तीसरा खंबा

न्यायालय में मजबूत पैरवी ही आप के मुकदमों के निर्णय जल्दी करने में सहायक हो सकती है

 सीतापुर, उत्तरप्रदेश से आशीष मिश्रा ने पूछा है –

मेरी शादी जनवरी 2003 में हुई। 6 माह बाद ही पत्नी ने संयुक्त परिवार से अलग रहना चाहा। मैं अपनी बहिन की शादी होने तक अलग नहीं हो सकता था। मैं ने अलग हो कर रहने से इन्कार कर दिया। इस पर वह घर छोड़ कर मायके चली गई। 2006 में बहिन की शादी हुई, उस में वह आई और बहिन की शादी के बाद हम परिवार से अलग  हो गए। कुछ समय बाद आर्थिक कठिनाइयाँ आने पर वह फिर अपने मायके चली गई। इस पर मैं ने धारा 9 में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। आवेदन प्रस्तुत करने के दो दिन बाद ही पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत मेरे और परिवार के सदस्यों के विरुद्ध आवेदन प्रस्तुत कर दिया। अब वह किसी भी शर्त पर मेरे साथ नहीं रहना चाहती है और विवाह विच्छेद के लिए भी तैयार नहीं है। वह मुकदमों में अपनी साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं कर रही है और तारीख पर तारीख लिए जा रही है। कहती है कि इस तरह से तुम्हें फँसाए रखूंगी जिस से तुम दूसरी शादी न कर सको। मेरे पास क्या कानूनी विकल्प हैं?

 उत्तर –


आशीष जी,

प को घरेलू हिंसा के मुकदमे का तो सामना करना पड़ेगा। आप उसे प्रतिवाद कर के ही समाप्त करवा सकते हैं। आप के कहने के अनुसार किसी प्रकार की घरेलू हिंसा नहीं हुई है, ऐसी स्थिति में आप की पत्नी आप के विरुद्ध कुछ भी साबित नहीं कर पाएगी और मुकदमा अंततः खारिज हो जाएगा। आप का धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का जो मुकदमा चल रहा है उस में आप को अपनी साक्ष्य प्रस्तुत करनी चाहिए और उस में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री जितना शीघ्र हो सके प्राप्त करनी चाहिए। आप की पत्नी एक लंबे समय से स्वैच्छा से आप के साथ नहीं रह रही है। उस ने दाम्पत्य का लंबे समय से त्याग किया हुआ है, जिस का उस के पास कोई उचित कारण नहीं है। यदि दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री आप को प्राप्त हो जाए और आप की पत्नी उस के बाद भी आप के साथ रहने को तैयार न हो तो आप इसी आधार पर आधार पर धारा-13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं जिस में समय कम लगेगा।

दि आप को लगता है कि धारा-9 के आवेदन के निर्णय में देरी होगी तो आप अपने धारा-9 के आवेदन को धारा-13 के आवेदन में परिवर्तित करवा सकते हैं या उसे वापस ले कर नए सिरे से भी धारा-13 के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं। आप को विवाह विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत करने का यह काम शीघ्र करना चाहिए। यदि आप के और आप की पत्नी के मध्य सुलह की कोई संभावना हो भी तो वह धारा-13 के आवेदन से समाप्त नहीं हो जाएगी। न्यायालय उस आवेदन की सुनवाई के दौरान भी दोनों के मध्य सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। न्यायालय के इस प्रयास से सुलह हो जाती है तो ठीक है, अन्यथा आप शीघ्र विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकेंगे।

प की दूसरी समस्या मुकदमों का लंबे समय तक चलते रहना है। आप समझते हैं कि आप की पत्नी किसी तरह जानबूझ कर आप के मुकदमे में देरी कर रही है और न्यायालय ध्यान नहीं दे रहा है। वास्तविकता यह है कि हमारे यहाँ न्यायालय संख्या में कम होने के कारण उन के पास काम का बहुत दबाव रहता है। पक्षकारों के दबाव के कारण उन्हें मुकदमों में पेशियाँ भी जल्दी जल्दी देनी पड़ती हैं। इस से उन पर दबाव और बढ़ता है। एक-एक दिन में पचास से सौ मुकदमे अदालत के सामने होते हैं, जब कि वे मुश्किल से 20 मुकदमों में काम करने लायक होते हैं। उन्हें अधिकांश मुकदमों में पेशी बदलनी ही पड़ती है। ऐसे में किसी पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत करनी हो और वह न करना चाहे और विरोधी पक्षकार उस का विरोध न करे या मामूली विरोध करे तो न्यायालय उस मुकदमे में आसानी से तारीख बदल देता है। यदि आप की पत्नी किसी मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर रही है कई पेशियाँ ले चुकी है तो आप न्यायालय को स्पष्ट रूप से मजबूती से कहें कि आप की पत्नी जानबूझ कर ऐसा कर रही है। वह आवश्यकता से अधिक अवसर ले चुकी है। अदालत को उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने का और अवसर न देकर उस की साक्ष्य समाप्त कर देना चाहिए। स्वयं के साथ आप का भी जीवन खराब कर रही है, और आप मुकदमे का शीघ्र निर्णय चाहते हैं। आप के मजबूती से जोर देकर यह कहने में आप को न्यायालय के सम्मान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस के बाद भी यदि न्यायालय आप की बात नहीं सुनता है तो आप इसी बात को आवेदन के माध्यम से न्यायालय में लिख कर प्रस्तुत करें। प्रत्येक आवेदन न्यायालय के रिकार्ड पर रहता है। आप की बात न्यायालय को सुननी पड़ेगी। यदि फिर भी न्यायालय मुकदमे के निपटारे में देरी करता है तो आप उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लिखित रूप में आवेदन भेज सकते हैं कि न्यायालय मुकदमे में कार्यवाही नहीं कर रहा है और इस से आप का जीवन खराब हो रहा है। यदि इस लिखित आवेदन का भी कोई लाभ न हो तो आप एक रिट याचिका प्रस्तुत कर आप के सभी मामलों में त्वरित कार्यवाही करते हुए निश्चित समय सीमा में मुकदमों के निर्णय करने के लिए उच्च न्यायालय से निर्देश जारी करवा सकते हैं। उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश जारी करने पर न्यायालय को आप के मुकदमों के निर्णय निर्धारित की गई समय सीमा में करने होंगे। मुकदमों में मजबूत पैरवी ही आप के मुकदमों के निर्णय जल्दी करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। 

 
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