तीसरा खंबा

परिरुद्ध पत्नी को छुड़ाने के लिए धारा 97 दं.प्र.सं. में आवेदन करें या बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करें

समस्या-

मेरी शादी अंतर्जातीय है, मेरी शादी को दस माह हो गए हैं। मेरी पत् पढ़ाई करती है और मैं नौकरी करता हूँ। मैं ने कोर्ट मैरिज की है। शादी के दस महिने बाद जब मेरी पत्नी घर गई और शादी के बारे में बताया तो वो इस शादी को मानने के ले तैयार नहीं हुए और मेरे से बात होना भी बंद हो गई। मेरी पत्नी ने कोर्ट में सन्हा दर्ज की वो शादीशुदा नहीं है और मेरे ऊपर लगाया गया कि मैंने उसे जबर्दस्ती कोर्ट मैरिज किया मैं ने सामाजिक प्रयास किया कि मेरा पत्नी से बात कराई जाए। पर वो नहीं हो पाया साथ में उसे कहीं हटा कर रख दिया गया है। अब मैं क्या करूँ।

-सत्यप्रकाश, बेगूसराय, बिहार

समाधान-

प ने यह तो बताया है कि आप ने कोर्ट मैरिज की है, लेकिन यह नहीं बताया कि कोर्ट मैरिज से आप का क्या तात्पर्य है।  अनेक बार स्त्री-पुरुष न्यायालय परिसर में उपस्थित हो कर नोटेरी पब्लिक के यहाँ एक दूसरे को पति-पत्नी मान कर साथ रहने के शपथ पत्र व अनुबंध तस्दीक करवाते हैं और यह समझ बैठते हैं कि उन की कोर्ट मैरिज हो गई है। यदि ऐसा है तो यह किसी भी प्रकार से विवाह नहीं है। इसे अधिक से अधिक लिव-इन-रिलेशन का अनुबंध माना जा सकता है। कोर्ट मैरिज जिसे वैध विवाह की संज्ञा दी जा सकती है वह जिला विवाह पंजीयक के यहां विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने का नोटिस दाखिल करने पर तथा ऐसा नोटिस दाखिल करने के 30 दिन के उपरान्त पंजीयक के समक्ष उपस्थित हो कर विवाह पंजीकृत कराने पर संपन्न होता है। विवाह पंजीयक इस के लिए पति-पत्नी को विवाह का प्रमाण पत्र जारी करता है। इस विवाह का अभिलेख विवाह पंजीयक के यहाँ सदैव मौजूद रहता है। इस तरह के विवाह को दबाव से किया गया विवाह नहीं माना जा सकता है। यदि आप का विवाह विवाह पंजीयक के यहाँ संपन्न हुआ है तो वह एक वैध विवाह है और उसे दबाव के द्वारा किया गया विवाह नहीं कहा जा सकता है।

प की पत्नी को उस के मायके के परिवार वाले नहीं आने दे रहे हैं और आप को विश्वास है कि उसे जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध रोका गया है तो यह एक अपराध है। यदि किसी व्यक्ति को जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध रोका जाता है जो कि एक अपराध है तो उस के लिए जिला मजिस्ट्रेट, उपखण्ड मजिस्ट्रेट अथवा प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 के अंतर्गत तलाशी-वारण्ट जारी कर सकता है और उस व्यक्ति को उस के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। ऐसा व्यक्ति मिल जाने पर तथा मजिस्ट्रेट के समक्ष लाए जाने पर मजिस्ट्रेट उस के बयान ले कर उसे स्वतंत्र करने का अथवा किसी के संरक्षण में देने का आदेश दे सकता है। धारा-97 दंड प्रक्रिया संहिता निम्न प्रकार है –

97. सदोष परिरुद्ध व्यक्तियों के लिए तलाशी – यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, उपखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण हो कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है, जिस में वह परिरोध अपराध की कोटि में आता है, तो वह तलाशी-वारण्ट जारी कर सकता है और वह व्यक्ति जिस को ऐसा वारण्ट निर्दिष्ट किया जाता है, ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति के लिए तलाशी ले सकता है और ऐसी तलाशी तदनुसारी ही ली जाएगी और यदि वह व्यक्ति मिल जाए तो उसे तुरन्त मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाया जाएगा, जो ऐसा आदेश करेगा जैसा उस मामले की परिस्थितियों में उचित प्रतीत हो।

प किसी अच्छे वकील की सहायता से उक्त उपबंध के अंतर्गत आप की पत्नी को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं और इस से आप की समस्या हल हो सकती है।

दि आप समझते हैं कि आप की पत्नी को कहीं गायब कर दिया गया है और आप को तथा आप की पत्नी की सुरक्षा को खतरा है तो आप उच्च न्यायालय के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत कर अपनी पत्नी को मुक्त कराने तथा आप दोनों को संरक्षण प्रदान करने की प्रार्थना कर सकते हैं। इस याचिका पर उच्च न्यायालय पुलिस को आप की पत्नी को तलाश कर के न्य़ायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।

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