तीसरा खंबा

पत्नी को दहेज के कारण घर से निकाल दिया पुलिस ने नहीं सुना, पत्नी क्या करे?

 
एक पाठक किशोर कमल ने तीसरा खंबा पर की पोस्ट पत्नी विवाह के बाद नहीं आई और अब मुकदमा करने की धमकी देती है,  पढ़ कर प्रश्न किया है –

उक्त आलेख में आपकी सलाह पढ़कर एक सवाल उठा। मान लीजिये कोई लड़की दहेज के लिये घर से निकाल दी गई हो। दो साल तक वो मायके में ही रहे, ससुराल वाले उसे आने ही ना दें। लड़की ने थाने में रिपोर्ट की हो, महिला आयोग में गई हो, लेकिन उसकी सुनी ना गई हो और लड़का फैमिली कोर्ट में जाकर मामला लगा दे कि उसकी पत्नी उसके पास नहीं आना चाहती और फैमिली कोर्ट भी तारीख पर तारीख दे रहा हो लड़की से पूछ ही ना रहा हो कि तुम क्या चाहती हो,  तो क्या होगा। क्या इस तरह के कानूनी पचड़ों में फंसकर वो लड़की ना तो ससुराल जा पायेगी और ना ही  ससुराल वालों को दहेज मांगने की सज़ा दिला पायेगी। मैने तो सुना था कि शादी के 7 साल बाद तक दहेज का मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है।

उत्तर –

 किशोर कमल जी,

आप का प्रश्न एक दम काल्पनिक है। यह हो सकता है कि किसी विवाहित महिला को ससुराल वाले दहेज के लिए निकाल दें और वह दो वर्ष तक अपने मायके में ही रहे, ससुराल वाले उसे आने ही न दें। थाने वाले और महिला आयोग वालों ने उस की न सुनी हो। अपितु मैं कहूंगा कि बहुत होता है। इस तरह के बहुत मामले मेरे पास आए हैं।  महिला आयोग का तो मुझे पता नहीं वहाँ क्या होता है, लेकिन थाने में न सुने जाने पर पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट के यहाँ उस की शिकायत की जा सकती है। आज कल तो पुलिस के सभी बड़े अफसरों के ई-मेल पते नैट पर उपलब्ध हैं। उन्हें शिकायत मेल की जा सकती है। और मैं ने देखा है मेल की गई शिकायत की जाँच करने के लिए पुलिस शिकायतकर्ता के घर पहुँच जाती है।
इस के अलावा अदालत का भी मार्ग है। दहेज के लिए क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने पर महिला सीधे अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है। अदालत पुलिस को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अन्वेषण करने का आदेश दे सकती है, या परिवादी महिला चाहे तो मजिस्ट्रेट के समक्ष खुद का और गवाहों के बयान करवा सकती है जिस पर अदालत मामले पर प्रसंज्ञान ले कर अभियुक्तों के वारंट जारी करसकती है।
यदि परिवार न्यायालय में मामला पति द्वारा ले जाया गया है तो पत्नी अपने जवाब में सब कुछ अदालत को लिख कर दे सकती है। यह अदालत का कर्तव्य है कि वह दोनों पक्षों के मध्य मामला सुलह से निपटाने का प्रयत्न करे। हर अदालत अनिवार्य रूप से ऐसा करती भी है। यदि कोई जज ऐसा न करे तो उस की शिकायत उच्चन्यायालय को की जा सकती है। इस के अतिरिक्त महिला घरेलू हिंसा कानून के तहत आवेदन प्रस्तुत कर अपने पति के घर में रहने और प्रतिमाह गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए स्थान देने  के लिए आवेदन प्रस्तुत कर उस का आदेश प्राप्त कर सकती है।

भारतीय कानून में महिलाओं के लिए बहुत कानून हैं। बस जरूरत है तो महिला को सही मार्ग दिखाने की है। इस के लिए भी बहुत संस्थाएँ काम  कर रही हैं।  यदि महिला अक्षम है तो वह निःशुल्क विधिक सहायता के लिए जिला विधिक प्राधिकरण के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। वहाँ से सरकारी खर्चे पर उस
े वकील उपलब्ध कराया जा सकता है।  हाँ महिला ही कुछ न करना चाहे तो कुछ नहीं हो सकता है।

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