अनिल सक्सेना ने पूछा है —
सर!
मेरी शादी 22.6.2007 को हुई थी, शादी के छः माह बाद ही मुझे पता लगा कि मेरी पत्नी की दोनों किडनी खराब है। इसकी जानकारी मुझे पहले नहीं दी गई । मैं ने इसकी सूचना अपने ससुर को दी, उन्हों ने उसे ले जाकर लखनउ पी.जी.आई.में भर्ती करवा दिया। इसके बाद किडनी का ट्रान्सप्लान्ट हुआ मेरी सास ने अपनी किडनी मेरी पत्नी को दी। इस बीच मैं ने हर तरह से उनकी मदद की । मैं ने इसके लिये मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक लेटर लिखा कि मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, मेरी मदद की जाये। जिसके तहत मुझे हर तरफ से पैसा मिला, मुझे एक साल में 4.20 लाख रूपये की सरकारी सहायता मिली जो मैं ने पत्नी के इलाज में लगाई। इस बीच मेरे ससुराल वालों ने मुझे मानसिक रूप से बहुत परेशान किया। पिछले तीन बरस से वह मेरे पास नहीं आई है और न ही आने को तैयार है। मुझे तरह-तरह से परेशान किया जाता है। कृपया मेरी सहायता कीजिये कि मैं क्या करूँ?
उत्तर —
अनिल जी,
हो सकता है कि आप की पत्नी और उस के मायके वालों को भी विवाह के पूर्व पता न हो कि उस की किडनी खराब हो गई हैं, औऱ उन्हें भी तभी पता लगा हो जब आप उन्हें चिकित्सा के लिए ले गए हों। इस के लिए आप के मायके वालों को दोष देना उचित नहीं है। आप ने अपने ससुर को पत्नी की किडनी खराब होने की सूचना दी उस के बाद उन्हों ने चिकित्सा के लिए पहल की और उसे लखनऊ अस्पताल में भर्ती कराया। आप ने चिकित्सा में भरपूर मदद की। एक स्त्री की प्राण रक्षा के लिए दोनों ने ही प्रयत्न किए हैं यह आप दोनों के कर्तव्य थे। दोनों ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसे कुछ विशेष कहा जा सके अथवा जिस का कोई न्यायिक महत्व हो।
यदि आप की पत्नी अब स्वस्थ हैं तो, और नहीं भी हैं तो भी उन्हें आप के साथ आ कर निवास करना चाहिए। इस के लिए आप को अपनी पत्नी से मिल कर स्पष्ट रूप से बात करना चाहिए और पूछना चाहिए कि वह आप के साथ आ कर क्यों नहीं रहना चाहती है। इस संबंध में आप को अपने ससुर जी से भी बात करनी चाहिए। इस बातचीत के उपरांत यह स्पष्ट हो जाए कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती और अपने पिता के साथ ही रहना चाहती है तो फिर न्यायालय का निर्णय या डिक्री भी उसे आप के साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में आप उन्हें स्पष्ट रूप से कानूनी नोटिस भेज दें कि यदि वह आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती है तो आप न्यायालय से न्यायिक पृथक्करण अथवा तलाक की डिक्री प्राप्त कर लेंगे।
यदि आप की पत्नी अब स्वस्थ हैं तो, और नहीं भी हैं तो भी उन्हें आप के साथ आ कर निवास करना चाहिए। इस के लिए आप को अपनी पत्नी से मिल कर स्पष्ट रूप से बात करना चाहिए और पूछना चाहिए कि वह आप के साथ आ कर क्यों नहीं रहना चाहती है। इस संबंध में आप को अपने ससुर जी से भी बात करनी चाहिए। इस बातचीत के उपरांत यह स्पष्ट हो जाए कि आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती और अपने पिता के साथ ही रहना चाहती है तो फिर न्यायालय का निर्णय या डिक्री भी उसे आप के साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में आप उन्हें स्पष्ट रूप से कानूनी नोटिस भेज दें कि यदि वह आप के साथ आ कर नहीं रहना चाहती है तो आप न्यायालय से न्यायिक पृथक्करण अथवा तलाक की डिक्री प्राप्त कर लेंगे।
यदि इस नोटिस के उपरांत भी आप की पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता है तो आप चाहें तो न्यायिक पृथक्करण अथवा सीधे तलाक के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं। तलाक का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर देने का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि अब साथ रहने की कोई गुंजाइश नहीं रही है। न्यायालय इस तरह के प्रत्येक मामले में सुनवाई आरंभ होने के पूर्व इस तरह का प्रयास करता है कि दोनों पक्षों में समझौता हो जाए और पति-पत्नी साथ रहने लगें। हो सकता है न्यायालय के इन प्रयासों का लाभ आप को मिले और आप दोनों का वैवाहिक जीवन आरंभ हो जाए। यदि नहीं होता है औऱ आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहने को तैयार नहीं होती है तो आ
प को इसी आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त हो जाएगी।