समस्या-
कौशलेन्द्र सिंह ने गाजियाबाद (उ0प्र0) से पूछा है-
मेरी शादी 13.03.2008 को हिन्दू रीति रिवाज से मेरठ (उ0प्र0) में हुई थी। हम सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे थे। शादी के लगभग 8 महीने के बाद मुझे व्यापार में नुकसान होने के कारण मुझे अपना कम्प्यूटर सेंटर बन्द करना पड़ा। इसी बात से नाराज होकर मेरी पत्नी दिनांक 17.12.2008 को घर छोड़कर अपने मायके चली गयी। उस वक्त मेरी पत्नी गर्भवती थी। दिनांक 10.07.2009 को मेरी पत्नी की डिलीवरी भी मेरठ में हुई। मेरी पत्नी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। हमारे परिवार के बहुत समझाने पर सितम्बर 2009 को मेरी पत्नी हमारी बेटी के साथ घर वापस आई। मुझे अक्सर कम आमदनी का ताना देती थी और इसी कारण दिनांक 17.11.2009 को पुनः घर छोड़कर अपने मायके चली गयी और तभी से वह अपने मायके में ही रह रही है। अनके प्रयास करने के बावजूद मेरी पत्नी घर वापस आने को तैयार नहीं हुई।
करीब साढ़े तीन वर्ष बीत जाने के बाद मेरी पत्नी ने पहले धारा-125 के तहत खर्चे का मुकदमा कर दिया और उसके 1 माह बाद धारा-13 के तहत तलाक का वाद दायर किया। दिनांक 6 अप्रैल 2013 को मेरी कोर्ट में पहली तारीख थी। तब से मेरा केस कोर्ट में चल रहा है।
मैं तलाक के पक्ष में नहीं हूँ परन्तु मेरी पत्नी जिद पर अडी हुई है। मैं अपनी बेटी को वापस चाहता हूँ। लेकिन वो देने को तैयार नहीं है। और खर्चे की डिमान्ड कर रही है। मैं एक ग्रेजुएट (बी0ए0) पास हूँ और वर्तमान में कम्प्यूटर टाइपिस्ट का कार्य करता हूँ जिससे मुझे करीब 5000/-रूपये की आमदनी होती है। मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ। जबकि मेरी पत्नी पोस्ट ग्रेजुएट (एम0ए0- एजुकेशन व एम0ए0-साइकोलाॅजी) व बी0एड0 उतीर्ण महिला है। वर्तमान में मैं नहीं जानता कि वह नौकरी करती है या नहीं।
मैं खर्चा देने के स्थिति में नहीं हूँ। कृपया उचित सलाह देने की कृपा करें कि मेरे इस केस में मुझे न्याय किस प्रकार मिल सकता है।
समाधान-
किसी भी पत्नी को उस की इच्छा के विरुद्ध पति अपने साथ रहने को बाध्य नहीं कर सकता। वह अधिक से अधिक न्यायालय से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की डिक्री प्राप्त कर सकता है लेकिन उस के उपरान्त भी पत्नी रहने को तैयार न हो तो विवाह विच्छेद ही एक मात्र उपाय रह जाता है।
यदि आप की पत्नी नौकरी कर भी रही हो और आप से अधिक कमा भी रही हो तो भी बेटी के खर्च के लिए तो आप से खर्च मांग ही सकती है। आप की आमदनी वास्तव में इतनी नहीं है कि आप बेटी का खर्च दे सकें। आप के विरुद्ध खर्चे का जो मुकदमा हुआ है उस में आप अपनी आमदनी को ठीक से प्रमाणित करें तो आप को कम खर्च देना पड़ सकता है। खर्चा तो आप को देना पड़ेगा।
ऐसा लगता है आप की पत्नी आप के प्रति आश्वस्त नहीं है कि आप परिवार चलाने लायक या उस की महत्वाकांक्षा के अनुरूप कमाई कभी भी कर पाएंगे। वह आप से अलग होना चाहती है लेकिन बेटी को भी नहीं छोड़ना चाहती है। वैसे भी माँ के होते हुए बेटी की अभिरक्षा आप को नहीं मिल पाएगी।
इन परिस्थितियों में सही उपाय तो यही है कि आप स्वयं अपनी पत्नी से बात करें और आपस में ही कोई हल निकालें। यदि आप की पत्नी बिना कुछ लिए दिए केवल विवाह विच्छेद पर मान जाती है तो आप को विवाह विच्छेद के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जिस से आप दोनों ही अपने जीवन कि दिशाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हो कर नए सिरे से तय कर सकें। इन दिनों जिस तरह की न्याय व्यवस्था हमारे देश में है और जरूरत के केवल 20 प्रतिशत न्यायालय हैं, उस में वैवाहिक मामले न्यायालय में जाने के बाद बहुत उलझ जाते हैं और उन से निपटना असंभव हो जाता है। एक साथ दो-तीन जीवन नष्ट हो जाते हैं। जब तक न्याय व्यवस्था दुरुस्त न हो जाए इन विवादों को किसी तरह न्यायालय के बाहर ही निपटा लिया जाए तो बेहतर है।