अमित जी,
अभिभावकों द्वारा परंपरागत रूप से तय किए गए वैवाहिक संबंधों का यह दुर्भाग्य है कि उन में विवाह के समय तक वर-वधु के बीच आपसी समझ का पूर्णतया अभाव होता है। वधु को पता नहीं होता है कि उस के पति का क्या स्वभाव होगा और उसे किस तरह के पारिवारिक माहौल में अपना नया जीवन आरंभ करना होगा? जिस परिवार में उसे रहना होगा उस के सदस्य कैसे होंगे? उस के साथ कैसा व्यवहार करेंगे? यह सारी बातें ठीक से वधु के माता-पिता और अभिभावकों को भी पता नहीं होती हैं। वधु अपने हिसाब से ससुराल के परिवार के संबंध में जो भी तथ्य उस के सामने होते हैं उन के आधार पर अपने भावी जीवन और ससुराल के परिवार के सदस्यों के बारे में एक अनुमानित प्रारूप बना लेती है। दूसरी और जिस परिवार में वधु प्रवेश कर रही है उस के प्रत्येक सदस्य की वधु से अनेक अपेक्षाएँ तैयार होती हैं। इन अपेक्षाओं और वधु के अनुमानित प्रारूप में अधिक अंतर नहीं होने और वधु व ससुराल के सदस्यों की एक दूसरे के प्रति अनुकूलन क्षमता पर यह निर्भर करता है कि भविष्य में उन के सम्बंध कैसे होंगे? अधिकांश वधुएँ किसी न किसी प्रकार स्वयं को नए परिवार के साथ अनुकूलित कर लेती हैं। लेकिन बहुत सी होती हैं जो ऐसा नहीं कर पातीं हैं। अनुकूलन नहीं होने का एक मुख्य कारण दोनों परिवारों के दैनिक जीवन की संस्कृति में बड़ा अंतर होना भी होता है।
मान लीजिए एक वधु के मायके में लोग प्रोफेशनल हैं और पुरुष अक्सर सुबह का नाश्ता कर के काम पर निकलते हैं, फिर दुपहर को भोजन के लिए घर आते हैं, भोजन के उपरांत शाम चार-पाँच बजे पुनः काम पर निकलते हैं और रात को आठ नौ बजे घर लौटते हैं। वे दिन में जब घर आते हैं तो एक बार घर संभालते हैं। इसी वधु के ससुराल में दुकानदारी का व्यवसाय होता है और पुरुष सुबह नौ बजे घर से निकलते हैं, दिन का भोजन टिफिन द्वारा उन्हें पहुँचाया जाता है अथवा वे स्वयं अपने साथ ले जाते हैं। रात नौ बजे बाजार बंद होने के उपरांत दस ब
जे तक वे घर पहुँचते हैं और थके हुए होते हैं। दोनों ही परिवारों के पुरुषों के काम के समय और काम के चरित्र के आधार पर उन के व्यवहार भी भिन्न होते हैं। ऐसे में वधु को नए परिवार में अनुकूलित होने में परेशानी आती है। यदि दोनों परिवारों के बीच समझदारी का कोई पुल न हो और ये सब सांस्कृतिक अंतर समझने समाझाने की कोई व्यवस्था न हो तो बात बड़ी हद तक बिगड़ जाती है। ऐसे में यदि कोई काउंसलर या दोनों के बीच समन्वय की इच्छा से मध्यस्थता करने वाला व्यक्ति मिल जाए और दोनों को ही वास्तविकताओं से परिचित कराने का काम करे तो इस तरह के संबंध बिगड़ने से बच जाते हैं। कुछ परिवारों में मुझे स्वयं इस तरह की काउंसलिंग करने का अवसर मिला और वे युगल अब अपने बच्चों सहित प्रेम से अपना जीवन गुजार रहे हैं। इस काउंसलिंग करने वाले को भी नहीं भूलते और समय समय पर आभार अवश्य प्रकट करते हैं।
अक्सर होता यह है कि नववधु ससुराल में आ कर अपनी छोटी से छोटी परेशानी को भी छुपाती है। वह समझ ही नहीं पाती कि उन का उल्लेख किस से करे? वह अपने पति को भी यह नहीं बताती। वह समझती है कि यदि उस ने कुछ बताया तो हो सकता है उसे ही गलत समझा जाए। आप किसी भी प्रकार से अपनी पत्नी से बात करने का प्रयत्न करें। उस की परेशानियों को समझने की कोशिश करें। अपने परिवार वालों को समझाएँ और जहाँ आवश्यकता हो अपनी पत्नी को भी समझाने का प्रयत्न करें। अभी किसी प्रकार का कोई कानूनी कदम उठाना बहुत जल्दबाजी होगी। यह वैसा ही होगा जैसे -आ बैल मुझे मार! अक्सर विवाह के उपरांत पत्नी के मायके चले जाने और मायके वालों द्वारा उसे फिर से पतिगृह के लिए विदाई कराने से इन्कार करने के मामलों में पति परिवार द्वारा यह समझ लिया जाता है कि अब उन्हें दहेज के मामलों में फँसाया जाएगा। इस भय को निकाल दें। यदि ऐसा कुछ हो भी जाए तो आप की सचाई के आधार पर उस का मुकाबला किया जा सकता है। लेकिन उस भय के प्रभाव उल्टे-सीधे कदम उठा कर एक विवाह को बरबाद न करें।