तीसरा खंबा

नामिति केवल ट्रस्टी है, उस का कर्तव्य है कि वह प्राप्त राशियों को मृतक के उत्तराधिकारियों को कानून के अनुसार प्रदान करे

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियमसमस्या-

ब्यावरा, जिला राजगढ़, मध्य प्रदेश से रवि सोनी ने पूछा है-

मेरी उम्र २९ वर्ष हे सर मेरे परिवार में कुल 8 सदस्य हैं। मेरे पिता मेरी माता मेरी दो बहिनें जिनका विवाह हो गया है और मेरा छोटा भाई। मेरे चाचा और मेरी चाची के कोई संतान नहीं हुई।  मेरे चाचा श्री श्याम कुमार सोनी का देहांत 19.07.2012 को हो गया। मेरी चाची श्रीमती सुधा सोनी का देहांत उनके पूर्व दिनांक 9.12.2011 को हो गया था। मेरे चाचा का स्वर्गवास हुआ तब वे सिंचाई विभाग में स्थल सहायक के पद पर शासकीय नोकरी में थे। मेरे चाचा ने उनकी सेवा पुस्तिका में उन की मृत्यु के उपरांत मिलने वाले स्वत्वों में मेरी चाची को नामित किया हुआ था और मेरी चाची के बाद उन्होंने अपने दोस्त की बेटी को नामित किया था।  यह  नामितिकरण लगभग 30 वर्ष पुराना है जबकि मेरा भी जन्म नहीं हुआ था।  मेरे जन्म के बाद मेरे चाचा चाची ने मुझे गोद ले लिया परन्तु उसका कोई पंजीयन नहीं कराया। उन्होंने मेरा पुत्र की तरह पालन पोषण किया और मैं ने भी उनकी सेवा पुत्र की तरह की। परन्तु चाची की मृत्यु के बाद चाचा अपनी सेवा पुस्तिका में नामितिकरण में परिवर्तन नहीं करा पाए और हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गयी। चाचा की मृत्यु के बाद जब मैं ने उनके शासकीय क्लेम के लिए सम्बन्धित विभाग में आवेदन दिया तो उन्होंने किसी और का नाम यानि बातुल बानो नामीनेशन में दर्ज होना बतलाया जो कि उनके मित्र अब्बास की बेटी है। उतराधिकार प्रमाण पत्र कोर्ट से लाने को कहा है। मेरे और परिवार के सामने समस्या यह है कि अब मुझे उक्त क्लेम राशि कैसे मिले? क्योंकि अब्बास जो की नामिती के पिता हैं क्लेम की राशि मुझे देने में आधी राशि मांग रहे  हैं। तब जाकर सहमति देने को तैयार हैं नहीं तो पूरी राशि पर अपना दावा कर रहे हैं।  बातुल को ना तो मेरे चाचा ने कोई वैधानिक गोद लिया है न ही हमारा कोई रक्त सम्बन्ध है फिर भी वह इस राशि पर क्लेम कर रहे हैं। मुझे बताएँ कि मैं किस तरह से उक्त क्लेम को प्राप्त कर सकता हूँ और जो बरसों पुराना नामीनेशन है उसे कैसे अवैधानिक घोषित करवा सकता हूँ क्योंकि इस प्रकार के नामितिकरण के बारे में मेरे चाचा ने कभी हमें नहीं बताया।  सिर्फ इतना बताया कि मुझे नामितिकरण में रवि यानि की मेरा नाम दर्ज कराना है। इस बीच ही उनकी मृत्यु हो गयी। मैं ने कोर्ट में धारा 372 भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में आवेदन प्रस्तुत किया है और बातुल बनो को इसमें पार्टी बनाया है और सम्बंधित कार्यालय को भी पार्टी बनाया है। उन को नोटिस भी तामील हो चुके हैं पर बातुल बानो कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रही है। क्या इसका लाभ मुझे मिल सकता है? क्या मेरे प्रकरण का मेरे पक्ष में फैसला हो सकता है? मुझे यह राशि प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए? क्योंकि हमें संदेह है कि यहाँ जो नामितीकरम है वह फर्जी है। किसी ने षडयंत्र के तहत बनाया है। क्या अब इस क्लेम राशी पर कोई अधिकार नहीं बनता जब कि मेरे चाचा की परिवार सूचि में मेरा और मेरे परिवार का नाम सम्मिलित है और उनका अन्तिम संस्कार व समस्त मोक्ष कर्म मेरे द्वारा किया गया है। समाज की पगडी रस्म में भी मुझे उतराधिकारी मानकर मुझे पगड़ी बांधी गयी है। हम सब मेरे चाचा श्री श्याम कुमार सोनी के आश्रित थे। क्या उनके स्वत्वों पर हमारा हक नहीं बनता है? यह भी बताएँ कि क्या मैं अनुकम्पा नियुक्ति के लिए दावा कर सकता हूँ।  कृपया मार्ग दर्शन करने की कृपा करें।

समाधान-

प के चाचा का कोई प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी नहीं है। उन्हों ने कोई वसीयत की हो ऐसा उल्लेख आप ने नहीं किया है। इस कारण से उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 की अनुसूची के अनुसार प्रथम श्रेणी में तथा दूसरी श्रेणी की उपश्रेणी प्रथम में आप के चाचा का कोई उत्तराधिकारी जीवित नहीं है। अनुसूची की दूसरी श्रेणी की तीसरी उपश्रेणी में चाचा के भाई अर्थात् आप के पिता जीवित हैं। आपने नहीं बताया कि आप की कोई बुआ भी मौजूद है। यदि आप की कोई एक या अधिक बुआएँ मौजूद हैं तो आप के पिता और बुआएँ आप के चाचा की समस्त संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं। सभी अधिकार समान है।

प बातुल बानो के नाम के नामितिकरण से बिलकुल भी परेशान नहीं हों। नामितिकरण का केवल इतना अर्थ होता है कि विभाग उस नामिती को उन की बकाया राशियों का भुगतान कर सकता है लेकिन नामिति उन्हें केवल एक ट्रस्टी के बतौर ही स्वीकार कर सकता है उस समस्त राशि को नामिति द्वारा मृतक के उत्तराधिकारियों को उन के अधिकार के बतौर देने का कर्तव्य होता है। नामिति का मृतक की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता यदि वह उत्तराधिकारी नहीं है। आप ने बातुल बानो को जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र हेतु आवेदन में पक्षकार बनाया है उस की कोई आवश्यकता नहीं थी। आप चाहें तो अब भी उस कार्यवाही में से उस का नाम हटाए जाने का आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। आप उस प्रकरण में अपनी गवाहियाँ करवा कर उस का निर्णय कराएँ। लेकिन आप खुद चाचा के उत्तराधिकारी नहीं होने से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र आपके पिता के नाम से बनेगा। यदि आप की बुआएँ हैं और वे न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर उत्तराधिकार प्रमाण पत्र आप के पिता के नाम करने में सहमति प्रकट करने का बयान नहीं देती हैं तो उन का हिस्सा उन के नाम होगा।

हाँ, यदि आप न्यायालय के समक्ष गवाहियों के माध्यम से यह साबित कर दें कि रीति रिवाज और कानून के अनुसार आप के चाचा ने आप को गोद लिया था और उस का कोई समारोह किया था तो न्यायालय आप को उन का एक मात्र उत्तराधिकारी मान कर उत्तराधिकार प्रमाण पत्र आप के नाम जारी कर देगा।

दि आप यह साबित करने में सक्षम हैं कि आप गोद पुत्र हैं तो आप को तुरन्त ही विभाग में गोद पुत्र और आश्रित की हैसियत से अनुकम्पा नियुक्ति हेतु आवेदन करना चाहिए। यदि आप को विभाग ने गोद पुत्र मान लिया और सात वर्षों में विभाग में आप के लायक कोई रिक्त पद हुआ तो आप को अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त हो सकती है। यदि आप को अक्षम मान कर विभाग आप को अनुकम्पा नियुक्ति देने से इन्कार कर दे तो आप स्वयं को गोदपुत्र घोषित करने और विभाग द्वारा अनुकम्पा नियुक्ति दिए जाने के लिए योग्य घोषित करने के लिए और नियुक्ति देने के लिए व्यादेश जारी करने के लिए दीवानी न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

दि आप को आशंका हो कि विभाग न्यायालय में उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र जारी करने के पहले ही आप के चाचा के लाभों और बकायों की राशियों का भुगतान बातुल बानो को कर सकता है तो आप को सिविल न्यायालय में एक स्थाई व्यादेश हेतु वाद प्रस्तुत करना चाहिए कि आप ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया हुआ है उस के निर्णय तक विभाग के विरुद्ध इस आशय का अस्थाई व्यादेश पारित किया जाए कि विभाग बातुल बानो को किसी लाभ व बकाया की राशि का भुगतान न करे।

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