस के लिए देश के तमाम मुसलमानों को दोष देना उचित नहीं। हमें आम लोगों में और आतंकवाद को शरण देने वालों में फर्क करना होगा। उन्हें दोष देने से तो हम आतंकियों की शरण स्थलियों को और बढ़ाएंगे तथा मजबूत करेंगे। हमारी सुरक्षा एजेंसियों को ऐसी शरण स्थलियों में देशभक्त लोगों को तलाश कर, उन्हें अपने सूचनातंत्र से जोड़ना होगा। इन्हें जोड़े बिना हमारे लिए इन शरणप्राप्तकर्ताओं का षड़यंत्र पूरा करने के पहले पता लगा पाना दुष्कर होगा।
आम जनता को भी प्रशिक्षण दे कर सजग बनाना होगा जैसे युद्ध के दिनों में बनाया जाता है। इस का जिम्मा कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं को देना होगा जो धर्म , जाति, लिंग आदि के भेदभाव के बिना जनता के बीच काम करती हों। जनता को हर प्रकार से प्रोत्साहित करना होगा कि वह न केवल सजग रहे अपितु संदेहास्पद गतिविधियों की सूचना सुरक्षा एजेंसियों को प्रदान करे।
सब से अंत में हमारी अभियोजन प्रणाली को भी दुरूस्त करना होगा। प्रतिबद्ध अभियोजकों की निहायत आवश्यकता है जो वास्तविक अपराधियों को सजा दिला सकें। उन का अन्वेषण अधिकारियों के साथ तालमेल भी जरूरी है। तभी
अपाराधियों को सजा दिला पाना संभव हो सकेगा और एक न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना संभव हो सकेगी। आप समझ रहे हैं कि कितना काम करना शेष है? एक न्यायपूर्ण व्यवस्था ही आतंकवाद का मुकाबला कर सकती है।