तीसरा खंबा

पिता की मृत्यु के उपरान्त माता एक मात्र प्राकृतिक संरक्षक है, और उन्हें अपनी अभिरक्षा में ले ने की अधिकारी है।

widow daughterसमस्या-
प्रदीप कुमार ने गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मेरी एक मित्र के पति का देहांत 22/10/10 को हो गया। देहान्त के बाद भी वह अपनी ससुराल में ही रह रही है। पर इन 3 सालों में वह उस जीवन से बहुत परेशान हो गई है। अब जब उन के माता-पिता उन्हें वापस अपने साथ ले जाना चाहतें हैं तो उन के जेठ (पति के बडे भाई) और ससुर उन के बच्चों और उन के सारे सामान (जिस में बच्चों के नाम 2 FD और एक प्लाट के पेपर हैं जिन को ससुराल वालों ने अपने कबजे में ले रखा हैं) को साथ ले जाने से मना कर रहे हैं। जब इस के लिए कुछ गणमान्य लोग वहाँ गये तो ससुराल पक्ष्‍ ने उन से मारपीट व अभद्र व्यवहार किया और कानून की धमकी भी दी। पिता की मृत्यु के बाद बच्‍चों पर किस का अधिकार होता हैं माँ या दादाजी का?

समाधान-

माता और पिता दोनों ही बच्चों के प्राकृतिक संरक्षक हैं। आप की मित्र के मामले में बच्चों के पिता का देहान्त हो चुका है। इस कारण से केवल बच्चों की माता ही एक मात्र प्राकृतिक संरक्षक है तथा उसे बच्चों व उन की संपत्ति को संरक्षक के रूप में अपनी अभिरक्षा लेने की अधिकारी है।

प की मित्र यदि चाहे तो न्यायालय में आवेदन कर बच्चों व उन की संपत्ति की अभिरक्षा में ले सकती है। माता की उपस्थिति में किसी भी अन्य व्यक्ति का बच्चों व उन की संपत्ति को अपनी अभिरक्षा में लेने का कोई अधिकार नहीं है।

प की मित्र को उस के ससुराल वालों ने जो कानूनी धमकी दी है, वह पूरी तरह मिथ्या है। जिन लोगों के साथ उन की ससुराल वालों ने मारपीट और अभद्र व्यवहार किया है वह एक अपराध है उस की पुलिस में रिपोर्ट करानी चाहिए थी यदि मामला असंज्ञेय था तो न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए था।

ब भी आप की मित्र के बच्चों को उस की माता से अलग नहीं किया जा सकता। यदि माता के साथ बच्चों को नहीं भेजा जाता है तो वह अकेली अपने मायके आ सकती है। बच्चों को रोका जाना उन का अवैध बंदीकरण है। धारा 97 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत जिला, उपजिला या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत कर सर्च वारण्ट जारी करवाया जा सकता है जिस पर पुलिस बच्चों को अपनी अभिरक्षा में ले कर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है। जहाँ माता को बच्चों की प्राकृतिक संरक्षक होने के नाते उस की अभिरक्षा में दिया सकता है। बच्चों की संपत्ति को प्राप्त करने के लिए पृथक से न्यायालय को आवेदन किया जा सकता है। यदि बच्चों की संपत्ति को माता की अभिरक्षा में देने से मना किया जाता है तो यह धारा 406 के अन्तर्गत अपराधिक न्यास भंग का अपराध होगा जिस पर पुलिस कार्यवाही कर के अपराधिक न्यास भंग करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार कर बच्चों की संपत्ति को बरामद कर सकती है तथा इस अपराध के लिए दंडित कराने हेतु अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोजन चला सकती है।

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