समस्या-
छोटूलाल ने संगरिया जिला भीलवाड़ा, राजस्थान से पूछा है-
मेरी शादी 02/11/2017 को हुई। फिर 6 माह बाद मेरी पत्नी गर्भवती हो गई। फिर मैं उसको उनके गाँव उसेअल्ट्रासाउंड के लिए ले गया। अल्ट्रासाउंड करवाया, फिर उसने बोला की में 5 दिन बाद आजाऊंगी तब उसके गर्भकाल का 6ठा माह चल रहा था। फिर वो 1 महीने तक नहीं आई। फिर मैं और मेरे बड़े पिताजी उस को लेने के लिए गये। उस के माता पिता ने भेजने के लिए माना कर दिया। वो बोले की डिलीवरी हमारे यहाँ करवाएंगे आपके वहाँ देखभाल करने वाला कोई नहीं है। डिलीवरी होने के बाद भेज देंगे। फिर 08/01/2019 को लड़की हुई। फिर 3 माह बाद हम लेने गये तो हमारे साथ गाली गलौच की ओर भेजने के मना कर दिया। 3-4 बार लेने जाने के बाद भी भेजा। फिर मैं 6 जुलाइ 2020 को लेने गया तो उसके माता पिता ओर उसके भाई ने बोला कि अगर आप 5 हज़ार प्रतिमाह देंगे भेंज देंगे।
समाधान-
आपने एक तरफा तथ्य रखे हैं। इस तरह पत्नी और उसके परिजनों द्वारा आपकी पत्नी को नहीं भेजना और पांच हजार रुपया प्रतिमाह निजी खर्च हेतु पत्नी को देने की मांग करने के तथ्य से पता लगता है कि विवाद का कोई कारण भी है जिसे आपने यहाँ नहीं रखा है। पाँच हजार रुपया प्रतिमाह खर्चा देने की बात कहने के साथ ही उन्होंने कुछ और भी बात कही होंगी और उसका कारण भी बताया होगा।
आम तौर पर ऐसी बात तब आती है जब पत्नी को उसकी जरुरत की चीजों को लिए पति कोई नकद धन नहीं देता और उसे छोटी से छोटी जरूरत के लिए भी पति की और देखना पड़ता है। लेकिन आपके मामले में मुझे समस्या कुछ और गम्भीर भी लगती है। जैसे पत्नी द्वारा घर की सामान्य जरूरतों के लिए सामान घर में डालने के लिए कहा जाता हो और आप उसे वह सामान लाकर नहीं देते हों।
दूसरा कारण तब भी होता है जब पति और पत्नी के परिवारों में तनिक सांस्कृतिक और रहन-सहन का अन्तर होता है। गाँव का जमीन जायदाद वाला परिवार अधिक समृद्ध हो सकता है और शहर या कस्बे में रहने वाला निम्न मध्यवर्गीय परिवार कम समृद्ध हो सकता है। लेकिन वहाँ रहन सहन का अन्तर होता है। रसोई और बाथरूम में पर्याप्त अन्तर होता है। पहनने के कपड़ों में भी पर्याप्त अन्तर होता है। इस तरह की अनेक छोटी मोटी समस्याएँ होती हैं। लेकिन इनका हल आपसी बातचीत और एक दूसरे के प्रति उदारता प्रदर्शित करने से होता है। हम ऐसी अनेक समस्याएँ बिना अदालत ले जाए हल कर चुके हैं और फिर पूरे जीवन कोई समस्या नहीं आई।
आपने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में कुछ नहीं बताया है। पर मुझे लगता है कि आपकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक है। आपके मामले में बेहतर है कि आप पत्नी की शर्तें मान कर उसे ले आएँ। पाँच हजार रुपए प्रतिमाह उसे देते रहें। इससे वह अपने खर्चे अपनी इच्छा से चला सकेगी। उस पर भी कोशिश यह करें कि उसके तमाम खर्चे आपकी जेब से हों। उसे इन पाँच हजार रुपयों में से कम से कम खर्च करना पड़े। आपसी तालमेल बढ़ाएँ। एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास को बढ़ाएँ।
अब आपके बीच एक सन्तान भी है जो आपके बीच प्रेम को और बढ़ा सकती है। एक बात ध्यान रखें। किसी भी गृहस्थी को आपसी प्रेम से ही चलाया जा सकता है। दोनों एक दूसरे की परवाह करें। एक दूसरे का अधिकाधिक ध्य़ान रखें। एक दूसरे की गलतियों को माफ करना सीखें। आपस में गुस्सा बिलकुल न करें या कम से कम करें।
यदि यह उपाय भी काम न करे तो और पत्नी आप के पास आने से इन्कार करे फिलहाल धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम की कार्यवाही पत्नी को दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने का आदेश देने के लिए कर सकते हैं। पर हमारी सलाह इस कार्यवाही को तब करने की है जब अन्य प्रयास विफल हो जाएँ। यदि पत्नी दो वर्ष तक न आए तो उसके बाद आप परित्याग के आधार पर तलाक के लिये भी आवेदन कर सकते हैं।