तीसरा खंबा

पति-पत्नी के बीच बहुत से मुकदमे हो जाने पर स्थाई लोक अदालत की सहायता लें।

लोक अदालत 3समस्या-
करनाल, हरियाणा से बलिन्दर ने पूछा है –

मेरा नाम बलिन्दर है।  मैं एक गैर सरकारी संस्थान में काम करता हूंI  मेरी आय 8000 रूपए प्रतिमाह है।  लेकिन पूरे परिवार कि जिम्मेदारी मुझ पर है।  मेरा विवाह 12.11.2010 को हिन्दू रीति रिवाज से सम्पन्न हुआ था। लगभग 1 वर्ष तक पत्नी मेरे साथ रही और कुछ समय बाद उसके घरवाले उस को मेरी पत्नि को मेरे मना करने के बाद भी उसकी रजामंदी से उसको लेकर चले गये। तब से वह वहीं रह रही है। लेकिन कुछ समय बाद ग्राम पंचायत द्वारा आपसी सहमति से लिखित समझौता हो गया है।  लेकिन समझौते के अनुसार तलाक न्यायालय से होना जरूरी था।  जिसके लिए मेरी पत्नि की और से न्यायालय में 13 बी हिन्दू विवाह अधिनियम का आपसी सहमति से तलाक मुकदमा भी किया।  लेकिन वह न्यायालय में हाजिर नही हुयीI वह पंचायत द्वारा तय किया गया भरण पोषण खर्च पहले ही मांग रही थी। जो कि हमने पहले देने से मना कर दिया।  उसके बाद उनके मन में लालच आ गया और वह ज्यादा पैसे की मांग करने लगी जो कि मैं देने में असमर्थ हूँ।  सहमति से तलाक का मुकदमा शायद खारिज हो गया है। अब जून 2013 में मेरे और परिवार वालों के खिलाफ धारा-498 A भा.दं.संहिता का केस कर दिया जिस में मुझे दो दिन तक जेल भी जाना पड़ा। अभी मैं और परिवार वाले जमानत पर हैं।  लेकिन मैंने घर बसाने का धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का मुकदमा दर्ज किया है। लेकिन 4 तारीख लग चुकी है और वह अभी तक न्यायालय में हाजिर नहीं हुयी है। उसके बाद मेरी पत्नि ने 125 दं.प्र. संहिता का भरण पोषण का केस भी किया है।  साथ में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज किया है।  उनका मकसद हमें न्यायालय में बार बार बुलाकर परेशान करना है।  मैं आपसे यह जानना चाहता है कि जो मैंने घर बसाने का धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम  का मुकदमा दर्ज किया है उसके बावजूद भी मुझे मेरी पत्नि द्वारा 125 दं.प्र. संहिता में भरण पोषण का क्या खर्च दना पड़ेगा तथा इस का का क्या प्रावधान है?

समाधान –

प बिलकुल सही समझे। आप की पत्नी आप से तलाक चाहती है और ठीक ठाक धनराशि भरण पोषण हेतु चाहती है। इस के लिए पंचायत में समझौता हो चुका है। जिस की प्रति आप के पास अवश्य होगी। आप को सभी मुकमदमों में उक्त समझौते की प्रति प्रस्तुत करना चाहिए और उस के आधार पर यह प्रतिरक्षा लेनी चाहिए कि सब कुछ समझौते से हो चुका था लेकिन आप की पत्नी और उस के माता पिता के मन में बेईमानी आ गई जिस के कारण ये सब मुकदमे किए हैं।

लेकिन आप की पत्नी ने किसी वकील की सलाह ली और उस की सलाह से आप पर दबाव बनाने के लिए ये सब मुकदमे किए हैं। धारा 498-ए का मुकदमा वे साबित नहीं कर पाएंगे यदि आप की प्रतिरक्षा में अच्छा वकील हुआ तो आप सब उन में दोष मुक्त हो जाएंगे।

धारा-9 का मुकदमा कर देने पर यदि आप के वकील ने ठीक पैरवी की तो आप के पक्ष में डिक्री हो सकती है। इस के आधार पर धारा 125 का मामला भी आप के विरुद्ध खारिज हो सकता है लेकिन उस के लिए भी आप के वकील को बहुत श्रम करना होगा।

फिर भी सब से अच्छा मार्ग यही है कि किसी तरह से आपसी समझौते की सूरत निकाली जाए। इस के लिए आप आप के जिले की स्थाई लोक अदालत में आवेदन दे सकते हैं जिस में सारी बात ईमानदारी से स्पष्ट रूप से लिखें। इस से स्थाई लोक अदालत आप के सारे मुकदमों को अपने पास मंगवा कर राजीनामें की बात कराएगी। यदि राजीनामा हो गया तो आप को जल्दी ही इन सब से मुक्ति मिल जाएगी। आप को स्थाई लोक अदालत को कहना चाहिए कि राजी नामे का आधार पंचायत का फैसला होना चाहिए। आप को पंचायत के निर्णय से कुछ अधिक भरण पोषण राशि आप की पत्नी को देनी पड़ सकती है। लेकिन अच्छा और जल्दी निकलने वाला हल राजीनामे से सारे मुकदमों का निपटारा किया जाना ही है।

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