समस्या-
रागनी औसरने रायपुर, छत्तीसगढ़से पूछा है-
मेरा विवाह 8 मई 1997 को रायपुर के पास ही के गाँव में सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह सम्पन्न हुआ।दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करते हुए हमें दोपुत्र व एक पुत्री की प्राप्ति हुई। बड़ा पुत्र 16 सालमेरे पति के पास हैएवंएक पुत्री 13 साल व पुत्र 11 साल मेरे पास हैं। हम किराये का मकानलेकर रायपुर में रहते थे। मेरे पति को शराब पीने की गन्दी आदत थी और केवलमहीने में 15 से 20 दिन काम पर जाता था। शराब पीने के लिए घर का सामान बेचदेता था। घर में रखे मेरे एवं बच्चे का जेवर भी बेच देता था, और पैसे की बारबारमांग भी करता था। धमकी देता था और मारपीट भी करता था जिनकी लिखितशिकायत स्थानीय पुलिस थाना में भी की है। मै हमेशा तनाव में रहती थी। मेरापति हमें छोड़कर अपने माता पिताजी के पास चला गया अब मैं अपने दो बच्चो कोलेकर अपने माता पिता के घर आ गई। मैंने अपने वकील केमाध्यम से अपने पति के विरुद्ध भरण पोषण के लिए वाद दायर किया है। न्यायलय द्वारा पहली पेशी दी गई। पेशी पर जाने सेपता चला कि अदालत ने जो नोटिस भिजवाया था वह वापस आ गया। कारण जानने पर पता चलाकि मेरे पति के पिताजी यानि मेरे ससुरजी घरपर थे उन्हों ने यह कह करनोटिस वापस कर दिया की ये व्यक्ति [मेरे पति] अभी नहीं है और ये पत्र जिसकेनाम पर है उसी को दिया जाये। दुबारा नोटिस भिजवाया तो वह भी वापिस आ गया है।
मैंने अपने वकील से सलाह ली तो उन्हों ने बताय कि एकरास्ता और है कि हम ‘विशेष मजकूरी’ के माध्यम से नोटिस भिजवा सकते है, इसकेलिएघर के कोई एक सदस्य को नोटिस ले जाने वाले के साथ में जाना होगा। किन्तु मैंतो नहीं जा सकती, बच्चे छोटे हैं एवं मेरे पिताजी बीमार रहते हैं वह भीनहीं जा सकते।अगर मेरे पति न्यायलय द्वारा भेजे गए नोटिस को स्वीकारनहीं करता तो मैं आगे क्या करूँ जिससे मेरे पति न्यायालय के समक्ष उपस्थित होसकें। कृपया उचित सलाह व मार्गदर्शन देंI
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि आप ने भरण पोषण के लिए जो मुकदमा किया है वह किस कानून के अन्तर्गत किया है। भरण पोषण के लिए मुकदमा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, घरेलू हिंसा से महिलाओँ का संरक्षण कानून की धारा 12 या हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम के अन्तर्गत किया जा सकता है। संभावना इस बात की है कि आप का उक्त मुकदमा धारा-125 दं.प्र.सं. के अन्तर्गत है। इस प्रकरण में न्यायालय केवल प्रतिपक्षी की उपस्थिति में अथवा उस के वकील की उपस्थिति में ही साक्ष्य ग्रहण कर सकता है। वैसी स्थिति में आप के पति को समन की तामील होना जरूरी है। समन तामील हुए बिना मामला आगे नहीं बढ़ेगा। इस मामले में समन पुलिस के माध्यम से जाता है। वैसे भी किसी भी मामले में दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिए बिना न्यायालय कोई निर्णय या आदेश पारित नहीं कर सकता।
घर के सदस्य को मजकूरी के साथ जाने की बात तभी उत्पन्न होती जब कि समन की तामील निशादेही से कराई जाए। इस के लिए जरूरी नहीं कि घर का कोई सदस्य ही साथ जाए। आप का कोई पड़ौसी, रिश्तेदार या परिचित भी मजकूरी के साथ जा सकता है। आप खुद जाने से क्यों कतरा रही हैं, आप खुद भी मजकूरी के साथ जा सकती हैं।
इस का तरीका यह है कि आप या आप के वकील न्यायालय से निवेदन करें कि आपका पति जानबूझ कर समन लेने से बच रहा है। इस कारण समन सीधे जिले के एस.पी. को इस निर्देश के साथ भिजवाएँ कि आवश्यक रूप से तामील कराई जाए। एसपी के नाम निर्देश जाने पर समन की तामील जल्दी हो सकती है। वैसे इस मामले में जैसी सलाह आप का वकील आप को दे आप को वही करना चाहिए।