नमन ने नीमच, मध्यप्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरा विवाह मई 2011 में हुआ था, यहीं पास ही के कस्बे में जो लगभग 50 किलोमीटर दूर है। विवाह बाद से ही मेरी सास का अनैतिक हस्तक्षेप मेरे वैवाहिक जीवन में रहा है। वह अपने घर की छोटी छोटी बात मेरी पत्नी से करती है। जिस से वह परेशान होती है और बीमार हो जाती है। क्यों कि मेरे ससुराल की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं है और मेरी सास झगड़ालू प्रवत्ति की है इसलिए कोई भी उसके साथ रहना पसंद नहीं करता। मेरा बड़ा साला शराबी है और वह भी उसकी बीवी से अलग रहता है। उसकी पत्नी ने भी मेरे ससुराल वालों के खिलाफ दहेज और घरेलू हिंसा का केस लगा रखा है। मेरी पत्नी बार बार मेरी सास की बातों में आ कर वहीं जा कर रहने लगती है। मैं लगभग चार या पांच बार उसे वहाँ जा कर ले कर आ चूका हूँ। लगभग 5 माह पूर्व भी ऐसा ही हुआ कि मेरी सास, मेरा साला और उसकी मौसी का लड़का मेरे घर पर आये और मेरी पत्नी को ले कर जाने लगे। मेरे 18 माह का एक बच्चा भी है जो कि प्रीमेच्योर डिलीवरी से हुआ था जिसे मैंने अपने पास रखना चाहा। लेकिन वे पुलिस की मदद से मुझ से वह बच्चा छीन तक ले गए। अभी वहीं रह रहे हैं। मैंने बच्चे के लिए जिला बाल न्यायालय में आवेदन दे रखा है। पर उन्हें वहाँ से दो तीन बार सम्मन जारी हो चुके हैं, फिर भी वो नहीं आ रहे हैं। मुझे फ़ोन पर धमकाते हैं कि कोर्ट और पुलिस कुछ नहीं कर पाएगी और बच्चा मेरे पास ही रहेगा। मेरी सास मेरे बच्चे का इलाज ठीक से नहीं कराती है, टोने टोटके से और तांत्रिक पीर बाबाओं से इलाज करवाती है जिस का मेरे पास कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। सिर्फ एक मृत खरगोश का पैर है जो पत्नी उस की माँ के यहाँ से बच्चे के इलाज के लिए लाई थी। मेरे द्वारा की गई कार्यवाही में जिला पुलिस को एक आवदेन उसी समय दिया था और जिला बाल न्नायलय में प्रकरण चल रहा है पर मेरे ससुराल वाले मकान बदल बदल कर रहते हैं। अगर वो अपने परिवार वालों के दबाव के कारण मेरे साथ नहीं आ सकती तो बताएँ कि मैं कानूनन बच्चे को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ? ताकि मैं उसका इलाज ठीक तरह से करा सकूँ। बच्चा प्रीमैच्योर होने के कारण बड़ी मुश्किल से बच पाया है जिस का मैं जगह जगह इलाज करवाया। जिस की मेरे पास मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध हैं। कृपया करके बताएँ कि क्या मेरे पास धारा 9 के अलावा और कोई विकल्प है या नहीं? क्या मैं मेरे ससुराल वालों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवा सकता? या महिला होने की पूरी सहानुभूति उसे ही मिलेगी? यह भी बताएँ कि क्या मेरी पत्नी मेरे द्वारा धारा 9 लगाने के पहले या बाद में अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ से मतलब किसी अन्य शहर या किसी अन्य राज्य से भी किसी तरह जैसे 498ए या अन्य प्रकार का प्रकरण दर्ज करवाने का अधिकार रखती है?
पुनश्चः –क्या झूठी FIR निरस्त करवाने के लिए भी कोई प्रक्रिया है? जैसा कि मुझे एक सोशल साइट के एक मैसेज के माध्यम से पता चला है कि आप भारतीय सविधान की दंड संहिता की धारा 482 का प्रयोग करते हुए अपने खिलाफ लिखी गई FIR को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट से निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं। इस के लिए आपको अपने वकील के माधयम से हाईकोर्ट में एक प्रार्थना पत्र देना होता है जिस के द्वारा आप पुलिस द्वारा की गई FIR पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं। इसके लिए आपके पास आपकी बेगुनाही का सबूत जैसे ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफ, या और कोई डॉक्यूमेंट हो तो आप का केस मजबूत हो जाएगा और आपके खिलाफ दर्ज FIR निरस्त होने के आसार बढ़ जाएंगे। ….. और भी बहुत कुछ जानकारिया मेरे पास इस धारा से संभंधित हे जो मुझे पता नहीं सही हैं या नहीं। 1. क्या भारतीय सविधान की दंड संहिता की धारा 482 में वाकई ऐसा हो सकता है ? 2. क्या 482 नहीं तो भारतीय सविधान में ऐसी कोई धारा है या नहीं? 3. और है तो उस की पूरी जानकारी दें क्या उसे घरेलु हिंसा और दहेज जैसे प्रकरणों में उपयोग किया जा सकता है?
समाधान-
नमन जी, आप जैसी एक-दो समस्याएँ रोज हमारे सामने आती हैं। इस का कारण यह होता है कि आप ने विवाह के पहले न लड़की और न उस का परिवार जिस से वह आती है वह देखा-पहचाना होता है। न भविष्य के जीवन के बारे में लड़की और उस के परिवार से बात चीत की होती है। बस लड़की की शक्ल देखी, पूछा कि शादी कैसे और कैसी करेंगे और शादी के लिए हाँ कर दी। सारी बातें शादी के बाद पता लगती हैं तो फिर ऐसी स्थितियाँ बनती हैं। क्या आप को पहले पता नहीं था क्या कि ससुराल की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं है, सास झगड़ालू प्रवत्ति की है और कोई भी उसके साथ रहना पसंद नहीं करता। बड़ा साला शराबी है और वह भी उसकी बीवी से अलग रहता है। उस की पत्नी ने भी ससुराल वालों के खिलाफ दहेज और घरेलू हिंसा का केस लगा रखा है। यदि ये सब बातें आप ने पता नहीं की थीं तो आप ने शादी के पहले देखा क्या था?
अब जो है सो है। आप की पत्नी को अपनी मां से लगाव है और उस का लाभ आप की सास उठाती है। आप के और पत्नी के बीच का बन्धन उतना मजबूत नहीं हुआ है और मां के साथ पत्नी का संबंध बहुत मजबूत है जो अस्वाभाविक नहीं है। आप को अपनी पत्नी के और अधिक नजदीक जाना चाहिए था। उस के अपनी मां के लगाव और जो तकलीफें मां की उसे परेशान करती हैं उन्हें समझना चाहिए था। जो मदद वह माँ की कर सकती है उस में आप को शामिल होना चाहिए था और धीरे धीरे समझाना चाहिए था कि माँ की मदद की जा सकती है उन का जीवन बदला नहीं जा सकता। यह भी अहसास कराना चाहिए था कि माँ के जीवन में जो परेशानियाँ हैं उन में से बहुत का कारण उन की माँ खुद है। तब आप को कुछ करने की जरूरत न होती पत्नी खुद अपनी माँ को समझाने लगती।
अभी आप के विरुद्ध पत्नी ने मुकदमे नहीं हुए हैं। आप अभी भी कुछ समय ले सकते हैं अपनी पत्नी को सही राह पर ला सकते हैं, लेकिन केवल समझा कर। आप उसे कैसे समझाएंगे यह सब कुछ आप और आप की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
आप कोशिश करिए कि पत्नी आप के साथ आ कर रहने लगे। बिलकुल मना करती है तो धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन जरूर कीजिए। उस से पत्नी को साथ आ कर रहने को बाध्य तो नहीं किया जा सकता लेकिन यह जरूर स्थापित किया जा सकता है कि आप के मन में कोई दुर्भावना नहीं है और आप दाम्पत्य को सही तरीके से चला सकते हैं।
धारा 498ए तो केवल वहीं चलाई जा सकती है जहाँ वह और आप साथ रहे हों। इस कारण किसी दूसरे स्थान पर चला पाना संभव नहीं है। लेकिन मिथ्या रिपोर्ट और फर्जी गवाहों के आधार पर तो कुछ भी किया जा सकता है।
छोटी उम्र के बच्चे की कस्टड़ी माँ से पिता को मिलना बहुत कठिन है। पर आप के पास उस के कारण हैं। यदि न्यायालय समझता है कि बच्चे का हित आप के साथ रहने में है और माँ उसे ठीक से पाल-पोस नहीं रही है तो आप को कस्टड़ी दे सकता है। लेकिन इस के लिए बहुत दमदार तरीके से सारे सबूत आप को रखने पडेंगे और आप का वकील भी अच्छा और प्रभावी होना चाहिए।
यदि आप को पता लगता है कि बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है, वह बीमार है और उस का इलाज कराने के स्थान पर उसे झाड़-फूंक में उलझाया जा रहा है तो आप बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार न करने और उस का जीवन संकट में डालने के लिए पुलिस को रिपोर्ट करा सकते हैं। पुलिस के कार्यवाही न करने पर अदालत में परिवाद प्रस्तुत कर के मामला दर्ज करवा सकते हैं। आईपीसी में केवल एक धारा 317 है जो इस संबंध में है लेकिन उस में मुकदमा बनाने की स्थिति आसानी से नहीं बनती।
आप वास्तव में धारा 498ए से डर रहे हैं। उस से डरने की जरूरत नहीं है। आप ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया है केवल मिथ्या अभियोजन का डर आप को है। इसी डर के मारे अधिकांश पुरुष और उन के परिवार ब्लेकमेल होते हैं। 798ए में अधिक से अधिक यह होगा कि आप को और परिवार के एक दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा, लेकिन आप के पास जो सबूत हैं उन के आधार पर जमानत हो जाएगी। अग्रिम जमानत हो जाएगी। बस मुकदमा लड़ना पड़ेगा। यदि आप की पत्नी ऐसा कोई मुकदमा दर्ज कराने पर उतारू है तो वह करवा ही देगी और मुकदमा लड़ना ही पड़ेगा। उस से मत डरिए। पहले से उस के लिए तैयार रहिए और मुकाबला कीजिए।
धारा 482 के बारे में आप ने जो पढ़ा है ठीक पढ़ा है। यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा है इस का संविधान और आईपीसी से कोई लेना देना नहीं है। यदि उच्च न्यायालय को लगता है कि एफआईआर फर्जी है और उस का कोई आधार नहीं है तो वह एफआईआर को निरस्त करने का आदेश दे सकता है। लेकिन यह भी सही है कि एफआईआर को निरस्त करवाना आसान नहीं है। लेकिन फर्जी एफआईआर से निपटने का यह एक मात्र तरीका है।
लेकिन सब से अच्छा तो यह है कि आप पत्नी से निरन्तर संपर्क बनाए रखें। उसे यथार्थ का अहसास कराएँ कि उस का और उस के बच्चे का भविष्य आप के साथ है, वह अपनी माँ और मायके वालों का भविष्य बदल नहीं सकती। उन की मदद कर सकती है, जिस में आप उस के साथ हैं, आप के साथ रह कर वह अपने और बच्चे के भविष्य को सुरक्षित रख सकती है। यदि आप इस में सफल हो गए तो अदालत तक जाने की नौबत नहीं आएगी। यदि आती है तो फिर उस के लिए तैयार रहिए।