लेकिन खुद हमारे उच्चन्यायालयों का प्रशासन इस मामले में कितना चौकस है यह इस बात से पता लगता है कि हर जिला मुख्यालय पर जहाँ बहुत से न्यायालय होते हैं हमेशा कुछ न्यायालयों में जज नहीं होते। न्यायालय में बस पेशियाँ बदलती रहती हैं। क्यों कि बिना जज के तो किसी न्यायालय में कार्यवाही नहीं हो सकती।
राजस्थान में जितने न्यायालय स्थापित हैं उन में से अनेक हमेशा जज के पदस्थापन की राह देखते रहते हैं। इस का मुख्य कारण है कि उच्चन्यायालय समय से जजों की नियुक्तियाँ नहीं कर पा रहा है। इस समय राजस्थान में जिला जज और अपर जिला जज स्तर के 64 न्यायालय, वरिष्ठ खंड व कनिष्ठ खंड सिविल जजों व अपर मुख्यन्यायिक मजिस्ट्रेट व मजिस्ट्रेट स्तर के 115 न्यायालय जजों के अभाव में रिक्त पड़े हैं। इस तरह 179 न्यायालयों में जजों के अभाव में कोई काम नहीं हो रहा है। मेरे अपने नगर कोटा में 6 न्यायालय रिक्त पड़े हैं।
उक्त पदों में से जिला व अपर जिला जज स्तर के पद पदोन्नतियों और वकीलों में से सीधे भर्ती के द्वारा भरे जाने हैं। यदि पदोन्नतियों से ये सभी पद भर दिए जाएँ तो भी मजिस्ट्रेट स्तर के उतने ही न्यायालय रिक्त पड़े रह जाएंगे। हमारी नियुक्ति के लिए चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि उस के पूरे होते होते फिर से जजों के सेवानिवृत्त होने और नए न्यायालयों की स्थापना के कारण बहुत से न्यायालय रिक्त पड़े रह जाएंगे।
क्या हमारी न्यायप्रणाली चयन और नियुक्ति की कोई ऐसी पद्यति विकसित नहीं कर सकती कि जिस से कभी किसी न्यायालय में जज का अभाव ही न रहे?