तीसरा खंबा

न्यायिक पार्थक्य, विवाह विच्छेद तथा बच्चों के लिए भरण पोषण हेतु कार्यवाही करें।

पति पत्नी और वोसमस्या-
रागनी गोयल ने रायपुर छत्तीसगढ़ से पूछा है-

मेरा विवाह 8 मई 1997 को रायपुर के पास ही के गांव पर सामाजिक रीति रिवाज से सम्पन हुआ।  दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करते हुए हमें दो पुत्र व एक पुत्री की प्राप्ति हुई। बड़ा पुत्र 15 साल जो अभी मेरे पति के पास है एवं एक पुत्र १० साल व पुत्री १२ साल मेरे पास है।  शादी के दो माह ही मैं अच्छे से रही। मेरे पति को शराब पीने की गन्दी आदत थी और कुछ काम भी नहीं करता था।  इस कारन मै उन्हें रायपुर ला कर एक प्राइवेट कंपनी में अपने पापा को कह कर काम पर लगा दिए।  मेरे पति शराब के लत के कारण माह में केवल पंद्रह से बीस दिन काम पर जाते थे।  शराब पीने के लिए घर पर जो भी सामान होता था उसे बेच देता था। हमसे शराब पीने के लिए बार बार पैसे की मांग करता था।  धमकी देता था पुलिस पर शिकायत करोगी तो तुम्हे बरबाद कर दूंगा। बच्चों को एवं हमें गन्दी गन्दी गाली देता था व मारपीट करता था। मैं हमेशा तनाव में रहती थी।  परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण मैं भी एक प्राइवेट संस्थान में काम करने लगी। मेरे पति के ध्रुत आचरण के कारण व गंदे बर्ताव से मैं एक बार अपने मायके में बैठ गई। किन्तु समाज के प्रमुख लोगों के कहने पर मैं अपने पति के पास चली आई, किन्तु उनके व्यव्हार में कोई बदलाव नहीं आया। जिस से परेशान हो कर मैं दो बच्चों को लेकर अपने मायके में रहने लगी। और 8 दिसंबर 2013 को नजदीकी पुलिस थाना में मारपीट व पैसे की मांग पर रिपोर्ट लिखा दी। अब मैं उनके साथ नहीं रहना चाहती। कृपया हमें उचित सलाह दे की हमें आगे क्या करना चाहिए?

समाधान-

मुझे नहीं लगता कि विवाह के 16 वर्षों तक भरपूर प्रयत्नो के बाद भी यदि आप के पति में कोई बदलाव नहीं आया है तो अब आ सकेगा। अब आप स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हैं, यह एक अच्छी बात है। किसी भी स्त्री का जीवन तभी पूरी तरह सम्मानपूर्ण हो सकता है जब कि वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो। यदि आप पति के साथ नहीं रह सकती हैं तो श्रेयस्कर यही है कि अपने बच्चों के साथ आप मायके में या फिर अलग ही रहें। आप कानूनी तौर पर अपने पति से अपने लिए तथा अपने बच्चों के लिए भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी हैं। हालांकि आप स्वयं कमा रही हैं इस कारण से हो सकता है आप को स्वयं भरण पोषण प्राप्त नही हो। लेकिन कानून आप को आप के उन बच्चों के लिए जो आप के साथ निवास कर रहे हैं आप को उन से भरण पोषण का खर्च दिलवा सकता है। यह भरण पोषण बेटे के वयस्क होने तथा बेटी के विवाहित हो जाने तक जारी रह सकता है। इस के लिए आप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा कानून के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।

प महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा कानून के अन्तर्गत अलग रहने के स्थान की व्यवस्था करने हेतु न्यायालय को आवेदन कर सकती हैं। आप के निवास, आप के कार्यस्थल तथा बच्चों के स्कूल आदि से अपने पति को दूर रहने के लिए आदेश देने का आवेदन भी दे सकती हैं।

प हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-10 के अन्तर्गत न्यायिक पार्थक्य के लिए भी आवेदन कर सकती हैं। इस आवेदन के प्रस्तुत करने व डिक्री प्राप्त करने के उपरान्त आप के पति आप पर साथ रहने के लिए दबाव भी नहीं डाल सकते। न्यायिक पार्थक्य की डिक्री पारित होने के एक वर्ष तक बाद तक आप के और पति के बीच कोई संपर्क न रहने और उन के जीवन में कोई सुधार न आने पर आप उन से विवाह विच्छेद की डिक्री भी प्राप्त कर सकती हैं।

मारी राय है कि आप को उन से अलग रहते हुए ही सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए। आप के सामने समस्या एक और भी है कि आप के बड़े पुत्र का जीवन उन के साथ रहते हुए कैसा रहेगा? यदि हो सके तो उसे भी अपने साथ ला कर उस समेत तीनों बच्चों को पढ़ा लिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का प्रयत्न करें। पति के ऐसे असामाजिक व्यवहार के कारण उस का भी जीवन कोई अच्छा नहीं हो सकता।

अच्छा जीवन साथी मिले तो विवाह विच्छेद के उपरान्त आप उस के साथ नया जीवन बिताने की सोच सकती हैं और उस के लिए तैयार हों तो उस से विवाह भी कर सकती हैं।

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