बादशाहपुर, हरियाणा से वेद प्रकाश शर्मा पूछते हैं ……
महोदय,
हम दो भाई और दो बहनें हैं, मेरी दोनों बहनों की शादी 1994 में और हम दोनो भाइयों की शादी 1996 में हो चुकी है। मेरे पिता जी ने जो मेरे दादा के नाम पर मकान था उसे 1997 में बेच कर उस रुपए से दूसरा प्लॉट अपने नाम पर खरीद कर नया मकान बनाया और हम सब उस मकान में रहने लगे। इस मकान में आते ही मरे पिता जी और माता जी ने हम दोनों भाइयों से और हमारे बच्चों से झगड़ा करना शुरू कर दिया। ऊपर से मरे मामा जी और मेरी मम्मी जी के मामाजी आते और हमारे साथ झगड़ा करते हैं। हमारी दोनों बहने भी हमारे पिताजी की तरफ हैं। मेरी इतनी आमदनी नहीं है कि मैं दूसरी जगह रहने लगूँ। कृपया हमारी समस्या का समाधान बताएँ।
उत्तर
आप की समस्या वास्तव में आम निम्नमध्यम वर्गीय परिवारों की व्यथा-कथा है। यहाँ संतानों के बालिग हो कमाने लायक हो जाने और उन के विवाह हो जाने पर माता-पिता की आकांक्षा रहती है कि अब वे माता-पिता की सेवा करें और उन का खर्च भी उठाएँ। अधिक उम्र में माता-पिता कमाने की स्थिति में भी नहीं रहते। उन्हें अपनी पुत्रियों के प्रति भी अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है। दूसरी ओर इस युग में अधिकतर बेटे जिन की आय बहुत अधिक नहीं होती, अपनी आय में अपने पारिवारिक सामाजिक स्तर को बनाए रखने में अक्षम होते हैं। यहीं विवाद शुरू होता है। आर्थिक बदहाली से परिवार में पहले नाराजगी और फिर झगड़े आरंभ होते हैं। फिर कटुता बढ़ती है और नौबत वहाँ तक आ जाती है जहाँ तक आप के परिवार में पहुँच चुकी है। इन समस्याओं के हल अदालत में कानूनी तरीके से सुलझाना बेहद कठिन होता है। यदि ये झगड़े आपसी समझ से बैठ कर सुलझा लिए जाएँ तो बहुत अच्छा है। आप अपनी बात को अपने माता-पिता के सामने तसल्ली से रखेंगे तो शायद उन्हें समझ आ जाएगा। मुझे लगता है कि आप दोनों भाइयों और आप की पत्नियाँ इस माहौल में संतुष्ट नहीं हो सकी हैं और उन्हों ने आप के माता-पिता के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जिस के कारण यह नौबत आ गई है। इसी कारण से आप के मामा, बड़े मामा और दोनों बहनें भी आप के माता-पिता का पक्ष लेती हैं। आप दोनों भाई अपनी पत्नियों को समझाएँ और फिर परिवार में समस्या का हल निकालें तो बेहतर होगा। इस सलाह को अन्यथा न लें।
जहाँ तक कानून का प्रश्न है, आप के पिता का वर्तमान मकान रेकॉर्ड में उन की स्वअर्जित संपत्ति के रूप में दर्ज है और उस पर उन का पूरा अधिकार है। इस मकान को पुश्तैनी मकान को बेच कर बनाया गया है तो यह पुश्तैनी संपत्ति माना जा सकता है, लेकिन इस के लिए आप को इस संपत्ति को पुश्तैनी संपत्ति बताते हुए उस के विभाजन के लिए दावा करना होगा। जिस में आप को यह साबित करना होगा कि यह मकान पुश्तैनी मकान को विक्रय कर के उस धन से बनाया गया था। इस के लिए दस्तावेज और गवाहियाँ करानी होंगी। इस विभाजन में पाँच हिस्से होंगे एक आप के पिता का और चार आप भाई बहनों के। आप के हिस्से में केवल पाँचवाँ भाग आएगा। इस दावे में आप अपने दादा जी की समस्त संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकते हैं। इस दावे में आप एक आवेदन प्रस्तुत कर उस मकान से दावे कि निर्णय तक आप को न निकाले जाने की आज्ञा भी अदालत से प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन विभाजन के दावे बहुत मुश्किल होते हैं। जिस तरह हमारे देश में जरूरत की केवल 20% अदालतें हैं, मुकदमों के निर्णय देरी से होते हैं। इस तरह के दावों में अनेक बार पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं। इस लिए मेरी सलाह है कि इस समस्या को आपसी समझौते से हल कर लिया जाए तो बेहतर होगा। आप आपसी समझौते के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं जहाँ प्राधिकरण सब को बुला कर समझौता कराने की कार्यवाही कर सकता है। इस के लिए आप को किसी अच्छे विश्वसनीय स्थानीय वकील की मदद लेनी होगी।